मोबाइल आए से लइका सियान सबो झन मुंहबाएं खडे रहिन हे। जब देखव, जेती देखव गोठियाते रहिथे। जब ले काल दर ह सस्ता होइस तब ले किसिम-किसिम के चरचा शुरु होगे हे। सारी के भांटो से, प्रेमका के प्रेमी से, आफिसर के करमचारी से, शादीशुदा के ब्रह्मचारी से, घरवाली के घरवाले से, अऊ घरवाले के बाहिरवाले से। गुप्त चरचा, मुखर चरचा, आदेश, संदेश, डांट-फटकार, गाली-गलौज, ब्लेक मेल, प्रेम प्रस्ताव, अउ चुगली सब्बो के एके साधन हे मोबाइल। खखोरी में फाइल दबा के बात करत पहिली साहेब शुभा मन ल देखन।…
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व्यंग्य : नवा सड़क के नवा बात
गरमी के दिन में बने नवा चमचमाती सड़क ह बरसात के पहिलीच पानी में हिरोइन के मेक-अप असन धोवागे अउ रेती, सिरमिट, डामर अउ बजरी गिट्टी मन भिंगे उड़िद दार के फोकला कस उफलगे। सड़क ह चुहके आमा के फोकला कस खोचका-डबरा होगे। जी पराण देके जनता के सेवा करइय्या भैय्या जी किसम के मनखे मन तुरते ये बात के शिकायत, सड़क बनवइय्या बड़े साहब मेरन जा के करिन। पत्रकार मन घला साहब मेरन पहुँचे रिहिन। पत्रकार मन साहब ला पुछिन-’’कस साहब! आजकल लाखों-करोड़ों रूपिया के बने पुल-पुलिया अउ चमचमाती…
Read Moreबड़े दाई
होवत बिहनिया गांव सन्न होगे, बड़े दाई नई रहीस सुनके मोर माथा सुखागे। बड़े दाई के सांवर चेहरा, लटी बंधाये पोनी कस फक्क सफेद बाल, अइसे लागय जइसे पटवा के रेसा के गट्ठा ल बड़े दाई ह अपन मुंड़ म खपल लेहे। ओकर बड़े – बड़े गोटारन कस आंखी मोर आंखी म झलकगे। भरे तरिया के पानी कस लहरा मारत बड़े दाई मोर आंखी म घेरी – भेरी झूले लागिस। मोर कान ल भरमा भूत धर लिस – बड़े दाई मोर नांव ल लेके बलावत हे का ? गजब दिन बाद…
Read Moreमसखरी : देवता मन के भुतहा चाल
गोठ कई रंग के होथे, सोझ-सोझ गोठ, किस्सा कहानी, गोठ, हानापुर गोठ, बिस्कुटक भांजत गोठ, बेंग मारत गोठ, पटन्तर देत गोठ, चेंधियात गोठ, हुंकारू देवावत गोठ, ठट्ठा मढ़ावत गोठ, मसखरी ह मसखरिहा गोठ आय। येहू ह मौका कु मौका म काम देथे। केयूर भूषण जी ह येला एक अलग विधा के रूप म स्थापित करे हावय। मसखरी ह व्यंग्य विद्या ले थोरक अलग हावय। जब अइसे लागथे के मोर गोठ म सुनके आगू वाला ह मंतिया झन जाय तब ठट्ठा मसखरी मढ़ावत सिरतोन के गोठ ल गोठिया ले। अब तो…
Read Moreगरीबनवाज ला गरीब के पाती
हे अमीर मन के आनन्ददाता भगवान लाख-लाख पैलगी आसा हे के तुमन क्षीरसागर मा बने मंजा के सुते होहू अउ लछमी माता हर तुंहर चरणारबिन्दु ला हलु-हलु चपकत होहीं। तेखरे सेती ये मिरतुलोक मा का का अनियाव होवत हे तेखर तुंहला थोरको आरो नई हे। देवर्षि नारद घलो के तमूरा सुनई नई देवत हे, कोन जनी उहू कोनो ठऊर मा सुस्तावत होहीं। नहिं तो, ओ हर पृथ्वी लोक के कहूं चक्कर लगातीन, अऊ कहूं इहां के हाल तुंहला बतातीन त तुमन अभी तक कई खेप ये धरती मा अधरम के…
Read Moreबियंग : बिहतरा बाजा अउ बजनिया
बीच दुआरी म ठाढ़े बजनिया मन के बाजा के सुर लागे राहे। उंखर पोसाक ह देखेच के लाइक राहै। कोन्हों हर हाफ पैंठ पहिरे राहे त कोन्हों ह फुल पैंठ। कोन्हों कुरता त कोन्हों सेंडो। एक झन के पैंठ के पाछू कथरी सूत के टांका ल देख के अइसे लागै जइसे अभीच-अभी मरीज ल ‘आपरेशन थियेटर’ ले निकाले हावे। बिहतरा सीजन म बाजा ले जादा बजनिया के भाव बाढ़े रथे अउ बाजा बिना बिहाव म मजा आय घला नहीं। सबो के सउंख उमियाह रथे बाजा बर। बिहाव म होइस बाजा,…
Read Moreलव इन राशन दुकान
पिक्चर देखइया मन मोला गारी देवत होहू के लव इन टोकियो, लव इन पेरिस- असन महूं हा लव इन रासन दुकान- शीर्षक में लिख दे हौं, फेर का करबे घटना ओइसनेच हे, के मोला लव इन रासन दुकान लिखे बर परगे। दू साल पहिली के फ्लैशबुक आप मन ला लेगत हौं। रासन के दुकान के लाइन में माटी तेल ले बर अपन लाइन में एक लड़की अउ अपन लाइन में एक लड़का खड़े राहय। दूनो झन आजू-बाजू एके सोझ में होगे राहयं। दूनो झन पहिली एक-दूसर ला देख के मुस्कइन,…
Read Moreबियंग : रचना आमंतरित हे
ए खभर ल सुनके कतको अनदेखना इरखाहा मन के छाती फटइया हे। हमन बड़ गरब गुमान से सूचित करत हावन के साहित जगत म जबरन थोपे-थापे, लदाए-चढ़े साहितिक संसथा ‘धरती के बोझ’ हॅं अपन नवा किताब ‘‘बेसरम के फूल’’ के परकासन करके अतिसीघरा साहित जगत म अति करइया हे। जेन हॅं तुहर घुनावत टेबुल म दिंयार चरत माढ़े फोकट फालतू किताब मन संग धुरियावत दांत निपोरत साहित के नाक ल काटे म कोनो किसिम ले कसर नइ छोड़य। पढ़इया के मन म घलो फुसका असर नइ छोड़य। जानबा रहय के…
Read Moreमोला नेता बना देते भोले बाबा
घर म दुए झिन महतारी बेटा राहय। बेटा के नांव तो रिहिस बोधराम फेर जादा अक्कल-बुद्धि नइ फइलात रिहिस। पढ़ई-लिखई घलो ठिकाना नइ परिस। बर-बिहाव लगइया सगा मन पूछे, का करथे तोर बाबू ह तेखर जवाब देना मुसकुल हो जाय ओखर महतारी ल। भुंइया गरू रिहिस बोधराम ह। दिन भर लठंग-लठंग किजरय अउ खाय के बेरा घर म पइध जाय। ओखर दाई काहय-बेटा, कुछू काम बुता करे कर रे। बइठे-बइठे तरिया के पानी घलो नी पुरे गा। फेर बोधराम रिहिस चिक्कन हंड़िया। ओमा कहां पानी ठहरना हे। दाई के कहना…
Read Moreबियंग : भइंस मन के संशो
रेंगत-रेंगत कारी भइंस किहिस सिरतोन मं बहिनी हमर मन के जनम तो दुहायच बर होय हावे। न चारा न पानी, एक मुठा सुख्खा पैरा ला आघू मं फेंक दिन अउ दुहत हे लहू के निथरत ले। दूध ला हमर पिला मन बर तक नइ छोड़य बेईमान मन। हमरे दूध, हमरे दही, हमरे घी अउ लेवना ला खा-खा के मोटावत हे पेटला मन अउ मटकावत हे रात दिन। गांव के बाहिर मं परिसर छइंहा मं भूरी भइंस पघुरावत बइठे रहय। तभे खार डहर ले लहकत कारी भइंस आगे। कारी भइंस ला…
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