नांगर अऊ तुतारी के जुड़ा अऊ पंचारी के रापा गैंती कुदारी के मनटोरा मोटियारी के मनबोध ला सुरता आगे किसानी के दिन आगे । कबरा लाल धौंरा के खुमरी अऊ कमरा के आनी बानी रंग मोरा के बांटी अऊ भौंरा के भाग फेर जागगे किसानी के दिन आगे । बादर अऊ पानी के खपरा खदर छानी के डोकरा डोकरी कहिनी के लिमऊ आमा चटनी के दिन फेर लकठियागे किसानी के दिन आगे । धान खेती करइया के जामुन लीम छईंया के गीत ददरिया गवइया के गोंदली बासी अमरईया के सबके…
Read MoreCategory: कविता
मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे
मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग, करमा ददरिया सुआ पंथी संग म नाच लव गा लव ग। मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग।। रसगुल्ला कस मोर छत्तीसगढी भाखा बने सुहाथे ग, छत्तीसगढी हाँसी ठिठोली मन ला सबके भाथे ग। अंग्रेजी के तुँहर घर अंगना म हमरो भाखा के रंग उठियालव ग मोर भाखा अङबङ गुरतुर हे मोर भाखा म हाँस गोठियालव ग।। साग म जैइसे डुबकी कढही अमटाहा भाँटा मिठाथे ग, उसने हमर भाखा बोली म सुवाद गजब के आथे…
Read Moreका पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे
का बतावव काला गोठीयावव, अंतस के पीरा ल कईसे बतावव I कोनों ककरो नई सुनय, मनखे के गोठ ल मनखे नई गुनय I का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ? संसों लागथे मनखे होय के, कोन जनी कोन ह कतका बेर, काकर गोठ मा रिसा जही I अपनेच घर परवार ल आगी लगा डारही, का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ? अरे परबुधिया परिया भुईयां म, सोना उपजा सकथस I गुनबे त अंतस के अंधियार ल, जुगजुग ले चमका सकथस I फेर का हो जथे ऐके कनिक मा,…
Read Moreमजदूर दिवस म कविता: मजदूर
पसीना ओगार के मेंहनत करथे दुनिया ल सिरजाथे रात दिन मजदूरी करथे तब मजदूर कहाथे । नइ खाये वो इडली डोसा चटनी बासी खाथे धरती दाई ल हरियर करथे माटी के गुन गाथे । घाम पियास ल सहिके संगी जांगर टोर कमाथे खून पसीना एक करथे तब रोजी रोटी पाथे । बिना मजदूर के काम नइ चले दुनिया ह रुक जाही जब तक मेंहनत नइ करही त कहां ले विकास हो पाही । महेन्द्र देवांगन “माटी” पंडरिया जिला — कबीरधाम (छ ग ) पिन – 491559 मो नं — 8602407353…
Read Moreमंजूरझाल : किताब कोठी
तीरथ बरथ छत्तीसगढ म, चारों धाम के महिमा अन्न-धन्न भंडार भरे, खान रतन के संग म पावन मन भावन जुग-जुग गुन गावा अंतस किथे लहुट-लहुट ईंहचे जनम धरि — गुरतुर भाखा छत्तीसगढी — दया-मया के बस्ती बसइया ल कहिथें छत्तीसगढिया । छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।। चुहुक-चुहुक कुसियार के रस म, जीभन जउन सुख । अड्डसन हे दुध भाखा मनखे के मान बढाथै ।। भूखन के हे भूख मिटइया अन्न म भरे जस हंड्रिया । छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।। कुरिया भीतर गोठियाथै जांता,…
Read Moreहिम्मत हे त आघु आ
लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर हिम्मत हे त आघु आ, देखथँव के दाँत हे तोर जबङा में लुकाके तैं झन पुछी हला। मुसवा कस खुसरके बिला म शेर ल झन तै ताव देखा,, लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर हिम्मत हे त आघु आ।। खात बुकबुकी मारत हे तुमला घर अँगना ले भटके हव, तीन सौ कुकुर ह जुरयाके पचीस झन शेर ल हटके हव। कुकुर तै मरबे कुकुर के मउत अपन बहादुरी झन जता,, लुकाके काबर चाबथच रे कुकुर हिम्मत हे त आघु आ।। 24 अप्रेल के दिन सुरता रखबे…
Read Moreधिक्कार हे
सुकमा जाय मा कांपत हे पोटा दिल्ली ले कहत हे चुनौती स्वीकार हे बंद करव अब फोकटे बोल बचन नेता जी तुंहला बड़ धिक्कार हे कतेक घव बार-बार ये बात ला दोहराहु बोलते रहि जहु फेर कुछू नइ कर पाहु दम हे ता थोरकु बने दम ला दिखावव दिल्ली वाले नेता आपो ग्राउंड जिरो ले हो आवव आतंक वाले मन तो हजार दू हजार हे तुहंर कना तो पूरा सरकार हे बंद करव अब फोकटे बोल बचन नेता जी तुंहला बड़ धिक्कार हे थोरकुन बांचे होही लाज-शरम ता अब आर-पार के उठावव कदम कब तक बस्तर…
Read Moreपरघनी
जगा जगा बाजत हे, मोहरी अऊ बाजा । गांव गांव में होवत हे,विडियो अऊ नाचा । बर तरी आके , खड़े हे बरतिया । सुघ्घर परघाय बर, जावत हे घरतिया। बड़े बड़े दनादन , फटाका फूटत हे । आनी बानी गीत गाके, टूरा मन कूदत हे। पगड़ी ल बांध के, दूनों समधी मिलत हे। घेरी बेरी चकाचक , फोटू खींचत हे । कूद कूद के बजनिया मन, बाजा बजावत हे। गांव भरके मिलके, बरतिया परघावत हे। महेन्द्र देवांगन “माटी” गोपीबंद पारा पंडरिया जिला — कबीरधाम (छ ग ) पिन –…
Read Moreकईसन राज ये कका
कईसन राज ये कका ये का होवत हे, ठुड़गा ह हासत हे अऊ हरियर मन रोवत हे। माते मतवना पियत हे दारू, सरकार खोलत हे जगा जगा दूकान तको दुलारू। कतको अपटही कतको मरही, फेर अंधरा मन ल नईये संसो ककरो समारू। अभिचे सुने हौव झोला छाप मन ल तको तंगावत हे, नई पढ़े लिखे ये तेकरो करा दवई बटवावत हे। गाँव म जाहू पता चलही,झोला छाप के उपकार ह, पुछहूँ जनता ल तभे तो बताही अंधरा सरकार ल। अपने अपन नियम कानून लादत हे, मरत हे तेला अऊ मारत…
Read Moreगरमी बाढ़त हे
दिनों दिन गरमी बाढ़त, पसीना चुचवावत हे। कतको पानी पीबे तबले, टोंटा ह सुखावत हे। कुलर पंखा काम नइ करत, गरम हावा आवत हे। तात तात देंहे लागत, पसीना में नहावत हे । घेरी बेरी नोनी बाबू, कुलर में पानी डारत हे । चिरई चिरगुन भूख पियास में, मुँहू ल फारत हे। नल में पानी आवत नइहे, बोर मन अटावत हे। तरिया नदिया सुक्खा होगे, कुंवा मन पटावत हे। कतको जगा पानी ह, फोकट के बोहावत हे। झन करो दुरुपयोग संगी, माटी ह गोहरावत हे। – महेन्द्र देवांगन “माटी” गोपीबंद…
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