जइसे लइका ल सेंके बर गोरसी के आंच जरूरी होथे, जइसे दरपन बनाय बर कांच जरूरी होथे, वइसने चोरी-डकइती, गडबड-घोटाला… Read More
छत्तीसगढ़िया मन के आदत कहां जाही। बिगन भात बोजे पेट नी भरय। फेर कुछ समे ले मोर सुवारी ला को जनी… Read More
आज संझौती बेरा म दुरगा ठऊर म मिटिंग हावे किके कोतवाल हांका पारके चल दिस। जें खाके सब ला सकलाना… Read More
गांव म हरेक पइत, दसरहा बखत, नाटक लील्ला खेलथे। ये दारी के लील्ला, इसकूल के लइका मन करही। लइका मन… Read More
छत्तीसगढी सहज हास्य और प्रखर ब्यंग्य की भाषा है। काव्य मंचों पर मेरा एक एक पेटेंट डॉयलाग होता है, 'मेरे… Read More
कबरा कुकुर ला फूल माला पहिर के माथ म गुलाल के टीका लगाय अंटियावत रेंगत देखिस तब झबरा कुकुर ह… Read More
हमर गांव के लइका मन, गनेस पाख म, हरेक बछर गनेस बइठारे। गांवेच के कुम्हार करा, गनेस के मुरती बनवावय।… Read More
सिरीमान गउरीनंदन गजानन महराज, घोलंड के परनाम। लिखना समाचार मालुम हो के- बीत गे असाढ़, नइ आइस बाढ़। बीत गे… Read More
पनदरा अगस्त के पहिली दिन, सरपंच आके केहे लागीस - डोकरी दई, ये बछर, हमर बड़का झंडा ल, तिहीं फहराबे… Read More
[responsivevoice_button voice="Hindi Female" buttontext="ये रचना ला सुनव"] मंगलू अऊ बुधारू खुसी के मारे पगला गे रहय। लोगन ला बतावत रहय… Read More