बसंत पंचमी हमर हिंदूमन के तिहार म ले एक बिसेस तिहार हे। ये दिन गियान के देबी दाई माता सरस्वती के आराधाना करे जाथे। भारत अउ नेपाल जेहा पहिली हिंदू देस रहसि, म बछर भर ल छै भाग म बांटे गे हे। येमा बसंत रितु सबसे सुखद रितु हे। जब परकिरिती म सबो कती नवसिरिजन अउ उल्लास के वातावरण होथे। खेत म सोना के रूप म सरसों के फूल चमके लगते। गेंहूॅं अउ जौ म बाली आ जाथे। आमा के रूख म बउर लग जाथे अउ उपर ले कोेयली के…
Read MoreCategory: गोठ बात
रीतु बसंत के अवई ह अंतस में मदरस घोरथे
हमर भुईयां के मौसम के बखान मैंहा काय करव येकर बखान तो धरती, अगास, आगी, पानी, हवा सबो गोठियात हे। छै भाग में बाटे हाबय जेमे एक मोसम के नाव हे बसंत, जेकर आय ले मनखे, पशु पक्षी, पेड़ पऊधा अऊ परकिरती सबो परानी म अतेक उछाह भर जथे जेकर कोनों सीमा नईये। माघ के महीना चारों कोती जेती आँख गड़ाबे हरियरे हरियर, जाड़ के भागे के दिन अऊ घाम में थोरको नरमी त कहू जादा समे घाम ल तापे त घाम के चमचमई। पलाश के पेड़ ल देखबे त…
Read Moreमोर ददा ला तनखा कब मिलही
दस बच्छर के नीतिन अउ एक महिना बड़े ओकर कका के बेटी टिया अँगना मा खेलत रहिस। दूनो मा कोन जनी काय सरत लगिस तब टिया हा कहे लगिस मेहा हार जहूँ ता मोर पइसा ला मोर पापा ला तनखा मिलही तब देहँव। नीतिन समझ नइ सकिस कि ओकर कका हा कहाँ ले तनखा पाथय,कोन ओला तनखा देथय। ओहा ओतका बेरा तो खेल लिहिस फेर ओखर मन मा बइठ गे कि हमर ददा ला तनखा कब मिलथे। संझा नीतिन अपन ददा मोहन के रद्दा देखत रहय।खेत ले रापा ला खाँद…
Read Moreआजादी के दीवाना : सुभाष चंद्र बोस (23 जनवरी जयंती विशेष)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जनम 23 जनवरी 1897 में उड़ीसा के कटक शहर में एक बंगाली परिवार में होय रिहिसे । एकर बाबूजी के नाँव श्री जानकी नाथ बोस अउ दाई के नाँव श्रीमती प्रभावती रिहिसे । एकर बाबूजी ह कटक शहर के जाने माने वकील रिहिसे । पढ़ई – लिखई – सुभाष चंद्र बोस ह पढ़ई – लिखई में बहुत हुशियार रिहिसे । वोला पढ़े लिखे के अब्बड़ सँउख रिहिसे । प्राथमिक शाला ल वोहा कटक शहर में पूरा करीस हे । ओकर बाद कालेज ल कलकत्ता में…
Read Moreनवा चाउर के चीला अउ पताल के चटनी
सियान मन के सीख सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा ? नवा चाउर के चीला अउ पताल के चटनी अबड़ मिठाथे रे। फेर हमन नई मानन। संगवारी हो हमर छत्तीसगढ़ राज ला बने 18 बछर हो गे। ए 18 बछर में हमर छत्तीसगढ़ हर बहुत आगू बढ़िस। हमर छत्तीगढ़ में नवा-नवा उद्योग-धंधा खुल गे, नवा-नवा सड़क बनगे, बिजली के उत्पादन में हमन अगुवा गेन, हमर लोक कला अउ संस्कृति घलाव अगुवाइस फेर हमर छत्तीसगढ़ी पकवान हर खुल के हमर छत्तीसगढ़ के…
Read Moreसियान मन के सीख : ए जिनगी के का भरोसा
सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! ए जिनगी के का भरोसा रे। फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। लइकई उमर से ले के सियानी अवस्था तक मनखे के रूप रंग हर अतेक बदलथे जेखर कल्पना नई करे जा सकय। केवल रूप रंग भर बदलथे अइसे नई हे समय हर घलाव बदलत रहिथे अउ समय के अनुसार हमर बानी बिचार हर घलाव बदलत रहिथे। अइसे मा कहे जा सकथे के समय के घलाव कोनो भरोसा…
Read Moreकहाँ गँवागे मोर माई कोठी
“पूस के महीना ठूस” कहे जाथे काबर के ये महीना में दिन ह छोटे होथे अउ रात ह बड़े।एहि पूस महीना के पुन्नी म लईका सियान मन ह बड़े बिहनिया ले झोला धर के घर-घर जाथें अउ चिल्ला चिल्ला के कहिथे छेर-छेरा अउ माई कोठी के धान ला हेरते हेरा। घर के मालकिन ला बुलाथें अउ मया दुलार के आसीरबाद ला पाथे।हमर मयारू महतारी मन ह सुपा भर भर के धान ला देके अपन अशीष अउ मया ला बाँटथें।एही दिन हमर लईका जवान संगी मन ह झूम घूम के डंडा…
Read Moreपीपर तरी फुगड़ी फू
समारू बबा ल लोकवा मारे तीन बछर होगे रिहिस, तीन बछर बाद जब समारू बबा ल हस्पताल ले गांव लानीस त बस्ती भीतर चउक में ठाड़े पीपर रुख के ठुड़गा ल कटवत देख के, सत्तर बछर के समारू के आँखी कोती ले आँसू ढरक गे। बबा के आँखी में आँसू देख के पूछेंव कइसे बबा का बात आय जी, त बबा ह भरे टोंटा ले बताइस, कथे सुन रे धरमेंद तैं जेन ये पीपर रूख ल देखत हस जेन ल सुखाय के बाद काटत हवे तेन ल हमर बबा के…
Read Moreछत्तीसगढ़ म दान के महा परब छेरछेरा
ये संसार म भुइंया के भगवान के पूजा अगर होथे त वो देस हाबय भारत। जहां भुइंया ल महतारी अऊ किसान ल ओखर लईका कहे जाथे। ये संसार म अन्न के पूरती करईया अन्नदाता किसान हे। हमर छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा कहे जाथे। हमर सभियता, संसकिरीति म तिहार के बड़ महत्तम हाबय। हमर सभियता अऊ संसकिरीति म ये तिहार मन रचे बसे हावय। ये तिहार म दान के परब छेरछेरा घलो हावय। हमर ये छेरछेरा तिहार पुस पुन्नी के दिन मनाये जाथे। फसल ल खेत-खार ले डोहार के कोठार…
Read Moreठगही फेर सकरायेत
कहे क्रांति कबिराय, नकल ले झन धोका खाना कोलिहा मन ह ओढ़े हावंय, छत्तीसगढ़िया बाना। मीठ-मीठ गोठिया के भाई, मूरुख हमला बनाथे बासी चटनी हमला देथे, अउ काजू अपन उड़ाथे। बाहिर म बन शेरखान, बिकट बड़ाई अपन बतावै भीतर जाके चांटे तलुआ, नांउ जइसे तेल लगावै। आरएसएस ल कहत रहिस वो, अपन गोसंइया बदलिस कुरसी बदल गइस, ओकर दादा-भईया। चतुर बहुत चालक हे, वो सकरायेत ये मोर भाई छत्तीसगढ़िया भेख बनाके, ठगथे हमर कमाई। सकरायेत के गाड़ा-गाड़ा बधाई के संग – तमंचा रैपुरी
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