पुजारी बनौं मैं अपन देस के। अहं जात भाँखा सबे लेस के। करौं बंदना नित करौं आरती। बसे मोर मन मा सदा भारती। पसर मा धरे फूल अउ हार मा। दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा। बँधाये मया मीत डोरी रहे। सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे। बसे बस मया हा जिया भीतरी। रहौं तेल बनके दिया भीतरी। इहाँ हे सबे झन अलग भेस के। तभो हे घरो घर बिना बेंस के। चुनर ला करौं रंग धानी सहीं। सजाके बनावौं ग रानी सहीं। किसानी करौं अउ सियानी करौं। अपन देस…
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छत्तीसगढ़ी गद्य में छंद प्रयोग
हे गुरु घासीदास – दोहालरी
पायलगी तोला बबा, हे गुरु घासीदास। मन अँधियारी मेट के, अंतस भरव उजास। सतगुरु घासीदास हा, मानिन सत ला सार। बेवहार सत आचरन, सत हे असल अधार। भेदभाव बिरथा हवय, गुरु के गुनव गियान। जात धरम सब एक हे, मनखे एक समान। झूठ लबारी छोड़ के, बोलव जय सतनाम। आडंबर हे बाहरी, अंतस गुरु के धाम। चोरी हतिया अउ जुआ, सब जी के जंजाल। नारी अतियाचार हा, अपन हाथ मा काल। जउँहर जेवन माँस के, घटिया नशा शराब। मानुस तन अनमोल हे, झनकर जनम खराब। मुरती पूजा झन करव, पोसव…
Read Moreदोहालरी नवा बछर के
1 नवा बछर शुभकामना,जिनगी हो खुशहाल। मन के कोठी मा मया,बाढ़य जी हर साल। 2 पाछू के अटके बुता,सफल सिद्ध हो जाय। नवा बछर हे देवता,जन जन सब मुस्काय। 3 मतलबिया घरफोरवा,झन दँय घातक घात। सुमता के दियना जलय,गाँव गली दिन रात। 4 अघुवा लहुटे दोगला,अइसन दिन झन आय। कथनी करनी एक हो,किरिया अपन निभाय। 5 खरतरिहा खन्ती खनय,दिनभर खेती खार। सरलग महिनत ला करै,लावय नवा बहार। 6 खेती ला पानी मिलय,फसल लहर लहराय। खातू बिजहा हो असल,करजा सबो चुकाय। 7 अंतस मा राखव सबो, गुरतुर गुरतुर गोठ। चुगली चारी…
Read Moreपरम पूज्य बाबा गुरु घासीदास : सरसी छंद
जेखर जनम धरे ले भुँइया,बनगे हे सत धाम। उही पुरष के जनम दिवस हे,भज मनुवा सतनाम।।1।। बछर रहिस सतरह सौ छप्पन,दिवस रहिस सम्मार। तिथि अठ्ठारह माह दिसम्बर,सतगुरु लिन अँवतार।।2।। तब भुँइ मा सतपुरुष पिता के,परे रहिस शुभ पाँव। बालक के अविनाशी घासी,धरे रहिन हे नाँव।।3।। वन आच्छादित गाँव गिरौदा,छत्तीसगढ़ के शान। पावन माटी मा जनमे हे,घासीदास महान।।4।। महँगू अमरौतिन बड़ भागी,दाई ददा महान। गोदी मा मानव कुल दीपक,पाइन हे संतान।।5।। घोर तपस्या करे रहिन हे,गुरु सतखोजन दास। सँग मा संत समाज सबोझिन,करे रहिन उपवास।।6।। माँग रहिस एक्के ठन सब के,मिलके…
Read Moreगँवई गाँव : शक्ति छंद
बहारे बटोरे गली खोर ला। रखे बड़ सजाके सबो छोर ला। बरे जोत अँगना दुवारी सबे। दिखे बस खुसी दुख रहे जी दबे। गरू गाय घर मा बढ़ाये मया। उड़े लाल कुधरिल गढ़ाये मया। मिठाये नवा धान के भात जी। कटे रात दिन गीत ला गात जी। बियारी करे मिल सबे सँग चले। रहे बाँस के बेंस थेभा भले। ठिहा घर ठिकाना सरग कस लगे। ददा दाइ के पाँव मा जस जगे। बरे बूड़ बाती दिया भीतरी। भरे जस मया बड़ जिया भीतरी। बढ़ाले मया तैं बढ़ा मीत जी। हरे…
Read Moreजस गीत : कुंडलिया छंद
काली गरजे काल कस,आँखी हावय लाल। खाड़ा खप्पर हाथ हे,बने असुर के काल। बने असुर के काल,गजब ढाये रन भीतर। मार काट कर जाय,मरय दानव जस तीतर। गरजे बड़ चिचियाय,धरे हाथे मा थाली। होवय हाँहाकार,खून पीये बड़ काली। सूरज ले बड़ ताप मा,टिकली चमके माथ। गल मा माला मूंड के,बाँधे कनिहा हाथ। बाँधे कनिहा हाथ,देंह हे कारी कारी। चुंदी हे छरियाय,दाँत हावय जस आरी। बहे लहू के धार,लाल होगे बड़ भूरज। नाचत हे बिकराल,डरय चंदा अउ सूरज। घबराये तीनो तिलिक,काली ला अस देख। सबके बनगे काल वो,बिगड़े ब्रम्हा लेख। बिगड़े…
Read Moreमैं वीर जंगल के : आल्हा छंद
झरथे झरना झरझर झरझर,पुरवाही मा नाचे पात। ऊँच ऊँच बड़ पेड़ खड़े हे,कटथे जिँहा मोर दिन रात। पाना डारा काँदा कूसा, हरे मोर मेवा मिष्ठान। जंगल झाड़ी ठियाँ ठिकाना,लगथे मोला सरग समान। कोसा लासा मधुरस चाही,नइ चाही मोला धन सोन। तेंदू पाना चार चिरौंजी,संगी मोर साल सइगोन। घर के बाहिर हाथी घूमे,बघवा भलवा बड़ गुर्राय। आँखी फाड़े चील देखथे,लगे काखरो मोला हाय। छोट मोट दुख मा घबराके,जिवरा नइ जावै गा काँप। रोज भेंट होथे बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप। लड़े काल ले करिया काया,सूरुज मारे कइसे बान। झुँझकुर…
Read Moreराज्य स्तरीय छंदमय कवि गोष्ठी संपन्न
छन्द के छ परिवार के दीवाली मिलन अउ राज्य स्तरीय कवि गोष्ठी के सफल आयोजन दिनांक 12/11/17 के वि.खं. सिमगा के ग्राम हदबंद मा अतिथि साहित्यकार छन्द विद् श्री अरुण कुमार निगम दुर्ग, विदूषी श्रीमती शंकुन्तला शर्मा भिलाई, श्रीमती सपना निगम, श्री सूर्यकांत गुप्ता दुर्ग के गरिमामयी उपस्थिति मा सम्पन्न होइस । कार्यक्रम मा गाँव के सरपंच श्रीमती सरिता रामसुधार जाँगड़े, श्री संतोषधर दीवान मन अतिथि के रूप मा उपस्थित रहिन। कार्यक्रम के शुरुआत अतिथि मन द्वारा मां सरस्वती के छाया चित्र मा पूजा अर्चना अउ दीप प्रज्वलन ले होइस।…
Read Moreसरसी छंद : जनकवि कोदूराम “दलित” जी
धन धन हे टिकरी अर्जुन्दा,दुरुग जिला के ग्राम। पावन भुँइया मा जनमे हे,जनकवि कोदूराम। पाँच मार्च उन्नीस् सौ दस के,होइस जब अवतार। खुशी बगरगे गाँव गली मा,कुलकै घर परिवार। रामभरोसा ददा ओखरे,आय कृषक मजदूर। बहुत गरीबी रहै तभो ले,ख्याल करै भरपूर। इसकुल जावै अर्जुन्दा के,लादे बस्ता पीठ। बारहखड़ी पहाड़ा गिनती,सुनके लागय मीठ। बालक पन ले पढ़े लिखे मा,खूब रहै हुँशियार। तेखर सेती अपन गुरू के,पावय मया दुलार। पढ़ लिख के बनगे अध्यापक,बाँटय उज्जर ज्ञान। समे पाय साहित सिरजन कर,बनगे ‘दलित’महान। तिथि अठ्ठाइस माह सितम्बर,सन सड़सठ के साल। जन जन ला…
Read Moreकिरीट सवैया : नाँग नाथे मोहना
खेलन गेंद गये जमुना तट मोहन बाल सखा सँग नाचय। देवव दाम लला मन मोहन देख सखा सबके सब हाँसय। आवय ना मनखे जमुना तट कोइ नहावय ना कुछु काँचय। हावय नाँग जिहाँ करिया जिवरा कखरो नइ चाबय बाँचय। देख तभो जमुना तट मा मनमोहन गेंद ग खेलत हावय। बोइर जाम हवे जमुना तट मा मिलके सब झेलत हावय। खेल करे हरि गोकुल मा मिल मीत मया मन मेलत हावय। खेलत गेंद गिरे जमुना जल लाव कही सब पेलत हावय। जमुना जल के तल मोहन जावय नाँग लगे बड़ गा…
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