दिसाहीनता – सुधा वर्मा

एक समय रहिस हे जब हर पढ़इया अपन गुरू के सम्मान करंय। रद्दा म रेंगत गुरूजी ह हर राहगीर सम्मान के नजर ले देखय। गांव के इसकूल म जब नवा गुरूजी जाथे। त गांव के खाली घर ओखर बर जोहथे। किराया के बात रहिबे नइ करय। गांव के हर मनखे ओला सहयोग देथे, ओखर सम्मान करथे। जुन्ना समय म गुरूकुल राहय। जिंहा बडे-बडे राजा -महाराजा के लइका मन राहंय अउ अपन गुरू के सेवा करंय। धीरे-धीरे समय बदलत गिस। सम्मान के भावना कम होवत गिस आज तो स्थिति मारपीट तक…

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घठौंदा के पथरा

सब झन कहिन्थे मैं पथरा के बने हौं-  करेज्जा घलाय पथरा साहीं हवय…..मैं का कहंव ? रानी के कुटकी मालिन कभू तलाव खनाय रहिस, नानचुक आमा के अमरईया, बर पीपर के रुख ले पार मा रसदा रेंगैया बर, असनांद बर आये मनखे बर-घन छईन्हा ! खेत ले लहुटत , कांदी के बोझा मूड मा धरे, खांध मा नांगर, कभू कोपर लेके आवत, छाँव मा सुरतावत जब कमिया, कमेलिन. किसान थिरान्थें, ता मोला थोरकुन बने लागथे. थोरकुन पसीना सुखा के पटकू पहिर के जब कमिया घठौंदा मा बैठ के तलाव के…

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मोर मातृभाषा छत्तीसगढी हे : पालेश्‍वर शर्मा

छत्तीगसगढी मोर मातृभाषा आय । मोला अपन मातृभाषा उपर गर्व हे । मैं ये भाषा ल अपन महतारी के दूध संग पिये अउ पचाय हौं । मोर कान म जउन पहली सब्द परिस वो छत्तीहसगढी भाषा के रहिस । जब ले मोर महतारी जीयत रहिस हे तब ले मैं वोखर मुंह ले येही भाषा ल सुनेंव अउ गुनेंव । ये भाषा ल मोर पुरखा मन सैकडन बरिस ले बोलत आवत रहिन हें । मोला अपन पुरखा मन उपर गर्व हे, काबर के वोहू मन छत्‍तीसगढी भाषा ल गर्व के साथ…

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मोर मातृभाषा छत्तीसगढी हे : पालेश्‍वर शर्मा

छत्तीगसगढी मोर मातृभाषा आय । मोला अपन मातृभाषा उपर गर्व हे । मैं ये भाषा ल अपन महतारी के दूध संग पिये अउ पचाय हौं । मोर कान म जउन पहली सब्द परिस वो छत्तीहसगढी भाषा के रहिस । जब ले मोर महतारी जीयत रहिस हे तब ले मैं वोखर मुंह ले येही भाषा ल सुनेंव अउ गुनेंव । ये भाषा ल मोर पुरखा मन सैकडन बरिस ले बोलत आवत रहिन हें । मोला अपन पुरखा मन उपर गर्व हे, काबर के वोहू मन छत्‍तीसगढी भाषा ल गर्व के साथ…

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दू आखर …..

……………………….ये दे दू नवम्बर २००८ के “गुरतुर गोठ” ला मेकराजाला में अरझे ठाउका एक महीना पूर गय. सत अउ अहिंसा के संसार मे आज अलख जगाये के जबर जरुरत हवय. काबर के चारो कती हलाहल होथे. कहे तुलसी के दोहा के ..” तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुँ और ” .. गजब सारथक हवय. बैर भाव, इरसा, जलन, डाह जमो के अगिन जुडवाय बर जनव जुड पानी कस काम करथे मीठ बोली हा. “गुरतुर गोठ” के जनम अउ उदगार बस ये ही भाव ला हिरदे में धरके होये हवय…

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लोरिकायन – लाईट एण्ड साउंड (जुगुर-जागर रपट) : संजीव तिवारी

27 सितम्बसर के दिन छत्तीसगढ के लोक दरसन ला जगर-मगर चमकावत क्षितिज रंग सिबिर के लाईट एण्ड साउंड के जोरदरहा परसतुती ‘लोरिकायन’ हा दुरूग मा जब होईस त बईगा पारा के मिनी स्टेडियम म छत्तीसगढ के मनखे मन के खलक उजर गे, घमघम ले माई पिल्ला सकला गे अउ हमर लोक गाथा – लोरिक चंदा के मंच परसतुति ‘लोरिकायन’ मा अपन तइहा, गांव-गंवई, अपन महर-महर करत लोकगीत के परमपरा ला भव्य रूप मा आखीं के आघू पा के गदगद होगे । छत्तीसगढ मा लोकगाथा के परमपरा गजब जुन्नां आय, अहीर…

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