अडहा बईद परान घाती : पटवारी साहेब जब डाग्‍डर बनिस

संगी हो जोहार लओ हमर पटवारी भईया हा जम्मो जमाना ला सुधारे के ठेका ले डारे हवय अपन परन के एकदम पक्का हवय,”परान जाये पर बचन न जाये तईसे,एही सुधारे के बुता मा कईयों बेर मार खा डारे हवे पर सुधरे नहीं,एक घांव हमर गांव मा राजीव दीक्षित आये रिहिसे,स्वदेशी आन्दोलन चलावे, तौन हा बता डारिस के बहुराष्ट्रीय कम्पनी के मॉल खरीदे मा हमर देश के कतना नुकसानी हवय,पटवारी भईया हा बने चेत लगा के सुनिस अऊ ओखर बाद एक दिन वो हा पढ़ डारिस के कोनो दवई कम्पनी हा पहिले दवई बनाथे…

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अडहा बईद परान घाती : पटवारी साहेब जब डाग्‍डर बनिस

संगी हो जोहार लओ हमर पटवारी भईया हा जम्मो जमाना ला सुधारे के ठेका ले डारे हवय अपन परन के एकदम पक्का हवय,”परान जाये पर बचन न जाये तईसे,एही सुधारे के बुता मा कईयों बेर मार खा डारे हवे पर सुधरे नहीं,एक घांव हमर गांव मा राजीव दीक्षित आये रिहिसे,स्वदेशी आन्दोलन चलावे, तौन हा बता डारिस के बहुराष्ट्रीय कम्पनी के मॉल खरीदे मा हमर देश के कतना नुकसानी हवय,पटवारी भईया हा बने चेत लगा के सुनिस अऊ ओखर बाद एक दिन वो हा पढ़ डारिस के कोनो दवई कम्पनी हा पहिले दवई बनाथे…

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फोकट के गियान झन दे सियान :पटवारी के गोठ-बात

संगी हो जोहर लओ काली के गोठ ला आगे बढ़ावत हौं संगी हो, हमर पटवारी भैया के किस्सा नई सिराय हवे, एखर तो एक ले एक किसा हवे, पटवारी ला पढ़े के बहुत सौउंख हवय, सबे तरह के पुस्तक ला पढ़थे, पुस्तक पढ़ना घलो एक ठक बीमारीच आये, घर ले पटवारीन हाँ बाजार भेजते साग ले बर, ता बूजा हा साग के पईसा के पुस्तक बिसा डारथे, रेलगाडी मा जाथे ता बिदाउट जाथे, साधू के बाना ला लगा के भेस बदल के चल देथे अऊ टिकिस के पईसा के पुस्तक…

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पईधे गाय कछारे जाए,पटवारी साहेब ला कोन समझाए.

संगी हो जोहार लओ देखथवं मेहा आज कल समाज सेवा बड चालू होगे हवय, जहाँ देखबे उहां समाज सेवा,ये दे समाज सेवा हा एक ठक बहुत बड़े बीमारी हवय,छुतहा रोग हे,कई झन बड सौख ले करथे कई झन अपन जी पिरान ला बचाए बर करथे,हमर एक झन मयारू मितान हवय,हमन ओला पटवारी भइया कहिके बलाथन, उहू ला समाज सेवा के बीमारी धर डारे हवय,आज कल संस्कार अऊ सेवा,लईका मन ला सुधारे के गोठ,अऊ नाना परकार के गियान फोकट में बाटंत रहिथे,जम्मो गांव भर के मनखे मन ओखर ले अब डराय…

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किसीम किसीम के साहित सेवा अउ भोभला बर चना चबेना

संगी हो जय जोहार, में हाँ दू चार दिन पहिले ये बुलाग के सेवा ले हवं. एखर ले पहिले में हाँ नई जानत रहेवं काला बलाग कथे, जानेवं ता महूँ हाँ अपन गोठियाये के खजरी ला मेटाए बर ये दे बूता ला कर डारेवं, मोर डिमाग ले बुलाग के बूता हाँ बुलाग कम, बुलक दे जियादा हवये, हमन हांना कथन ना “मार के टरक दे अऊ खाके सूत जा” तईसने बूता बुलाग के हवे. अपन गोठ ला गोठिया ले तहां काखरो झन सुन. ओ कोती मूड ला पटकन दे. अऊ…

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कुरसी नी पुरत हे

का जमाना आगे हे भगवान, तुही मन बताव काय करना चाही। जमाना कतका आघु बढ़त हे। तेनहा काकरो ले लुकाय नई हे। कुछु समझ नी आय काय करना चाही। आज के बेरा मा खुरसी के मरमे ला देखलव। पहिली जमाना मा सुघ्घर घर लीप के पहुना ला भुंईंया मा बईठारयं। घर के मनखे संग बईठके सुघ्घर गोटियावंय। पहिली के मन ला अईसने सगा माने मा बिक्कट मजा आय। बेरा के बदलाव संग धीर-धीर येहु मा बदलाव अईस। सबो मा बदलाव आवत हे ता येहु मा बदलाव तो आनाच हे अउ…

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मनखे अउ सांप

हमर गांव के गली मएक झन सांप देखइया ह आइस.सांप देखौ सांपकहिके जोरदार हांका ल लगाइस.सांप वाले के आरो लघर के मन पाइन.सांप देखे के सौंख मसबे झन बाहिर निकल आइन. संवरा ह सांप के मुंह मअपन अंगठा ल लगाइस.फेर बिख उतारे मंतर लमने मन म बुदबुदाइस.मोटरी ल खोल केजड़ी बुटी ल लगाइस.फेर उही जड़ी बुटी केकीमत ल बताइस.सबे सियनहा मनसांप के पांव परे लागीन. पढ़े लिखे मनसांप के जात ल पूछे लागीन.तभे…रेमटा असन भोला हसांप ल देख के किकयाइस.फेर ओकर मुंह लेअटपटहा असन गोठ ह निकल आइस.पूछीस…ह ग… सांप…

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साल गिरहा मना लेतेन जोड़ी

कुकरा बासे नी रिहिस हे। बड़ बिहनिया ले गोसईन हा सुत उठके घर दुवार ला लीप बहार के तियार होगे। मेंहा देखेंव अउ कलेचुप सुतगेंव। गुनत रेहेंव येहा आज पहिली ले कईसे सुतके उठगे हावे कहिके। मोला काय करना हे कहिके धियान घलो नी देंव। गोसईन हा मुंदेरहा ले चहा लान के मुरसरिया मेर आके बईठ गे। तहाने मोला किथे उठना जोड़ी चहा पीले। पहिली बेर तो मेंहा अनसुनी कर देंव, दुसरैय्या मा धीरलगहा काय होगे कहिके कनवात उठेंव। त गोसईन हासत मोर हात मा चहा ल धरात किथे येदे…

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फेरीवाला

हमर देस हा जबले अजाद होय हावय तेन बखत ले सबला अजादी मिलगे हावय। तेकरे सेती कोनो हा डर नाव के कोनो जिनिस होथे तेनला भुलागे हें। अजादी मा डर के कोनो बाते नईहे। ईही अजादी के फेरा मा जेनहा काय होही देखे जही कहिके कुछु करथे तेकर काहीं घलो नी होवय। अउ डरराय असन ईमान ले जेनहा कुछु करथे तेकरे टोटा मा फांसी वोरमात रिथे। मोला तो अजादी के पर भासा समझे नी आय। नानपन मा दाई-ददा के बंधना, उहा ले निकले तहाने गोसईन लोग-लईका के बंधना अउ बुढ़ापा…

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कईसन कब झटका लग जही…..

काय करबो संगी जिनगी मा जीये बर हे ता खाये-पीये ला परही। करू-मीठ दूनों के सुवाद ला घलो ले बर परही। येदे जिनिस करू हरे नई खावन, येदे गिनहा हे नई खान केहे मा नी होवय। खाबे तभे होही ना, सुवाद ला लेबे तभे तो। अइसने जिनगी मा बने-गिनहा सबो जिनिस ला जाने-अनजाने मा करेच ला परथे तभे जिनगानी ला जीये के रद्दा हा बनत जथे। अईसने हमन सबो के जिनगानी मा कोनो न कोनो रूप मा झटका घलो लगत रिथे। इही झटका ले सीख घलो मिलथे। बिगर झटका खाय…

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