नवा बिहान

हरियर-हरियर भुईया अउ चिड़िया-चिरगुन चहकत हे। नवा बिहान के सुग्घर-सुग्घर अंगना महकत हे। सोनहा कस हे माटी देख कइसन चमकत हे। संगी-संगवारी मन के संग म गुनत हे। लाली-लाली रंग म सुरुज दमकत हे। बगरा के उजियारा अंगना म पसरत हे। नदिया नरवा ह कईसन सुग्घर बोहावत हे। भुईया के अंगल अपन रंग म रंगत हे। सुरूर-सुरूर कहिके बैरी पवन ह चलत हे। महका के माटी ल मोर तन ल छुवत हे। अनिल ‘रामकुमारी’ पाली तारबाहर बिलासपुर। आई टी आई मगरलोड धमतरी 7722906664

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हमर घरे मा हावय दवई

मेंथी दाना पीस के राखव, एक चम्मच पानी मा चुरोवव। रोजे दिन येला पियव,रोग बिमारी ला धुरोवव। नून शक्कर कुछु झन डारव, सोझे येला पीबो। आंव, शुगर, माडी पीरा मिटाही, सुख के जिनगी जीबो। पेट बिकारी रहिही तेमा, मीठ्ठ छाछ, दही पानी ला पीबो। पेट दरद अनपचक नइ होही, बने जनगी जीबो। रोजे दिन जउन अांवरा खाही, बांचे रहिही बिमारी ले। दिल के बिमारी कभू नइ होही, बांचही बी.पी.के चिन्हारी ले। जेवन खाय के पाछू हांथ के पानी झन पोछव. दूनोंं हथेरी ला रगर के, आंखी कान के उपर धरव।…

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सावन समागे रे

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”] धरती आज हरियागे रे। सावन सुग्घर समागे रे।। मोर मयारू के मया म, मन के पिरीत पिऊँरागे रे।। सावन सुग्घर समागे रे………. बादर गरजे, बरसा बरसे, बिन जोंही के हिरदे तरसे। अँखिया ले आँसू बोहागे रे। सावन सुग्घर समागे रे।।१ गिरत हे पानी,चुहत हे छानी, कहाँ लुकाय हे मोर ‘मनरानी’। आस के अँगना धोवागे रे। सावन सुग्घर समागे रे।।२ ऊँघाय तन अउ जागय मन, चेहरा तोर,हिरदे के दरपन। असाङ कस तैं लुहादे रे। सावन सुग्घर समागे रे।।३ चुरपुर ठोली,गुरतुर बोली, जुच्छा परे हे…

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किसान

रदरद रदरद गिरगे पानी, चूहे परवा छानी । ठलहा काबर बइठे भइया, आगे खेती किसानी । ये गा किसान, कर ले धियान चलव खेत चलव गा । नांगर जुवाड़ी ल जोर के भइया, धर ले बिजहा धान । अदरा अदरा बइला हावय, होथे हलाकान । अब होगे बिहान , जल्दी उठव किसान चलव खेत चलव गा । झउहा रापा कुदारी धर के, चलव दीदी लइका सियान । खातू गोबर ला खेत मा डारव,खनव दूबी कांद ।। बांधव मेड़ बंधान, करव मेहनत जी जान चलव खेत चलव गा।। राहेर कोदो कुटकी…

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सावन

व्याकुलता छाए हे तन मन मा अकुलित हम सब यौवन मा जम्मो कति बादर आ गे नाचत हे मजूर अब वन मा आकुल मन शांत हो गे हे बुढवा के चौपाल खो गे हे गावत हे डाल मा सुअन धरती के पियास बुझाय बर आ गे हे सावन मरूस्थल मा छाए हे हरियाली थक हार के बइठे तपन महाबली माटी के खुषबू मनभावन पियास बुझाए बर धरती के आ गे हे सावन चिखला फइले हे चहुॅंओर आवत हावय घटा घनघोर आंखि खोल उठ गे हे सुमन पियास बुझाए बर धरती…

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हाय रे मोर गुरतुर बोली

मोर बोली अऊ भाखा के मय कतका करव बखान, भाखा म मोर तीरथ बरथ हे जान ले ग अनजान। हाय रे मोर गुरतुर बोली, निक लागय न। तोर हँसी अऊ ठिठोली निक लागय न। मोर बोली संग दया मया के, सुग्हर हवय मिलाप रे। मिसरी कस मिठास से येमे, जईसे बरसे अमरीत मधुमास रे। ईही भाखा ल गूढ़ के संगी, होयेन सजोर,सगियान रे। अपन भाखा अऊ चिन्हारी के, झन लेवव तुमन परान रे। मुड़ी चढईया भाखा ल आवव, जुरमिर के फरियातेन। सूत उठ के बोलतेन सबले पहिलिच राम राम ग।…

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ओहर बेटा नोहे हे

ओहर बेटा नोहे हे! परसा के ढेंटा आय लाठी ल टेक टेक के सडक म बाल्टी भर पानी लानत हे देख तो डोकरी दाई ल कैसे जिनगी ल जीयत हे कोनो नइये ओखर पुछैया अपन दुख ल लेके बडबडावत हे कभू नाती ल, कभू बेटा ल, कभू बहू ल गोहरावत हे पास पडोस के मन ल अपन पिरा ल सुनावत हे 1 रूपया के चउर अउ निराश्रीत पेंषन म जिनगी ल गुजारत हे नती के हावय डोकरी दाई बर मया चाय पानी रोज पियावत हे पडोसी ह भुख के बेरा…

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मोर गांव कहां गंवागे

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो। भाखा बोली सबो बदलगे, मया कहां में पावों। काहनी किस्सा सबो नंदागे, पीपर पेड़ कटागे । नइ सकलाये कोनों चंउरा में, कोयली घलो उड़ागे। सुन्ना परगे लीम चंउरा ह, रात दिन खेलत जुंवा । दारु मउहा पीके संगी, करत हे हुंवा हुंवा । मोर अंतस के दुख पीरा ल, कोन ल मय बतावों मोर गांव कहां ………………….. जवांरा भोजली महापरसाद के, रिसता ह नंदागे । सुवारथ के संगवारी बनगे, मन में कपट समागे । राम राम बोले बर छोड़ दीस, हाय…

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माटी मुड मिंजनी

हमर गाव जुनवानी के माटी मुडमिंजनी चिटिक सुन लव संगी डहर चलती एकर कहनी आधातेच प्रसिद्ध पथरा- माटी हवे शोर अडताफ म भारी उडथे अचरुज हे पथरा मन के कथा गांव म जे मुह ते सुनले गजब गाथा अभी तो सुनव माटी के महिमा पांच किसिम के हवे करिश्मा कन्हार -दोमट हवे मटासी लाल मुरम अउ पिवरी छुही ऊपजे धान कत्कोन ओन्हारी जाके देखव मंदिर अस खरही चुंगडी-बोरा भरके गौतरिहा मन अपन-अपन घर ले जाथे माटीच लेगे बर जेठ बैसाख म घरोघर सगा मन आथे दही म रातभर भिंजो के…

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प्रकृति के पयलगी पखार लन

आवव, परकीति के पयलगी पखार लन। धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन। परकीति के पयलगी पखार लन।। धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।।। रुख-राई फूल-फल देथे, सुख-सांति सकल सहेजे। सरी संसार सवारथ के,, परमारथ असल देथे।। धरती के दुलरवा ला दुलार लन। जीयत जागत जतन जोहार लन।। परकीति के पयलगी पखार लन।।1 रुख-राई संग संगवारी, जग बर बङ उपकारी। अन-जल के भंडार भरै, बसंदर के बने अटारी।। मत कभु टँगिया,आरी,कटार बन। घर कुरिया ल कखरो उजार झन।। धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।2 रुख-राई ला देख बादर, बरसथे उछला आगर।…

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