मुसुवा के मूँड़ पीरा

मुसुवा कहय अपन प्रिय स्वामी गनेश ले। कब मिलही मुक्ति प्रभु कलजुग के कलेश ले।। बारा हाल होही अब गियारा दिन के तिहार मा, बइठाही घुरुवा कचरा नाली के तीरतार मा, बिकट बस्साही छपके रबो मुँह नाक ला। माटी मिलाही प्रभु हमर दूनों के धाक ला। आनी-बानी के गाना ला डी.जे. मा बजाही। जोरदरहा अवाज सुन-सुन हमर माथा पिराही। जवनहा लइकामन रंगे रहीं भक्ति के रंग। पंडाल भीतरी पीही खाहीं, करहीं उतलंग। सेवा के नाँव मा मेवा ये मन पोठ खाहीं, नइ बाँचही तहाँ ले मोर नाम बद्दी धराहीं। गणेश…

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धनी धरमदास के सात छत्तीसगढ़ी पद

(1) पिया बिन मोहे नीक न लागै गाँव। चलत चलत मोर चरन दुखित भे, आँखिन पर गै धूर। आगे चलौ पंथ नहिं सूझै, पाछे परै न पॉव। ससुरे जावँ पिया नहिं चीन्है, नैहर जात लजावै। इहाँ मोर गाँव, उहाँ मोर पाही, बीच अमरपुर धाम ॥ धरमदास बिनवे कर जोरी, तहाँ गाँव ना ठाँव ॥ (2) साहेब बूड़त नाव अब मोरी काम क्रोध के लहर उठत हे, मोह-पवन झकझोरी | लोभ मोरे हिरदे घुमरत हे, सागर वार न पारी ॥ कपट के भँवर परे हे बहुते, वों में बेड़ा अटके |…

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छत्तीसगढ़ी कविता के सौ साल: संपादक-डॉ. बलदेव

हमर तो ए मेर उद्देस्य एकेच ठन आय के छत्तीसगढ़ के सब्बोच अंचल के कवि मन ले थोरथार परिचय हो जाए। ए संकलन खातिर छत्तीसगढ़ी के चारों मुड़ा म संपर्क करे गय रहिस अठ कवि मन के कविता मन ल एक जगह रखे के प्रयत्न करे गइस | बहुत झिन कवि मन के रचना जेमन पत्रिका अउ किताब मन मा परकासित हे, अउ जेमन मिल सकीन ते मन ले कम से कम एकक ठिन प्रतिनिधि कविता के संकलन तियार करे गइस हे। बीस- पच्चीस साल ले हमर संगी जंवरिहा मन…

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सरगुजिहा व्‍यंग्‍य कबिता: लचारी

जीना दूभर होइस, अटकिस खाली मांस है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। झाडू-पोंछा बेटा करथे, घर कर भरथे पानी। पढ़ल-लिखल मन अइसन होथें, हम भुच्चड़ का जानी। दाई-दाउ मन पखना लागें, देवता ओकर सास है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। जबले घरे बहुरिया आइस, टी.बी. ला नइ छोड़े। ओकर आगू नाचत रथे, बेटा एगो गोड़े। रोज तिहार हवे उनकर बर, हम्मर बरे उपास है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। होत बिआह बदल गे बेटा, देथे हमला गारी। अप्पन घर हर भुतहा,…

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कविता : बुढ़ापा

एके झन होगे जिनगी रिता गे रेंगे बर सफर ह कठिन होगे जिये बर अउ मया बर जीव ललचथे निरबल देह गोड़ लड़खड़ाते आंखी म अपन मन बर असीस देवथे हमर बुजुर्ग मन जेला बेकार अउ बोझ समझेंन एक ठन कोनहा ल उंखर घर बना देन सिरतोन म बुढ़वा होना बोझ हरे घर परिवार बर बिधन बाधा हरे आज के पढ़ें लिखे लोग बर आवव सोचव अउ विचार कर काबर काली हमरो बारी हे इही मोहाटी ले गुजरे के हमरो पारी से ललिता परमार बेलर गांव, नगरी

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लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला

लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला। जांगर टोर कमाने वाला है कंगला के कंगला। देखत आवत हन शासन के शोसन के रंग ढंग ला। राहत मा भुलवारत रहिथे छत्तीसगढ़ के मनला। हमरे भुंइया ला लूटत हें, खनथें हमर खनिज ला। भरथे अपन तिजोरी, हरथें हमर अमोल बनिज ला। चोरा चोरा के हवै ढोहारत छत्तीसगढ़ के वन ला। लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला। लाठी गोली अउर बूट से लोकतंत्र चलवाथें। अइसन अफसर छांट छांट के छत्तीसगढ़ मा लाथें। नेता मन सहराथें अइसन शासन के हुड़दंग ला। लोटा धरके…

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तीजा तिहार

रद्दा जोहत हे बहिनी मन, हमरो लेवइया आवत होही। मोटरा मा धरके ठेठरी खुरमी, तीजा के रोटी लावत होही।। भाई आही तीजा लेगे बर, पारा भर मा रोटी बाँटबोन। सब ला बताबो आरा पारा, हम तो अब तीजा जाबोन।। घुम-घुम के पारा परोस में, करू भात ला खाबोन। उपास रहिबो पति उमर बर, सुग्घर आसिस पाबोन।। फरहार करबो ठेठरी खुरमी, कतरा पकवान बनाके।। मया के गोठियाबोन गोठ, जम्मों बहिनी जुरियाके। रंग बिरंगी तीजा के लुगरा, भाई मन कर लेवाबोन। अइसन सुग्घर ढ़ंग ले संगी, तीजा तिहार ला मनाबोन।। गोकुल राम…

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तीजा पोरा

तीजा पोरा के दिन ह आगे , सबो बहिनी सकलावत हे। भीतरी में खुसर के संगी , ठेठरी खुरमी बनावत हे।। अब्बड़ दिन म मिले हन कहिके, हास हास के गोठियावत हे। संगी साथी सबो झन,  अपन अपन किस्सा सुनावत हे।। भाई बहिनी सबो मिलके , घुमे के प्लान बनावत हे। पिक्चर देखे ला जाबो कहिके, लईका मन चिल्लावत हे।। नवा नवा लुगरा ला , सबोझन लेवावत हे । हाँस हाँस के सबोझन,  एक दूसर ल देखावत हे।। प्रिया देवांगन “प्रियू” पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़

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सुमिरव तोर जवानी ल

पहिली सुमिरव मोर घर के मइयां, माथ नवावव धन धन मोर भुइयां I नदियाँ, नरवा, तरिया ल सुमिरव, मैना के गुरतुर बोली हे I मिश्री कस तोर हँसी ठिठोली ल, महर महर माहकत निक बोली हे I डीह,डोगरी,पहार ल सुमिरव, गावव करमा ददरिया I सुवा,पंथी सन ताल मिलालव, जुर मिर के सबो खरतरिहा I जंगल झाड़ी बन ल सुमिरव, पंछी परेवना के मन ल सुमिरव I पुरखा के बनाय रद्दा मा चलबो नवा नवा फेर कहानी ल गढ़बो I पानी ल सुमिरव, दानी ल सुमिरव, बलिदानी तोर कहानी ल सुमिरव…

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बरखा रानी

बहुत दिन ले नइ आए हस, काबर मॅुह फुलाए हस? ओ बरखा रानी! तोला कइसे मनावौंव? चीला चढ़ावौंव, धन भोलेनाथ मं जल चढ़ावौंव, गॉव के देवी-देवता मेर गोहरावौंव, धन कागज मं करोड़ों पेड़ लगावौंव। ओ बरखा रानी……? मॅुह फारे धरती, कलपत बिरवा, अल्लावत धान, सोरियावतन नदिया-नरवा, कल्लावत किसान… देख,का ल देखावौंव? ओ बरखा रानी…..? मैं कोन औं जेन तोला वोतका दूरिहा ले बलावत हौं? मानुस,पसु,पक्छी, पेड़-पउधा… वो जीव-निरजीव, जेखर जीवन,जरूरत, सुघरई अउ सार तैं, मैं तोर वोही दास आवौंव। ओ बरखा रानी! तोला कइसे मनावौंव? केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘ बरदुली,कबीरधाम…

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