सावधान, बचके रहहू गा, साधू भेस म सैतान सिरी। चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबागिरी॥ बड़े-बड़े आसरम हे इंखर। चेली-चेली, कुकरम हे इंखर॥ सोना-चांदी, धन, दौलत हे। हवई जिहाज, कार दउड़त हे॥ माल-मलीदा, सान अउ सौकत, सबो मिलत हे फिरी। चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबगिरी॥ दिन म कीरतन, परबचन, बड़े-बड़े पंडाल। रतिहा […]
Category: कविता
हर जुग म होवत हे जनम एकलव्य के। होवत हे परछो गउ सुभाव के कटावत हे अंगठा एकलव्य के। हर जुग म हर जुग म रूढ़ीवादी जात-पात छुआछूत भारत माता के हीरा अस पूत कहावत हे जनम-जनम अछूत। हर जुग म आज इतिहास गवाह हे एकलव्य बर द्रोनाचार के मन म का बर दुराव हे? […]
जतन बर करन दीपदान
अइसन कुछु संगी रे, जतन हम करन। हरियर-हरियर परियावरन हम करन॥ बजबजावत परदूषन ले जिनगी के रद्दा, दूरिहा जिनगानी ले, घुटन हमन करन। डार देहे बस्सई मन, ठांव-ठांव म डेरा, जउन भर दे ममहई ले, चमन हम करन। रहि नई गय आज कहूं जंगल के रउनक, मनबोधना फेर, वन, उपवन हम करन। नंगत कटत हावय […]
माटी के दियना
माटी के दियना, करथे अंजोर। मया बांध रे, पिरितिया डोर॥ जगमग-जगमग लागे देवारी, लीपे-पोते घर, अंगना, दुवारी खलखला के हांसे रे, सोनहा धान के बाली चला चलव जी, लुए बर संगी मोर॥ माटी के दियना… नौकर-चाकर, सौजिया, पहटिया जोरे-जोरे बइहां रेंगे, धरे-धरे झौंहा डलिया चुक-चुक ले, गांव, गली, खोर माटी के दियना… छन-छन ले घाट-घटौंदा […]
धर ले कुदारी
धर ले रे कुदारी गा किसान आज डिपरा ला रखन के डबरा पाट देबो रे । ऊंच-नीच के भेद ला मिटाएच्च बर परही चलौ चली बड़े बड़े ओदराबोन खरही झुरमिल गरीबहा मन, संगे मां हो के मगन करपा के भारा-भारा बाँट लेबो रे । चल गा पंड़ित, चल गा साहू, चल गा दिल्लीवार चल गा […]
नवा साल आगे रे
नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़। मुड़ के पाछू मत देख, आघू-आघू बढ़॥ पहागे रात करिया, आगे सोनहा फजर। सुरूज उत्ती म चढ़गे, किसान खेत डहर॥ खोंदरा ले चिरइया बोलै, चींव-चींव अडबड़। नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़॥ दु हजार दस फेर कभू नइ तो बहुरय। घर बइठे तरिया भर, पानी […]
कबिता: न ते हारे न में जीतेंव
सनीमा वाला बरसात मा ‘आग ही आग’ लगाथे जड़कला मा ‘हिमालय के गोद मा बिठाथे गर्मी मा’ ‘बिन बादल बरसात’ ल कराथे टोकबे त कहिथे ऐमा तोर ददा के का जाथे! स्टेशन मास्टर स्टेशन मा लिखाये रहिथे फलाना गाड़ी कब आही अऊ कब जाही ये रहिथे पहिली से सेट कभू गाड़ी ह हो जाथे लेट […]
पूस के जाड़
पुरवाही चलय सुरूर-सुरूर। रूख के पाना डोलय फुरूर-फुरूर॥ हाथ गोड़ चंगुरगे, कांपत हे जमो परानी। ठिठुरगे बदन, चाम हाड़। वाह रे! पूस के जाड़॥ गोरसी के आंच ह जी के हे सहारा। अब त अंगेठा कहां पाबे, नइए गुजारा॥ नइए ओढ़ना बिछना बने अकन। रतिहा भर दांत कटकटाथे, कांप जाथे तन। नींद के होगे रे […]
हर जुग म होवत हे जनम एकलव्य के। होवत हे परछो गउ सुभाव के कटावत हे अंगठा एकलव्य के। हर जुग म हर जुग म रूढ़ीवादी जात-पात छुआछूत भारत माता के हीरा अस पूत कहावत हे जनम-जनम अछूत। हर जुग म आज इतिहास गवाह हे एकलव्य बर द्रोनाचार के मन म का बर दुराव हे? […]
मया के दीया
घर कुरिया, चारों मुड़ा होही अंजोर फुलवारी कस दिखही महाटी अऊ खोर जुर मिलके पिरित के रंग सजाबो रे आगे देवारी मया के दीया जलाबो रे बैरी भाव छोड़ के जम्मो बनव मितान जइसे माटी के रखवारी करथे किसान बो बोन जइसे बीजा ओइसने पाबो रे आगे देवारी मया के दीया जलाबो रे मने मन […]