जग म आए के पहली , झन मारव कोनो बेटी ला। दुख म सुख म काम आते, झन धुतकारव बेटी ला। बेटी बिना हे जग ह सुन्ना, अऊ सुन्ना घर दुआर परछी ग। झन डालव कोनो गोड म बेड़ी, उड़ान दे बनके पनछी ग। पढ़न लिखन दे मन के ओला, करव झन कोनो सोसन ग। पढ़ लिख के ओ नाम कमाही, करही दाई ददा के नाम रोसन ग। बेटी बचाबो बेटी पढ़ाबो, इही नारा ल अपनाबो ग। नारी शक्ति ल जोर दे बर, कुछू करम ल अपनाबो ग। युवराज वर्मा…
Read MoreCategory: कविता
वाह रे कलिन्दर
वाह रे कलिन्दर, लाल लाल दिखथे अंदर। बखरी मा फरे रहिथे, खाथे अब्बड़ बंदर। गरमी के दिन में, सबला बने सुहाथे। नानचुक खाबे ताहन, खानेच खान भाथे। बड़े बड़े कलिन्दर हा, बेचाये बर आथे। छोटे बड़े सबो मनखे, बिसा के ले जाथे। लोग लइका सबो कोई, अब्बड़ मजा पाथे। रसा रहिथे भारी जी, मुँहू कान भर चुचवाथे। खाय के फायदा ला, डाक्टर तक बताथे। अब्बड़ बिटामिन मिलथे, बिमारी हा भगाथे। जादा कहूँ खाबे त, पेट हा तन जाथे। एक बार के जवइया ह, दू बार एक्की जाथे। महेन्द्र देवांगन माटी…
Read Moreदाई ददा भगवान हे
दाई ददा के मया दुलार म मनखे होथे बडका धनवान जी झन छोडव दाई ददा ल् जागत तीरथ बरथ भगवान जी जन्म देवइया दाई के करजा जिनगी भर नई छुटाए दाई के मया अमरित बरोबर दूध के संग म पियाये नवा रस्ता गढ़हईया हमर जिनगी रूप शील गुणवान जी दाई ददा के मया दुलार म मनखे होथे बडका धनवान जी उबड़ खाबड़ रस्ता जिनगी के ददा ह ओला चतवारे हे बाधा पिरा आईस जब जिंदगी ल् सुग्घर रखवारे हे पर उपकारी ददा के जिनगी धर्मात्मा युधिस्ठिर समान जी झन छोडव…
Read Moreअमरैया के छाँव म
गांव के अमरैया हावे तरिया के पार म बारो महीना हवा बहत हे सुर सुर छाँव म हावे टूटहा झोपड़ी डोकरी दाई सुलगाहे हे आगी खुर खुर खांस्त हे सड़क ल सुनावत हे देख तो डोकरी दाई अमरैया म जिनगी गुजारत हे लोग लईका मन छोड़ दिन साथ अब अमरैया म हावे रुख राई के बनके रखवार जिनगी जियत हे अपन मन के अब भुलागे दुःख अउ खुसी के चोहना बेटा जबले होंगे परबुधिया अब कोनो निये पुछैया बस रुख राई के बने हे रखवार अमरैया म अपन जिनगी काटत…
Read Moreकीरा – मकोरा
कीरा – मकोरा, पसु-पक्छी, पेड़- पउधा … देखथन नानम जोनि ल, अउ सोंचथन, अबिरथा हे उंखरो जीवन, खाये के सुख न जिये के, सोंचे – समझे के सक्ति न भगवान के भक्ति। का काम के हे ग अइसनों जिनगी? बेकार हे, बोझ हे। अउ उमन देखत होहीं जब हम ल, सोंचत होहीं- कीरा – मकोरा ले गेये बीते हे जिनगी मनखे के। खाए के सुख न जीये के, सोंचे के सक्ति न समझे के। हाय- हाय, खाली हाय -हाय संझा ले बिहिनिया तक, बिहिनिया ले सांझ तक। लदे रहिथे भय,भूख,भाव…
Read Moreतिंवरा भाजी
तिंवरा भाजी दार संग , अब्बड़ मिठाथे । दू कंऊरा भात ह संगी, जादा खवाथे । उल्हा उल्हा भाजी ह, बड़ गुरतुर लागथे । मिरचा लसून संग , जब फोरन में डारथे । नान नान लइका मन , चोराय बर जाथे । झोला झोला धरथे अऊ, मुँहू भर खाथे । ओली ओली टोर के, भौजी ह धरके लाथे । पेट भर भात ल भैया, चांट चांट के खाथे । हरियर हरियर देख के, गाय बेंदरा जाथे । कतको रखवारी करबे, राहीछ मताथे । थोर थोर खाय ले , भाजी अब्बड़…
Read Moreसुरता : जन कवि कोदूराम “दलित”
अलख जगाइन साँच के,जन कवि कोदू राम। जन्म जयंती हे उँकर,शत शत नमन प्रणाम। सन उन्नीस् सौ दस बछर,जड़ काला के बाद। पाँच मार्च के जन्म तिथि,हवय मुअखरा याद। राम भरोसा ए ददा, जाई माँ के नाँव। जन्म भूमि टिकरी हरै,दुरुग जिला के गाँव। पेशा से शिक्षक रहिन,ज्ञान बँटइ के काम। जन्म जयंती हे उँकर,शत शत नमन प्रणाम। राज रहिस अंगरेज के, देश रहिस परतंत्र। का बड़का का आम जन,सब चाहिन गणतंत्र। आजादी तो पा घलिन, दे के जीव परान। शोषित दलित गरीब मन,नइ पाइन सम्मान। जन-मन के आवाज बन,हाथ…
Read Moreसब हलाकानी हे
ददा के गोठ ल बेटा नइ भावय। घरो घर सास अउ बहू के कहानी हे। कतेक ल बताबे मितान? सब हलाकानी हे!!! लटपट लटपट टुरा दसमी पढे हे। बिहाव बर छोकरी खोजे म परसानी हे। कतेक ल बताबे मितान? सब हलाकानी हे!!! फोकट के जिनिस म घर-पेट भरत हन। अलाली म बितत हमर जिनगानी हे। कतेक ल बताबे मितान? सब हलाकानी हे!!! अरोसी-परोसी संग गोठ-बात बंद हे। फेर दुनियाभर संग मितानी हे। कतेक ल बताबे मितान? सब हलाकानी हे। रीझे यादव टेंगनाबासा छुरा [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]
Read Moreमोर महतारी
मोर महतारी बढ़ दुलारी, मया हे ओखर मोर बर भारी। अंचरा म रखे के मोला, झुलाथे मया के फुलवारी। महेकत रइथे मोर दाई के, घर अंगना अउ दुवारी।।। जग जानथे महतारी ह, होथे सब्बो ल प्यारी। कोरा म धर के लइका ल, जिनगी करथे उज्यारी। मोर महतारी बढ़ दुलारी, मया भरे हे ओखर म भारी। अनिल कुमार पाली तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़। प्रशिक्षण अधिकारी आई.टी.आई मगरलोड धमतरी। मो.न.-7987766416 ईमेल:- anilpali635@gmail.com [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]
Read Moreछत्तीसगढ़ी गीत-ग़ज़ल-छंद-कविता
होगे होरी तिहार होगे – होगे होरी के, तिहार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। करु बोली मा,अउ केरवस रचगे। होरी के रंग हा, टोंटा मा फँसगे। दू गारी के जघा, देय अब चार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। टेंड़गा रेंगइया हा,अउ टेंड़गा होगे। ददा – दाई ,नँगते दुख भोगे। अभो देखते वो , मुहूँ फार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। पउवा पियइया हा,अध्धी गटक दिस। कुकरी खवइया हा,बोकरा पटक दिस। टोंटा के कोटा गय , जादा बाढ़ गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। घर मा खुसर के,बरा-भजिया…
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