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घाम जनावत हे

बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। तात तात आगी असन हवा बोहावत हे कोयली मइना सुआ परेवा नइ गुनगुनावत हे छानही खपरा भिथिया भूंइया जमो गुंगंवावत हे कुकरी बोकरी गरवा बइला बछरू नरियावत हे बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। गली खोल गांव सहर घर सिनिवावत हे नल नहर नदिया समुंदर तरिया सुखावत […]

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कविता : छत्तीसगढ़ तोर नाव म

भटकत लहकत परदेसिया मन, थिराय हावंय तोर छांव म। मया पिरीत बंधाय हावंय, छत्तीसगढ़ तोर नाव म॥ नजर भर दिखथे, सब्बो डहर, हरियर हरियर, तोर कोरा। जवान अऊ किसान बेटा ला – बढा‌‌य बर, करथस अगोरा॥ ऋंगी, अंगिरा, मुचकुंद रिसी के ‌ – जप तप के तैं भुंइया। तैं तो मया के समुंदर कहिथें तोला, […]

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कविता – सब चीज नंदावत हे

चींव चींव करके छानही में चिरइया गाना गावाथे | आनी बानी के मशीन आय ले सब चीज नंदावत हे || धनकुट्टी मिल के आय ले ढेंकी ह नंदागे घरर घरर जांता चले अब कोन्टा में फेंकागे गली गली में बोर होगे तरिया नदिया अटागे | घर घर में नल आगे कुंवा ह नंदागे | पेड़ […]

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कविता-समाज ल आघू बढ़ाबोन

जुर मिल के काम करके हम नवा रसता बनाबोन | नियाव धरम ल मानके संगी समाज ल आघू बढ़ाबोन || नइ होवन देन हमन अपन रिति रिवाज के अपमान समय के साथ चलके संगी बढ़ाबोन एकर मान | सबके साथ नियाव करबो अन्याय होवन नइ देवन राजा रंक सब एक समान हे कोनो के जान […]

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कविता: बराती

गांव गांव में बाजत हे, मोहरी अऊ बाजा | सूट बूट में सजे हे आज दूल्हा राजा | मन ह पुलकत हाबे जाबोन बरात | अब्बड़ मजा आही खाबोन लड्डू अऊ भात | बरतिया के रहिथे टेस अड़बड़ भारी | पीये हे दारु अऊ देवत हे गारी | कूद कूद के बजनिया मन बाजा बजावत […]

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कबिता: वाह रे मोर गाँधी बबा के नोट

वाह रे मोर गाँधी बबा के नोट, जम्मो भारत मा तोरेच गोठ। तोर नोट के बीना कुछ बुता नई होवे, जम्मो भारत मा तोरेच शोर उड़े। 5,10,20,50,100,500,1000 के नोट मा फोटो चिपके, कुछु समान ले नोट मा तोर फोटो देख समान देवे। वाह रे मुण्डा बबा तोर नोट के कमाल, तोर नोट के खातिर होवत […]

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कविता: फूट

वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट बजार में जात्ते साठ आदमी मन लेथे सबला लूट | मन भर खाले तेंहा फूट खा के झन बोलबे झूठ फोकट में खाना हे त आजा उतार के अपन दूनों बूट वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट | लट लट ले […]

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कबिता : घाम जनावत हे

बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। तात तात आगी असन हवा बोहावत हे कोयली मइना सुआ परेवा नइ गुनगुनावत हे छानही खपरा भिथिया भूंइया जमो गुंगुवावत हे कुकरी बोकरी गरवा बइला बछरू नरियावत हे बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। गली खोल गांव सहर घर सिनिवावत हे नल नहर नदिया समुंदर तरिया सुखावत […]

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कबिता: पइधे गाय कछारे जाय

भेजेन करके, गजब भरोसा । पतरी परही, तीन परोसा । खरतरिहा जब कुरसी पाइन, जनता ल ठेंगवा चंटवाइन । हाना नोहे, सिरतोन आय, पइधे गाय, कछारे जाय ॥ ऊप्पर ले, बड़ दिखथे सिधवा, अंतस ले घघोले बघवा । निचट निझमहा, बेरा पाके, मुंहूं पोंछथें, चुकता खा के । तइहा ले टकरहा आय, पइधे गाय कछारे […]

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सुनिल शर्मा “नील” के दू कबिता : कइसे कटही जेठ के गरमी अउ हर घड़ी होत हे दामिनी,अरुणा हा शिकार

कइसे कटही जेठ के गरमी लकलक-लकलक सुरूज बरत हे उगलत हवय अंगरा बड़ेेफजर ले घाम उवत हे जरत हवय बड़ भोंभरा पानी बर हहाकार मचे हे जम्मो जीव परानी म कईसे कटही जेठ के गरमी दुनिया हे परशानी म तरिया-डबरी म पानी नइहे नदिया घलो अटागेहे पारा के पारा चढ़गेहे ,रुख-राई मन अइलागेहे मनखे घरघुसरा […]