माटी के काया

माटी के काया ल आखिर माटी म मिल जाना हे। जिनगी के का भरोसा,कब सांस डोरी टूट जाना हे। सांस चलत ले तोर मोर सब,जम्मो रिश्ता नाता हे। यम के दुवारी म जीव ल अकेला चलते जाना हे। धन दोगानी इंहे रही जही,मन ल बस भरमाना हे। चार हांथ के कंचन काया ल आगी मे बर जाना हे। समे राहत चेतव-समझव,फेर पाछू पछताना हे। मोह-माया के छोड़के बंधना,हंसा ल उड जाना हे। नाव अमर करले जग मे,तन ल नाश हो जाना हे। सुग्घर करम कमाले बइहा,फेर हरि घर जाना हे।…

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सरकारी इसकूल

लोगन भटकथें सरकारी पद पाए बर, खोजत रहिथें सरकारी योजना/सुविधा के लाभ उठाए बर, फेर परहेज काबर हे, सरकारी इसकूल, अस्पताल ले? सबले पहिली, फोकट समझ के दाई ददा के सुस्ती, उप्पर ले, गुरुजी मन उपर कुछ काम जबरदस्ती। गुरुजी के कमी,और दस ठोक योजना के ताम झाम मं, गुरुजी भुलाये रहिथे पढ़ई ले जादा दूसर काम मं। नइ ते सरकारी इसकूल के गुरुजी, होथे अतका जबरदस्त जइसे पराग कन फूल के, जेन सरकारी गुरुजी बने के योग्यता नइ रखै नइ ते बन नइ पावै, तेने ह बनथे संगी गुरुजी…

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सेल्फी के चक्कर

सेल्फी ले के चक्कर में , दूध जलगे भगोना में। सास हा खोजत हे अब्बड़, बहू लुकाय कोना में । आ के धर लिस चुपचाप सास हा हाथ, बहू हा देखके खड़े होगे चुपचाप । घर दुवार के नइहे कोनो कदर , मइके से ला हस का दूध गदर। एक बात बता ऐ मोबाइल मा का हे खास, सबो झन करथे इही मा टाइम पास। चींटू अऊ चींटू के दादा इही म बीजी रहीथे, थोकिन मांगबे ता जोर से चिल्लाथे। का जानबे डोकरी आजकाल के ऐप ला, घर मा पानी…

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सक

‘‘मोर सोना मालिक, पैलगी पहुॅचै जी। तुमन ठीक हौ जी? अउ हमर दादू ह? मोला माफ करहौ जी, नइ कहौं अब तुंह ल? अइसन कपड़ा,अइसे पहिने करौ। कुछ नइ कहौं जी, कुछ नइ देखौं जी अब, कुछू नइ देखे सकौं जी, कुछूच नहीं, थोरकुन घलोक नहीं जी। तुमन असकर कहौ, भड़कौ असकर मोर बर, के देखत रहिथस वोला-वोला, जइसे मरद नइ देखे हे कभू, कोनों दूसर लोक ले आए हे जनामना तइसे………। मोर राजा मालिक, तुहर ऑखि के आघू, कोनों माई लोगिन/मावा लोग आ जाथे कभू, त तुमन देख लेथौ…

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ददा

बर कस रूख होथे ददा जेकर जुड छांव म रथे परवार बइद बरोबर जतनथे नइ संचरन दे कोनो अजार। चिरई-चुरगुन कस दाना खोजत को जनी कतका भटकथे माथ ले पसीना चुहथे त परवार के मुंहु म कौंरा अमरथे। परवार के जतन करे बर अपन जम्मो सुख ल तियागथे। खुद के गोड भले भोंभरा म लेसावय फेर अपन लइका बर पनही लानथे। ददा के सम्मान बर एक दिन का पूरा बच्छर घलो कमती हे। संउहत देवता के जीते जी सम्मान नी करन ये हमर गलती हे। भरम होथे मनखे ल अपन…

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खेती किसानी

बादर गरजे बिजली चमके , गिरय झमाझम पानी । सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।। खातू कचरा फेंकय सबझन , नाँगर ला सिरजाये । काँटा खूँटी साफ करय सब , मेड़ पार बनवाये ।। चूहत रहिथे परछी अब्बड़ , छावय खपरा छानी । सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।। बड़े बिहनिया बासी धर के , चैतु खेत मा जाथे । मिहनत करथे सबो परानी , तब बासी ला खाथे ।। मिहनत के फल मिलथे संगी , हावय बादर दानी । सबके मन…

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मोर छत्तीसगढ़ महतारी

जिहां खिले-फुले धान, सुग्घर खेत अउ खलिहान। देवी-देवता के हे तीर्थ धाम, कहिथे ग इहां के किसान। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान…….! दुख पीरा के हमर दुर करइया, हरय हमर छत्तीसगढ़ मइया। हरियर-हरियर हे दाई के अंगना, कहिथे ग इंहा के लइका अउ सियान। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान…..! माटी ल माथा म लगाके देखबे, चन्दन – बंदन ल भुला जाबे। गुलाब कस सुंगंध दिही, कहिथे ग इहां के मजदूरमन। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान……! सुत उठ के करथंव प्रणाम, इही मोर दाई-ददा अउ भगवान। जेखर करंव…

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जिनगी जरत हे तोर मया के खातिर

जिनगी अबिरथा होगे रे संगवारी सुना घर – अंगना भात के अंधना सुखागे जबले तै छोड़े मोर घर -अंगना छेरी – पठरू ,घर कुरिया खेती – खार खोल – दुवार कछु नई सुहावे तोर बोली ,भाखा गुनासी आथे का मोर ले होगे गलती कैसे मुरछ देहे मया ल सात भाँवर मड़वा किंजरेंन मया के गठरी म बंध गेन नान – नान, नोनी – बाबू मया चोहना ल कैसे भुलागे जिनगी जरत हे तोर मया के खातिर ….. काबर तै मोला भुलागे जिनगी ल अबिरथा बनादे लहुट आ अब मोर जिनगी…

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गरमी के दिन आगे

गरमी के दिन आगे संगी , मचगे हाहाकार । तरिया नदियाँ सबो सुखागे , टुटगे पानी धार ।। चिरई चिरगुन भटकत अब्बड़ , खोजत हावय छाँव । डारा पाना जम्मो झरगे , काँहा पावँव ठाँव ।। तीपत अब्बड़ धरती दाई , जरथे चटचट पाँव । बिन पनही के कइसे रेंगव , जावँव कइसे गाँव ।। बूँद बूँद पानी बर तरसे , कइसे बुझही प्यास । जगा जगा मा बोर खना के , करदिस सत्यानास ।। बोर कुवाँ जम्मो सुख गेहे , धर के बइठे माथ । तँही बचाबे प्राण सबो…

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मोर छइयां भुइयां के माटी

मोर छइयां भुइयां के माटी रे संगी महर.महर ममहाथे न, गंगाजल कस पावन धारा महानदी ह बोहाथे न । मोर छइयां भुइयां के माटी रे संगी महर.महर ममहाथे न ।। धान कटोरा हे मोर भुइयां ये हीरा मोती उगलथे रे, अरपा, पैरी, सोंढूर, शिवनाथ एकर कोरा म पलथे रे । अछरा जेकर हरियर-हरियर मया इहां पलपलाथे न, मोर छइयां भुइयां के माटी रे संगी महर महर ममहाथे न ।। मैनपाट जस शिमला लागे कश्मीर जस चैतुरगढ़ सोहे, प्रयागराज जस राजीव लोचन भोरमदेव हर मन ल मोहे । डोंगरगढ़ म माता…

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