सरद्धा

बिहिनिया -बिहिनिया जुन्ना पेपर ला लहुटा – पहटा के चांटत – बांचत बिसाल खुरसी म बइठे हे। आजे काल साहर ले आहे गांव म। ज्यादा खेती खार तो नइहे फेर अतेक मरहा तको नइहे। ददा साहर में नौकरी करत रहिस हे। अपनो ह पढ़ई करत -करत इस्कूल म साहेब होगे हे। आना जाना लगे रहीथे। “जय शंकर भोले।” बिसाल दुवारी कोती ला मुड़ के देखथे। चुकचुक ले गोरिया, उंचपुर, छरहरा बदन के मनखे दुवारी म ठाढ़े हे। चक्क सुफेद धोती झकझक ले झोलझोलहा कुरता, देखे म मलमल अस कोवंर। टोटा…

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छत्तीसगढ़ी कहानी : मन के सुख

भोला… ए…भोला.. लेना अउ बताना अंजलि के कहिनी ल-जया फेर लुढ़ारत बानी के पूछिस। भोला कहिस- अंजलि जतका बाहिर म दिखथे न, वोतके भीतरी म घलोक गड़े हावय। एकरे सेती एला नानुक रेटही बरोबर झन समझबे। एकर वीरता, साहस, धैर्य, अउ संघर्ष ह माथ नवाए के लाइक हे, तभे तो सरकार ह नारी शक्ति के पुरस्कार दे खातिर एकर नांव के चिन्हारी करे हे। -हहो जान डरेंव भोला, फेर सरकार के बुता म तोरो योगदान कमती नइए। आज अंजलि ल जेन सब जानीन-गुनीन, सरकार जगा सम्मान खातिर वोकर नांव पठोइन,…

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बेंगवा के टरर-टरर

एक समे के बात ये, पानी नी गिरीस। अंकाल पर गे। सब कोती हाहाकार मचगे। सब ले जादा पानी म रहवइया जीव-जंतु मन के करलई होगे। एक ठन बेंगवा ल अपन भाई-बंधु के याहा तरहा दुख ल देख के रेहे नी गीस। ओ मन ल ये केवा ले उबारे बर इंद्र देवता मेर पानी मांगे बर जाये के बिचार करीस। एक कनिक दुरिहा गेय राहय त ओला एक ठन बिच्छी भेंट पारिस अउ पूछथे- बेंगवा भईया तैं लकर-लकर कांहा जावत हस गा? बेंगवा अपन मन के बात बतईस। बिच्छी ह…

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लोक कथा : सुरहीन गैया

एक गांव में एक झन डोकरी रिहिस, ओखर एक झन बेटा रिहस जउन ह निचट लेड़गा अउ कोड़िहा रहय। डोकरी ह गांव में बनी-भूती करके दु पइसा कमावय उही आमदनी में दुनों महतारी बेटा के गुजारा होवय। उपरहा में लेड़गा ह अपन-संगी जहुंरिया मन ला बने खई-खजाना खावत देख के वइसनेच जिनिस के मांग अपन दाई ले करे। अब बिचारी गरीबिन डोकरी ह लेड़गा के मांग ला कहां पूरोय बर सकतिस। एक दिन लेड़गा ह पान-रोटी खाहूं कहिके अड़बड़ जिद करिस। बिचारी गरीबिन काय करे, एक डहर दुलरवा बेटा के…

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लोक कथा : सतवंतीन

बहुत जुन्‍नस बात आय। एक गांव में सात भाई अउ एके झन बहिनी के परिवार रहय। सब ले छोटे भाई के नाव संतु अउ बहिनी के नाव सतवंतीन रहय। छै झन भाई मन के बिहाव होगे रहय। संतु भर के बिहाव होय बर बांचे रिहिस। बिचारी सतवंतीन अपन दाई-ददा मन ला जानबे नइ करय, काबर कि वोहा जब बहुत छोटे रिहिस तभे ओखर दाई-ददा मन सरग सिधार गे रिहिन। भाई-भैजई मन ओखर पालन-पोशण करे रिहिन अउ पर्रा में भांवर किंजार के ओखर बिहाव घला कर दे रिहन। अभी सतवंतीन के…

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मसखरी : देवता मन के भुतहा चाल

गोठ कई रंग के होथे, सोझ-सोझ गोठ, किस्सा कहानी, गोठ, हानापुर गोठ, बिस्कुटक भांजत गोठ, बेंग मारत गोठ, पटन्तर देत गोठ, चेंधियात गोठ, हुंकारू देवावत गोठ, ठट्ठा मढ़ावत गोठ, मसखरी ह मसखरिहा गोठ आय। येहू ह मौका कु मौका म काम देथे। केयूर भूषण जी ह येला एक अलग विधा के रूप म स्थापित करे हावय। मसखरी ह व्यंग्य विद्या ले थोरक अलग हावय। जब अइसे लागथे के मोर गोठ म सुनके आगू वाला ह मंतिया झन जाय तब ठट्ठा मसखरी मढ़ावत सिरतोन के गोठ ल गोठिया ले। अब तो…

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परोसी के भरोसा लइका उपजारना

बुधारू घर के बहू के पाँव भारी होइस, बुधारू के दाई ह गजब खुस होईस। फेर बिचारी ह नाती के सुख नइ भोग पाईस। बहू के हरूण-गरू होय के पंदरा दिन पहिलिच् वोकर भगवान घर के बुलव्वा आ गे। बुधारू के बहू ह सुंदर अकन नोनी ल जनम दिस, सियान मन किहिन “डोकरी मरे छोकरी होय, तीन के तीन।” बहू के दाई ह महीना भर ले जच्चा.बच्चा के सेवा जतन करिस। दाईच् आय त का होईस, कतका दिन ले अपन घर-दुवार ल छोड़ के पर घर म जुटाही नापतिस, दू…

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छत्‍तीसगढ़ी लोक कथा : घंमडी मंत्री

–वीरेन्द्र सरल एक राज मे एक राजा राज करय। वो राज म अन्न धन, गौ लक्ष्मी कुटुंब परिवार के सब भरपूर भंडार रहय, सब परजा मन सुखी रहय। सबो कोती बने सुख संपत्ति रहय। कोन्हो ला कोन्हो किसम के दुख पीड़ा नई सतावय। एक समे के बात आय। राजा के मंत्री मन ला बहुत घंमड होगे कि वो राज मे उंखर ले जादा बुद्धिमान जीव कोन्हो नइ हे। ओमन सब परजा ला मूरख समझे अउ सोचय कि राज के सुख शांति सब हमरे भरोसा म हावे। मंत्री मन के हाव…

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छत्‍तीसगढ़ी लोक कथा : जइतमाल के ठेंगा

वीरेन्‍द्र सरल बहुत जुन्ना बात आय। एक गांव म एक गरीब महराज महराजिन रहय। महराज गांव गांव किंजर के भिक्षा मांगे। भिक्षा मे जउन मिले तिही मे दुनो पराणी के गुजर बसर होवय। महराज महराजिन मन के एको झन लोग लइका नइ रिहिस। भिक्षा मे बहुत कम धन मिले। मंहगाई मनमाने बाढ़ गे रिहिस। ओमन ला ना तो तन भर कपडा मिले अउ ना पेट भर जेवन। अच्छा खाना तो सपना होगे रिहिस। चटनी बासी, पेज पसिया पीके दिन पोहावत रिहिस। गरीबी म दिन बितत रहय। एक बेर गरीबी के…

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महतारी बरोबर भउजी

फेर सब्बो दिन अउ बादर ह एके नइ राहय। एक दिन जमुना के दाई ह भगवान के दुवार म चल दिस अउ दू महिना बाद ददा ह घलो सरग सिधारगे। जमुना ह तीजा-पोरा म अपन भाई के रस्ता ल देखत रहिस कि मोला भाई ह लेगे बर आही, पोरा तिहार ह मनागे फेर भाई ह नइ अइच, जमुना ह अड़बड़ रोईस कि मोला भाई-भउजी मन ह नइ पूछिस, भउजी ह तको महतारी बरोबर हरय मोला अपन बेटी मान के लेग जतिस त का होतिस। अइसने सोचत-सोचत जमुना ल गंगा के…

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