ज्ञान रहे ले साथ मा, बाढ़य जग मा शान। माथ ऊँचा हरदम रहे, मिले बने सम्मान। बोह भले सिर ज्ञान ला, माया मोह उतार। आघू मा जी ज्ञान के, धन बल जाथे हार। लोभ मोह बर फोकटे, झन कर जादा हाय। बड़े बड़े धनवान मन, खोजत फिरथे राय। ज्ञान मिले सत के बने, जिनगी तब मुस्काय। आफत बेरा मा सबे, ज्ञान काम बड़ आय। विनय मिले बड़ ज्ञान ले, मोह ले अहंकार। ज्ञान जीत के मंत्र ए, मोह हरे खुद हार। गुरुपद पारस ताय जी, लोहा होवय सोन। जावय नइ…
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जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : नसा
दूध पियइया बेटवा, ढोंके आज शराब। बोरे तनमन ला अपन, सब बर बने खराब। सुनता बाँट तिहार मा, झन पी गाँजा मंद। जादा लाहो लेव झन, जिनगी हावय चंद। नसा करइया हे अबड़, बढ़ गेहे अपराध। छोड़व मउहा मंद ला, झनकर एखर साध। दरुहा गँजहा मंदहा, का का नइ कहिलाय। पी खाके उंडे परे, कोनो हा नइ भाय। गाँजा चरस अफीम मा, काबर गय तैं डूब। जिनगी हो जाही नरक, रोबे बाबू खूब। फइसन कह सिगरेट ला, पीयत आय न लाज। खेस खेस बड़ खाँसबे, बिगड़ जही सब काज। गुटका…
Read Moreयोग के दोहा
महिमा भारी योग के,करे रोग सब दूर। जेहर थोरिक ध्यान दे,नफा पाय भरपूर। थोरिक समय निकाल के,बइठव आँखी मूंद। योग ध्यान तन बर हवे,सँच मा अमरित बूंद। योग हरे जी साधना,साधे फल बड़ पाय। कतको दरद विकार ला,तन ले दूर भगाय। बइठव पलथी मार के,लेवव छोंड़व स्वॉस। राखव मन ला बाँध के,नवा जगावव आस। सबले बड़े मसीन तन,नितदिन करलव योग। तन ले दुरिहा भागही,बड़े बड़े सब रोग। चलव साथ एखर सबे,सखा योग ला मान। स्वस्थ रही तन मन तभे,करलव योगा ध्यान। जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” बाल्को (कोरबा)
Read Moreदानलीला कवितांश
जतका दूध दही अउ लेवना। जोर जोर के दुध हा जेवना।। मोलहा खोपला चुकिया राखिन। तउन ला जोरिन हैं सबझिन।। दुहना टुकना बीच मढ़ाइन। घर घर ले निकलिन रौताइन।। एक जंवरिहा रहिन सबे ठिक। दौरी में फांदे के लाइक।। कोनो ढेंगी कोनो बुटरी। चकरेट्ठी दीख जइसे पुतरी।। एन जवानी उठती सबके। पंद्रा सोला बीस बरिसि के।। काजर आंजे अंलगा डारे। मूड़ कोराये पाटी पारे।। पांव रचाये बीरा खाये। तरुवा में टिकली चटकाये।। बड़का टेड़गा खोपा पारे। गोंदा खोंचे गजरा डारे।। पहिरे रंग रंग के गहना। ठलहा कोनो अंग रहे ना।।…
Read Moreउत्तर कांड के एक अंश छत्तीसगढी म
अब तो करम के रहिस एक दिन बाकी कब देखन पाबों राम लला के झांकी हे भाल पांच में परिन सबेच नर नारी देहे दुबवराइस राम विरह मा भारी दोहा – सगुन होय सुन्दर सकल सबके मन आनंद। पुर सोभा जइसे कहे, आवत रघुकुल चंद।। महतारी मन ला लगे, अब पूरिस मन काम कोनो अव कहतेच हवे, आवत बन ले राम जेवनी आंखी औ भूजा, फरके बारंबार भरत सगुन ला जानके मन मां करे विचार अब तो करार के रहिस एक दिन बाकी दुख भइस सोच हिरदे मंगल राम टांकी…
Read Moreपद्मश्री डॉ॰ मुकुटधर पाण्डेय के कविता
प्रशस्ति सरगूजा के रामगिरी हे मस्तक मुकुट सँवारै, महानदी ह निर्मल जल मा जेकर चरन पखारै। राजिम औ सिवरीनारायण छेत्र जहां छबि पावै, ओ छत्तिसगढ़ के महिमा ला भला कवन कवि गावै। है हयवंसी राजा मन के रतनपूर रजधानी, गाइस कवि गेपाल राम परताप सुअमरित बानी। जहाँ वीर गोपालराय काकरो करै नइ संका, जेकर नाम के जग जाहिर डिल्ली मा बाजिस डंका। मंदिर देउहर ठठर ठउठर आजा ले खड़े निसानी, कारीगरी गजब के जेमा मूरती आनी बानी। ए पथरा के लिखा, ताम के पट्टा अउ सिवाला, दान धरम अठ बल…
Read Moreदोहा के रंग : दोहा संग्रह
छत्तीसगढ़ मा छन्द-जागरण ये जान के मन परसन होईस कि नवागढ़ (बेमेतरा) के कवि रमेश कुमार सिंह चौहान, दोहा छन्द ऊपर “दोहा के रंग” नाम के एक किताब छपवात हे। एखर पहिली रमेश चौहान जी के किताब “सुरता” जेमा छत्तीसगढ़ी कविता, गीत के अलावा कई बहुत अकन छंद के संग्रह हे, छप चुके हे. कुछ दिन पहिली ईंकर छत्तीसगढ़ी के कुण्डलिया छंद संग्रह ““आँखी रहिके अंधरा” के विमोचन घलो होय हे। हमर देश के साहित्य अमर साहित्य आय. कई बछर पहिली गढ़े रचना मन ला आज भी हमन पढ़त औ…
Read Moreछन्द के छ : दोहा छन्द
बिनती बन्दौं गनपति सरसती, माँगौं किरपा छाँव ग्यान अकल बुध दान दौ, मँय अड़हा कवि आँव | जुगत करौ अइसन कुछू, हे गनपति गनराज सत् सहित मा बूड़ के , सज्जन बने समाज रुनझुन बीना हाथ मा, बाहन हवे मँजूर जे सुमिरै माँ सारदा, ग्यान मिलै भरपूर लाडू मोतीचूर के , खावौ हे गनराज सबद भाव वरदान मा, हमला देवौ आज हे सारद हे सरसती , माँगत हौं वरदान सबल होय छत्तीसगढ़ , भाखा पावै मान स्वच्छ भारत अभियान सहर गाँव मैदान – ला, चमचम ले चमकाव गाँधी जी के…
Read Moreदोहा
सुकवि श्री बुधराम यादव जी के नवा छत्तीसगढ़ी सतसई दोहा संग्रह “चकमक चिनगारी भरे “ से साभार – ——————————————————————————————————– पहुना कस बेटी भले – मइके बर दिन चार । पर मइके ससुरार के – मरजादा रखवार ॥ सिरतो बेटी सिरज के – रोथे सिरजनहार । मया पुतरिया के कदर – बिसरत हे संसार ॥ जेकर हिरदे नित भरे – सतगुन सुघर बिचार । जानव दियना ते धरे – करत रथे उजियार ॥ बिन किताब के घर लगय – जनव झरोखा हीन । सुद्ध पवन सत ज्ञान बिन – लगंय रहइया दीन ॥ …
Read Moreदेवारी तिहार के बधई
[bscolumns class=”one_half”] अँधियारी हारय सदा , राज करय उजियार देवारी मा तयँ दिया, मया-पिरित के बार || नान नान नोनी मनन, तरि नरि नाना गायँ सुआ-गीत मा नाच के, सबके मन हरसायँ || जुगुर-बुगुर दियना जरिस,सुटुर-सुटुर दिन रेंग जग्गू घर-मा फड़ जमिस, आज जुआ के नेंग || अरुण कुमार निगम http://mitanigoth.blogspot.in [/bscolumns][bscolumns class=”one_half_last_clear”](देवारी=दीवाली,तयँ=तुम,पिरित=प्रीत,नान नान=छोटी छोटी,नोनी=लड़कियाँ, “तरि नरि नाना”- छत्तीसगढ़ी के पारम्परिक सुआ गीत की प्रमुख पंक्तियाँ, जुगुर-बुगुर=जगमग जगमग,दियना=दिया/दीपक,जरिस=जले, सुटुर-सुटुर=जाने की एक अदा,दिन रेंग=चल दिए,फड़ जमिस=जुआ खेलने के लिए बैठक लगना,नेंग=रिवाज)देवारी (सं० दावाग्नि) कछारों में दिखाई देनेवाला लुक। छलावा। उदा०: जानहुँ…
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