तोर दू दिन के जिनगानी हे,जादा झन इतराबे। दाई के गरभ मा परे रहे,तब धेरी बेरी गिंगियाय। तोर नाम ला जपहूं प्रभूजी,कहिके तंय गोहराय। जनम धरे दाई ददा के,मंया मा तंय बँधाबे। तोर दू दिन के… लइका पन मा खेले कूदे,जुवानी मंया बिलमाये। एको घड़ी सतसंग नइ करे,राम नाम नइ गाये। आही बुढ़ापा मुड़ धर रोबे,अपन करम ठठाबे। तोर दू दिन के… धन दोगानी महल अटारी ,तोर संग नइ जाही। बेटा बहू नाती नतुरा,सबो तोला तिरियाही। रामके नाम जपत रहिबे,जीवन सफल बनाबे। तोर दू दिन के… छल कपट अऊ झूठ…
Read MoreCategory: कविता
तुलसीदास
बाल्मीकी जब लिखे रमायन, पंडित ग्यानी गावत रिहिस! बावहन पढ़है संस्कृत भासा, आन जात मन दूर ले पावत रिहिस !! राम कथा ह पोथी म लुकाके, ऊंच जाति के मंदिर सोहावत रिहिस ! जइसन सुनावै तइसन सुनन, कोनो ह उलटा गंगा बोहावत रहिस !! तब एक रामभगत गुनगान करिस, हमर तोर देहाती के भासा ! रामचरित जनजन बर लिखिस, नाव कहाइस तुलसीदासा !! अनपढ़ गरीब ऊँच नीच सबो, अब राम कथा सब जानत हे ! धरम ह पोथी के बंधना ले छुटगे, सब मानस गंगा मानत हे !! ऊंच नीच…
Read Moreमंय छत्तीसगढ़ के बेटी अंव
मंय दूनो कुल के जोती अंव। अपन किसान के मंय किसानिन अंव। बड़े फजर पनिहारिन अंव। बोली में सुध्धर बानी अंव घर घर के खपरा छान्ही अंव भारत भुइयां के माटी अंव मंय छत्तीसगढ़ के बेटी अंव मंय दुलौरिन बेटी दाई के मंय राखी अंव गा भाई के मंय पहुना अंव भउजाई के अऊ परोसिन बर पहुनाई के मंय दुखिया के मिलोती अंव। मंय छत्तीसगढ़ के बेटी अंव मंय गंगा अंव मंय गीता अंव मंय रामचंन्द के सीता अंव अपन पति के मंय परनीता अंव छत्तीसगढ़हिन नंय सुरजोती अंव। मंय…
Read Moreशिक्षक दिवस 5 सितम्बर : सिक्छक हँव सरलग सिखथँव
सिक्छक हँव सरलग सिखथँव घेरी बेरी सोंच समझ लिखथँव।। गियान अंतस थरहा डारँव, सिखोना ल जोरदरहा साजँव। बेवहार बिचार बीजा सिचथँव।।१ सिक्छक हव सरलग सिखथँव.. करम कमल अँइलाय झन, मन निरमल मइलाय झन। मित मितान संगी बन मिलथँव।।२ सिक्छक हव सरलग सिखथँव… कहाँ ले लानव मैं उदाहरन, काखर बताँव कहिनी कथन। लइका बर मैं असल दिखथँव।।३ सिक्छक हव सरलग सिखथंव… कोंवर माटी म महिनत मोर, केंवची काया ल बनाहू सजोर। गुरतुर गोठ मा “अमित” रिझथँव।।४ सिक्छक हव सरलग सिखथँव… नवा समे हे, नवा जमाना हे, बाढ़त बिगियान ल बताना हे।…
Read Moreबेटी मन
बेटा कहूं जिनगी के डोंगा, त पतवार ए बेटी मन ! जेठ के सुक्खा परिया जिनगी, त सावन के फुहार ए बेटी मन !! नांगर के थके जांगर ल, एक लोटा पानी म हरियाथे ! चोंट लगथे दाई-ददा ल , पीरा उन ल जनाथे !! बहु बेटा के गारी बीच. मया दुलार ए बेटी मन.. बेटा कहूं…… नान्हे पांव के छुनुर पैरी, दुरिहा ले सुनाथे ! दाई ददा ल अइसे लगथे, जइसे जेठ म पुरवइय्या आथे !! मोर टुटहा कुंदरा के सिंगार ए बेटी मन… बेटा कहूं……….। बाप हिरदय मा…
Read Moreछत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, गुरतुर बोली मीठ भाखा हे । कोन करिया कोन गोरिया, छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । गाँव गवई के हमन रहइया, माटी के हावय घर अऊ कुरिया । बर पीपर हे तरिया नदिया, बाग बगीचा घन अमरइया । मन निरमल हे गंगा जइसे, सब ला मया करइया । धोती कुरता पटकू पहिरइया, चटनी बासी पेज खवइया । खुमरी ओढे चले नगरिहा, खेत खार म काम करइया । सोनहा जइसे अन्न उपजइया, सबके भूख मिटइया । तीजा पोरा देवारी मनइया, सुख दुख के संग देवइया । सुवा पंथी करमा ददरिया,…
Read Moreकिसान के पीरा : आरे करिया बादर
आरे करिया बादर अब आ रे करिया बादर सूक्खा परगे तरिया नदिया, जर के माटी होगे राखर। आरे करिया….. ददा के दवा अऊ बेटी के बिहाव, सेठ के कर्जा ल कइसे करिहौ। दुकानदार के गारी सुनके, खातू के लागा ल कइसे भरिहौ।। “आत्महत्या”के सिवा, अब नइये मोर जांगर.. आ रे करिया…… बूंद बूंद बर सब तरसगे, पीरा होगे किसान ल। दुनिया के पेट भरइया, अब कब बोहुं मैं धान ल? लइका मन के पेट बर बेचेंव बइला नांगर…… अब आ रे करिया……. टोंटा सुखा गे पानी बिना , चिरई चुरगुन…
Read Moreछत्तीसगढ़ के नारी
मैं छत्तीसगढ़ के नारी औं-२ मया पिरीत के जम्मो रूप, बाई. बेटी अऊ महतारी औं !! गउ कस सिधवा जान, अबला झन समझव ! नो हौं मैंहा पांव के पनही, मोर मन्सा ल झन रमजव !! लंका जइसे आगी लगाहूं, धधकत मैं अंगारी औं.. तन के गोरस मैं पिआके, बीर नरायन कस सिरजाथौं ! जिअत मरत के पीरा सहिके, तब ‘महतारी’ कहाथौं !! दुरजोधन दुस्सासन बर, मैं टंगिया दुधारी औं… हर परिवार ल जोड़ें रहिथंव, मैं ममता के गारा औं ! पिढ़ी के पिढ़ी संग बोहइया, पबरित गंगा धारा औं…
Read Moreपांच बछरिया गनपति
रजधानी म पइठ के परभावली म बइठ के हमर बर मया दरसाऐ हमीच ला अइठ के । रिद्धी सिद्धि पा के मातगे जइसे जोगीजति ठेमना गिजगिजहा पांच बछरिया गनपति ।। बड़े बुढ़वा तरिया के करिया भुरवा बेंगवा अनचहा टरटरहा देखाये सब ला ठेंगवा । पुरखऊती गद्दी म खुसरे खुसरे बना लीन येमन अपन गति अपनेच अपन बर फुरमानुक पांच बछरिया गनपति ।। लोट के पोट के भोग लगाये बोट के न करम के न धरम के परवाह निये खोट के मेहला घर धनिया के छिनार घला अबड़ सति जय हो…
Read Moreगणपति विराजे
सबके मन आज रमे हे भगतन के तांता लगे हे कानन कुंडल मुकुट मा साजे जय जय जय गणपति विराजे एति तेति पंडाल सजे हे बिहनिया संझा शंख बजे हे बाजत हावय गाजा बाजा पुजा पाठ जम्मो करबो आजा भगत जमके जयकार लगावा मुख ले फेर चित्कार लगावा षिव शंकर के डमरू बाजे जय जय जय गणपति विराजे षिव शंकर हावय पिता तुंहर कष्ट निवारण करा हमर गणनायक संग नंदी नाचे जय जय जय गणपति विराजे स्नेह प्रेम के गावा गाथा प्रभु चरनन मा टेका माथा कष्ट ला एहा हरही…
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