कतवारू गांव कर किसान रहिस। जांगरटोर मेहनत के कारन ओकर घरे कोनों चीज कर कमी नइ रहिस। ओकर एकेठन बेटा रहिस सोमारू। कतवारू खुद नई पढे – लिखे रहिस बकिन ओकर मन में अपन बेटा ला पढ़ाय कर ललक रहिस। सोमारू घलो सुघ्चर लइका रहिस। पढ़ाई कर उपर ओकर. पूरा ध्यान रहे। संगे-संगे अपन बापो कर काम में हाथ बंटावे। सोमारू जब गांवे कर इस्कूल ले बारहवीं पास करिस त ओकर बाप कतवारू चिलम चघाय के पूरे गांव में घूम-घूम के अपन बेटा कर गुन ला बखाने लागिस।। गरमी कर…
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सरगुजिहा कहनी – हिस्सा-बांटा
रामपाल जइसे तइसे हाईस्कूल पास करके जंगल ऑफिस में बाबू बन गइस । तेजपाल आठवीं कछा ले आगू नइ बढ़े सकिस । हार के ओकेला नागर कर मुठिया धरेक बर परिस । तेजपाल अपन खेती-पाती कर काम में बाझे रहे त दीन दुनियां सब ला भुलाए रहे। रामपाल अपन ऑफिस कर काम ले फुरसत पावे ते पूछ लेहे करे – “ कइसे बाबू नागर-बरधा ठीक चलथे ना ?’ तेजपाल कहदे – हॉ ददा बने बरधा हवंय। मोर खेत कस कोनों .. कर खेत नई जोताइस होही। रामपाल ओकर पीठ में…
Read Moreनान्हे कहिनी- चिन्हारी
चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन म नौकरी करत मोला डेढ़ बछर होगय रहे। शुरू शुरू म मोला लागे कि ….मैं ये कहां आके फँस गए ! फेर धीरे-धीरे करत मैं उहां खुसर गए रहय। फेर अतेक दिन ल मोर देश -राज कोती के एको झन मनखे नइ भेटाय रहिन। डेढ़ साल के लम्मा समे के बाद म आज ये दे मोर कोती के एक झन मनखे माखनलाल हर भेंटाय रहीस।वोहर मोर तरी म इहां लगे रहीस। फेर वोकर साथे -साथ तीन चार अउ आदमी मन घलव रहीन मोर तरी म। वोमन…
Read Moreकरिया अंगरेज
बस ले उतरिस । अपन सिकल के पसीना ला पोंछिस । ऐती ओती जम्मो कोती ला देखे लागिस। जुड़ सांस लेके कुछु गुणत गुणत आगू कोती बाढ़गे अऊ होटल मा खुसरगे । ’’पानी देतो भइयां ! अब्बड़ पियास लागत हावय’’ हलु हलु किहिस । ओखर गोठ ला सुनके होटल वाला ऊचपुर करिया जवनहा हा अगिया बेताल होगे । ओला गोड़ ले मुड़ी तक देखिस । दांत ला किटकिटावत किहिस “ इंहा फोकट मा पानी नई मिले डोकरा….। कुछु खाय ला पड़थे बरा , भजिया,समोसा ।‘‘ होटल मा बइठे जम्मो मइनखे…
Read Moreदेहे ल घलव सीखव – नीति कथा
एक भिखारी बिहनिया भीख माँगे ल निकलिस। निकलत बेरा ओ ह अपन झोली म एक मुठा चना डार लीस। कथें के टोटका या अंधविश्वास के सेती भिक्षा मांगे बर निकलत समें भिखारी मन अपन झोली खाली नइ रखयं। थैली देखके दूसर मन ल लगथे के एला पहिली ले कोनो ह दान देहे हे। पून्नी के दिन रहिस, भिखारी सोचत रहिस के आज भगवान के किरपा होही त मोर ये झोली संझकुरहे भर जाही। अचानक आगू ले देश के राजा के सवारी आत दिखिस। भिखारी खुश हो गइस। ओ सोचिस के,…
Read Moreनान कुन कहानी : ठौर
“मारो मारो”के कोलहार ल सुन के महुं ह खोर डाहर निकलेव।एक ठन सांप रहाय ओखर पीछु म सात-आठ झन मनखे मन लाठी धऱे रहाय। “काय होगे”में केहेव।”काय होही बिसरु के पठेवा ले कुदिस धन तो बपरा लैका ह बांच गे नी ते आज ओखर जीव चले जातिस”त चाबिस तो नी ही का गा काबर वोला मारथव” “वा काबर मारथव कहाथस बैरी ल बचाथस आज नी ही त काली चाब दीही ता””हव गा एला छोड़े के नो हे मारव “अइसे कहिके भीड़ ह वोला घेर डारिन।तभे वो सांप ह कते डाहर…
Read Moreलघु कथा संग्रह – धुर्रा
धुर्रा (नान्हे कहिनी) जितेंद्र सुकुमार ‘ साहिर’ वैभव प्रकाशन रायपुर ( छ.ग. ) छत्तीसगढ राजभाषा आयोग रायपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित आवरण सज्जा : अशोक सिंह प्रजापति प्रथम संस्करण : 2016 मूल्य : 50.00 रुपये कॉपी राइट : लेखकाधीन भूमिका कोनो भी घटना ले उपजे संवेदना, पीरा ल हिरदय के गहराई ले समझे बर अउ थोरकिन बेरा म अपन गोठ-बात ल केहे बर अभु लघुकथा या नान्हें कहिनी ह एक मात्र ससक्त विधा हे। नान्हें कहिनी हा अभु के बेरा म समाजिक बदलाव के घलो बढिया माध्यम हे। समाज…
Read Moreछत्तीसगढ़ी भाषा परिवार की लोक कथाऍं
छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हलबी, धुरवी, परजी, भतरी, कमारी, बैगानी, बिरहोर भाषा की लोक कथाऍं लेखक – बलदाऊ राम साहू छत्तीसगढ़ी भाषा छत्तीसगढ़ प्रांत में बोली जानेवाली भाषा छत्तीसगढ़ी कहलाती है। यूँ तो छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रभाव सामान्यतः राज्य के सभी जिलों में देखा जाता है किन्तु छत्तीसगढ़ के (रायपुर, दुर्ग, धमतरी, कांकेर, राजनांदगाँव, कोरबा, बस्तर, बिलासपुर,जांजगीर-चांपा और रायगढ़) जिलों में इस बोली को बोलने वालों की संख्या बहुतायत है। यह भाषा छत्तीसगढ के लगभग 52650 वर्ग मील क्षेत्र में बोली जाती है। छत्तीसगढ़ी भाषा का स्वरूप सभी क्षेत्र में एक समान…
Read Moreलघु कथा – दरूहा
सुकलू ह तीस बछर के रहिस हे अउ ओकर टुरा मंगलू ह आठ बछर के रहिस हे,सुकलू ह आठ-पन्दरा दिन मं दारू पीयय,मंगलू करन गिलास अउ पानी ल मंगाववय त मंगलू ह झल्ला के काहय कि ददा मोला बिक्कट घुस्सा आथे तोर बर,तय दारू काबर पीथस गो,छोड़ देना।सुकलू ह काहय,दारू पीये ले थकासी ह भागथे रे,तेकर सेती पीथंव,मय ह दरूहा थोेड़े हरंव,कभू-कभू सुर ह लमथे त पी लेथंव,सियान सरीक मना करत हस मोला,जा भाग तय हर भंउरा-बाटी ल खेले बर,मोला पीयन धक। दिन ह बिसरत गिस अउ मंगलू ह तेरह…
Read Moreनानकिन किस्सा : अमर
आसरम म गुरूजी, अपन चेला मनला बतावत रहय के, सागर मनथन होइस त बहुत अकन पदारथ निकलीस। बिख ला सिवजी अपन टोंटा म, राख लीस अऊ अमरित निकलीस तेला, देवता मन म बांट दीस, उही ला पीके, देवता मन अमर हे। एक झिन निचट भोकवा चेला रिहीस वो पूछीस – एको कनिक अमरित, धरती म घला चुहीस होही गुरूजी …..? गुरूजी किथे – निही… एको बूंद नी चुहे रिहीस जी …। चेला फेर पूछीस – तुंहर पोथी पतरा ला बने देखव, एक न एक बूंद चुहेच होही …? गुरूजी खिसियागे…
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