भारत रक्षा खातिर आबे, गणनायक गनेस ! भ्रस्टाचार के बेड़ी म बंधागे ! आज हमर देस !! गरीब के कोनो पुछइया नइये, मनखे धरम ल भुलत हे ! गाय मरत हे चारा बिना, किसान फंदा म झुलत है !! चोर गरकट्टा मन गद्दी म बइठे, धरके रखवार के भेस…. राम कुमार साहू सिल्हाटी, कबीरधाम
Read MoreCategory: कविता
मनतरी अऊ मानसून
नांगर बइला बोर दे पानी दमोर दे ।। लहरा के बादर मन ला ललचाथे आवथे अऊ जावथे किसान ला उमिहाथे लइका मन भडरी कस मटकावत गावथे नांगर बइला बोर दे पानी दमोर दे ।। सनझा के घोसना बिहिनिया बदल जथे उत्ती के अवइया बुड़ती मा निकल जथे मनतरी अऊ मानसून उलटा हे इंकर धुन कहे मा लागथे डरभुतहा कइसे धपोर दे ।। दुनो के सिंह रासि जब चाही तब गरजही जिंहा ऊंकर मन लागही तिहां तिहां बरसही कोन का करथें ऊंखर चाहे जादा या थोर दे दुब्बर ला दू असाढ़…
Read Moreतीजा
पति के लंबा उमर हो चाहे कोनो डहर हो खालव चाहे बर्गर पीजा एक बार रख लौ जी तीजा घरो घर गणपति विराजे फुल फुलवारी सारंग श्वर बाजे नई मिले चाहे तोला विजा एक बार रख लौ जी तीजा सखि सहेली नाचा गावा पुजा के थाली ला लावा दुब फुल हावय ताजा ताजा एक बार रख लौ जी तीजा गणपति हा हरही कष्ट हमर सबो के जीवन जाही समर करलव चालू गाजा बाजा एक बार रख लौ जी तीजा कोमल यादव मदनपुर, खरसिया
Read Moreझगरा फेंकी डबरा
रोजेच के वोइच , हावय कांव कांव जाओं ता छाँड़ के, घर ला काहाँ जाँव सास बोहो के झगरा, दई ददा के झगरा, भई भई के झगरा, भई बहिनी के झगरा दई बेटी के झगरा ददा बेटा के झगरा दई बेटा के झगरा ददा बेटी के झगरा कका काकी के झगरा डौका डौकी के झगरा बोबा बाई के झगरा बहिनी बहिनी के झगरा कका भतीजा के झगरा बोबा नाती के झगरा भई भउजी के झगरा देरानी जेठानी के झगरा मैंहर फूर बात कइथों झन समझबे लबरा फेंक अई सबो झगरा…
Read Moreबिधना के लिखना
घिरघिटाय हे बादर, लहुंकत हे अऊ गरजत हे। इसने समे किसन भगवान, जेल मा जन्मत हे।। करा पानी झर झर झर झर इन्दर राजा बरसात हे। आपन किसन ला ओकर हलधर मेर अमरात हे।। चरिहा मा धर, मुड़ मा बोह,किसन ला ले जात हे। जमुना घलो उर्रा पूर्रा हो,पांव छूये बर बोहात हे।। बिरबिट अंधियारी रतिहा, जुगजुग आँखि बरत हे। ता अतका अंधियारी मा,रपा धपा पांव चलत हे।। जीव के डर आपन जीवेच ला, नंद मेर छाँड़ देथे। ओकर बिजली कइना ला, आपन चरिहा म लेथे।। कुकराबस्ता आपन ला कंस…
Read Moreदेस बर जीबो,देस बर मरबो
देस बर जीबो,देस बर मरबो। पहिली करम देस बर करबो।। रहिबो हमन जुर मिल के, लङबो हमन मुसकिल ले। भारत भुँइयाँ के सपूत बनबो। धरती महतारी के पीरा हरबो।।१ देस बर जीबो……………. जात-धरम के फुलवारी देस, भाखा-बोली के भन्डारी देस। सुनता के रंग तिरंगा ले भरबो। बिकास के नवा नवा रद्दा गढ़बो।।२ देस बर जीबो……………. ऊँच-नींच के डबरा पाट के, परे-डरे ल संघरा साँट के। बैरी के छाती म हमन ह चढ़बो। दोगला ल देस के दार कस दरबो।।३ देस बर जीबो……………. किरिया हे अमोल अजादी के, नवादसी तिरंगिया खादी…
Read Moreसंसो झन कर गोरी
संसो झन कर गोठ हा करेजा म रहि जाही। मया करे के येही बेरा हे नई तो पहर हा सिरा जाही।। आबे मोर तीर म ता तोला मया के झुलना झुलाहुं। लाली टिकली ला तोर मुड़ म सजाहुं। आँखि ला टेढ़ के एके कनी देखथस। मया देके पारी म अपन मुँह ला फेरथस। मोर अतका मयारू फेर तैं हा कहां पाबे। मोर मया बानी ल दूसर संग कईसे गोठियाबे। अनिल कुमार पाली तारबाहर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ प्रशिक्षणअधिकारीआईटीआईमगरलोडधमतरी। मो:-7722906664,7987766416
Read Moreमोर हतिया झन करवाबे दाई
मोर हतिया झन करवाबे दाई तोर बेटी अंव। दाई तोर बेटी अंव बाबू तोर बेटी अमल। मोला पेट में झन कटवाबे, दाई तोर बेटी अंव। बाबू तोर बेटी अंव. तोर गरभ ले जनम लेहूं दाई, खेलहूं बाबू के कोरा। अंगना में तोर किलकारी देहूं, खेलहूं चुकी पोरा। भारत भुईयां में जनम धरे के मन मा मोरो साध. दाई तोर बेटी अंव बाबू तोर बेटी अंव। मोर हतिया झन करवाबे… आज के बेटी पढ़ लिख दाई, जज इंजीनियर बनगे। रेल गाड़ी अऊ जिहाज हा दाई, बेटी मन ले चलगे। फउजी बनके…
Read Moreकाबर सूना हावय कलाई
भैया तैं मां के सेवा करथस दिन अउ रात मन मा लुका रखे हंव मैं हा कोनो भी हो बात कछु भी नई कहस तैं हर कतको हो आघात खुष रइबे मां के सेवा में चाहे कठिन होवय हालात हम सबके रक्षा में भाइ्र्र सुना हावय कलाई अमन शांति होवय जग मा झन होवय लडाई भारत माता के छंइहा मा काबर सुना हावय कलाइ्र्र दुष्मन के घर घलो माता हावय हावय बच्चा अउ बुढवा बहिनी ला बस ये कहना हे तैं हर हमर दुलरूवा वो चल के गिरना तोर हमन…
Read Moreराखि तिहार
बहिनी कोखरो नई हे ता जीवन बेकार हे अक्षुन्य विष्वास हावय जहां ओखरे नाम राखि तिहार ए मॉं के ममता अउ पिता के दुलार हे बहिनी के बकबक हे जहां ओखरे नाम राखि तिहार ए जीवन के कोनो मोड़ मा अनुराग मिले बेषुमार हे कृति में केंद्रित हावय मनुजत्व जहां ओखरे नाम राखि तिहार ए बहिनी के डोली के सपना अब मोर उपर उधार हे बिदाई के आषु हावय जहां ओखरे नाम राखि तिहार ए बुढवा मन के लउठी बनना हम सबों के संस्कार हे आंखि मां आतुरता हावय जहां…
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