लुए टोरे के दिन आगे

पियंर पियंर डोली खार धान बाली लहलहावत हे लुए टोरे के दिन आगे मांथ ल नवावत हे रापा धरके कांदी छोले बियारा ल चतरावत हे जुड़ा ड़ाढ़ी सुमेला बंडी बईलागाड़ी ल सम्हारावत हे पेरा पुरा के पैरा डोरी बर बरके बनावत हे धान लुए बर हंसिया,बेठ लोहार कर पजवावत हे पात धरके चापे चाप करपा ल मढ़ावत हे थके मांदे निहरे निहरे कनिहा ल सोजियावत हे पेरा पुरा के पैरा डोरी बीड़ा बीड़ा बांधत हे मेड़ म बईठके बीड़ी पियत सुसती धपकी मारत हे डबल टिबल बोझा बिड़ा सुर मुड़ी…

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छत्तीसगढ़ी गीत ‘हाथी हाथी’

अभी हमर कोति जंगलिया हाथी बनेच दंदोरे हे, धान चंउर ल बनेच रउंद दारे हे, उही दुख ल गाय हंव। सरकार ह सीखे पढ़े (परसिक्छत) हाथी ल दक्छिन भारत ले लाने बर लाखों खरचा करत हन कहिथे, फेर का काम के? ‘पहुना परदेशिया’ उही हाथी बर लिखे हंव! रंग महल राज्योत्सव तनी इशारा हे! हाथी हाथी हाथी बज़े बड़े अउ नानकुन हाथी झिंकय पुदगय टोरे ठठाये आगु म जेला पातिस आए जंगलिया हाथी कहां ले आए अटकत भटकत ढेला पथरा हपटत हाथी ह फेर हाथीच आय बइठगे त घुचथे लटपट…

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जाड़ हा जनावत हे

बिहनिया ले डोकरा बबा कुडकुडावत हे चिरइ चिरगुन पंख फड़फडावत हे बडे बिहनिया झन उठीहा संगी अब के जाड़ हा जनावत हे दाई हा पनपुरवा बनावत हे ददा मंद मंद मुचमुचावत हे एति तेति झन गिंजरिहा संगी अब के जाड़ हा जनावत हे डोकरा बबा बिडी सुलगावत हे डोकरी सरसों तेल कडकावत हे आगी के तिर ले झन उठिया हा संगी अब के जाड़ हा जनावत हे भइसी बइठे पगुरावत हे राउत ला भइसी लतीयावत हे जाड मा झन नोहावा संगी अब के जाड़ जनावत हे भउजी लइका ला खिसियावत…

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कविता : बेरा हे गीत गाय के

शीत बरसावत आवय जड़काला सोनहा बाली म मोती कस माला पिंवर होगे पहिरे हरियर ओनहा जइसे दुलहिन बिहाव के ओढ़े दुशाला! खेत ह लागे भांय भांय सांय सांय घर जइसे बेटी के छोड़त अंगना उछाह उछलय कोठी कोठार म जस कुलकत मीत मया के जोरत बंधना! मने मन म हांसी एक मन आगर जुड़ावय शीतलावय थोकन जांगर दान पून करके चुकता पउनी पसारी नाचत बजावत सबझन मांदर! बेरा हे गीत ल गाय के संगी दुख पीरा ल भूलाय के संगी तन संग मन ल फरियर करके जुर मिल तिहार मनाय…

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धान – पान

हरियर हरियर खेतहार हे , धान ह लहलहावत हे । सुघ्घर बाली निकले हाबे, सब झन माथ नवावत हे । सोना जइसे सुघ्घर बाली , हवा में लहरावत हे । अपन मेहनत देखके सब झन , मने मन मुसकावत हे । मेहनत के फल मीठा होथे , ‘माटी’ गाना गावत हे । धान ल अब लुए खातिर , हंसीया धरके जावत हे । सबो संगवारी हांस हांस के, ठाड़ ददरिया गावत हे । करपा ल अब बांध बांध के , बियारा कोठार में लावत हे । महेन्द्र देवांगन “माटी” गोपीबंद…

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पुन्नी मेला घुम आतेन

कातिक पुन्नी के मेला भराय चल न मयारु घुमेल जातेन भोले बाबा बर असनान करबो फुलपान केला जल चढ़ातेन लगे रथयं अब्बड़ रेला दरस करके घलो आतेन फोड़तेन नरियर अउ भेला मनके मनौती मांग लेतेन खांसर बईला म बईठके होहो तोतो हांकत दउंड़ातेन संगी जहुंरिया संग जोराके महादेव घाट मेला जातेन लाई मुर्रा चना फुटेना खाय बर बिसाके लातेन लाली लाली पढ़र्री खुशियार चुहक चुहक के खातेन आनी बानी के सजे दुकान खोवा बतासा खरिदतेन मजा लेबोन ढ़ेलवा रहचुली संग बईठके झुला झुलतेन घुमत घामत मजा लेवत सांझ मुंदिहार घर…

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दूध के करजा चुकाले रे

छत्तीसगढ़ के धुर्रा माटी, माथ म तैंहा लगा ले रे। थाम के तिरंगा हाथ मा, वन्दे-मातरम् गा ले रे ।। बइरी दुस्सासन, ताकत हे आज, भारत माँ के अँँचरा ल। डंडा मार के दूर भगाबे, आतंकवाद के कचरा ल।। जा बेटा आज, दूध के करजा चुकाले रे…. राष्ट्र धरम ले बढ़के, अउ कोनो धरम ईमान नही। भारत भुंईयां ले बढ़के, अउ कोनो भगवान नही।। अपन, कतरा कतरा लहू के भुईंयाँ बर बहाले रे…. राम कुमार साहू सिल्हाटी, कबीरधाम मो.नं. 9977535388 [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]

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छत्तीसगढ़ी कविता : सीडी महिमा

गजब जिनिस ए सीडी संगी समाये इही म जम्मो संसार काकरो बर ये धन दोगानी काकरो बर ये हरे तलवार! देश बिदेश के परब संस्कीरति देखाय बताय सब ल उघार मनरंजन बर घर घर आए धरके बिडियो सनीमा अवतार! छोटे बड़े सब आपिस मन म कागज पत्तर के कम होगे काम जब ले बगरे ए बहुत गुणकारी जम्मो लेवत हे एकरेच नाम! हितकारी सरकारी ओजना ह चारो कोति इही म बगरथे जइसन काम के वइसन परणाम पानी म हागबे जरूर उफलथे! कहिथें तेलघानी राजधानी अउ कहिथें संस्कारधानी देखत सुनत हन…

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घर के फुलवारी

आनी बानी के फूल सजा के लिखथें मया पिरीत के परचा घर अंगना म फूले फुलवारी आओ कर लेथन एकर चरचा! छत्तीसगढ़ के ये आय चिन्हारी लाली पिंवरी चंदैनी गोंदा सादा सुहागा फूल दसमत ले सुघराये गजब घर घरोंदा! मुच मुच मुसकाये रिगबिग चिरैया मन लुभाये झुंझकुर गोप्फा पचरंगा लाली लाली लहराय मंदार पाठ पूजा बर होथे बड़ महंगा! हवा म मारे मंतर मोंगरा अपने अपन मन खिंचत जाय दिन भर के लरघाय जांगर रातरानी ले बिकट हरियाय! महर महर ममहाय दवना गोरी के बेनी म झुल झुल जाय देख…

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सुआ नाचेल जाबो

सुआ नाचेल जाबो संगी चलो सुआ नाचेल जाबो तरी हरी मोर सुअना नहा नरी नहा न गाबो संगी संगवारी जुर मिलके माटी के सुआ बनाबो माटी के सुआ शोभा बरनी हरियर रंग म रंगाबो सखी सहेली टोली बनाके चलो सुआ नाचेल जाबो तरी हरी मोर सुअना नहा नरी नहा न गाबो एके रंगके झम्मक लुगरा पहिरके नाचेल जाबो घर अंगना अउ पारा मोहल्ला सुआ नाच ल देखाबो सुआ नाचत गीत गा गाके ताली थपती ल बजाबो तरी हरी मोर सुअना नहा नरी नहा न गाबो!! मयारुक छत्तीसगढ़िया सोनु नेताम “माया”…

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