गाँव म जब ले राजनीति अपन पांव धरिस। गाँव के गाँव जम्मों निर्दयी अउ निष्ठुर होगे। लोक लाज के बात बिसर गे। सुवारथ अउ पाखण्ड अपन अउकात म आ गे। समारु ल राजनीति ले का लेना – देना पर गांव वाले मन ओकर बिगाड़ करे के निश्चय कर ले रहै। दू पारा के लड़ई म ओल पेराय लगीस। सरपंची चुनाव म जेन रामधीन चुनइस उहू समारु ल बदमाश कहाय अउ जउन मंगल हारिस उहू ओला बदमास कहय। समारु के परिवार मं रहय छै सदस्य छै बोट ले जीतिस रामधीन अउ…
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मरहा राम के संघर्ष
असाड़ लगे बर दू दिन बचे रहय। संझा बेरा पानी दमोर दिस। उसर-पुसर के दु-तीन उरेठा ले दमोरिस। गांव तीर के नरवा म उलेंडा पूरा आ गे। परिया-झरिया मन सब भर गें। मेचका मन टोरटोराय लगिन। एती दिया-बत्ती जलिस कि बत्तर कीरा उfमंहा गें। किसान मन के घला नंहना-जोताार निकल गे। बिहने फजर घरो-घर नांगर-पाटी अउ जुंड़ा निकल गे। बसला-fबंधना अउ आरी निकल गे। छोलइ-सुधरइ सुरू होगे। माल- मत्ता के हिसाब से खर-सेवर के जांच परख सुरू हो गे। फेर का ?खांध म नांगर अउ हाथ म तुतारी धरे, बइला…
Read Moreमरहा राम के जीव
रात के बारा बजे रहय। घर के जम्मों झन नींद म अचेत परे रहंय। मंय कहानी लिखे बर बइठे रेहेंव। का लिखंव, सूझत नइ रहय। विही समय बिजली गोल हो गिस। खोली म कुलुप अंधियारी छा गे। बिजली वाले मन बर बड़ गुस्सा आइस। टेबल ऊपर माथा पटक के सोंचे लगेंव। तभे अचरज हो गे। मोला लगिस कि बिजली आ गे हे। खोली ह सीतल दुघिया रोसनी से भर गे। मुड़ी उचा के आंखी खोले के प्रयास करेंव फेर आंखी काबर खुलय? चउंधियाय कस हो गे। मन म डर समाय…
Read Moreअम्मा, हम बोल रहा हूँ आपका बबुआ
बड़े साहब के रुतबा के का कहना। मंत्री, अधिकारी सब वोकर आगू मुड़ी नवा के, हाथ जोड़ के़ खड़े रहिथें। वोकरे चलाय तो सरकार चलथे। वोकर भाखा, ब्रह्मा के लिखा। इंहां काकर हिम्मत हे कि वोकर विरोध कर सके। मुंह उलइया मन के का गति होथे सब जानथें। देख सुन के कोन बघवा के मुंह म मुड़ी खुसेरही? बिहने-बिहने के बात आय। साहब अपन आदत मुताबिक बगीचा म टहलत रहय। वोकर पहला सिध्दांत आय – सुबो साम के हवा, लाख रूपिया के दवा। डेरी हाथ के हथेली म मुठा भर…
Read Moreपंदरा अगस्त के नाटक
चउदा तारीख के बात आय। रतनू ह खेत ले आइस। बियासी नांगर चलत रहय। बइला मन ल चारा चरे बर खेते डहर छोंड़ के आय रहय। देवकी ल कहिथे – ‘‘राजेस के मां, आज दिन भर के झड़ी म कंपकंपासी छूट गे। चहा बना के तो पिया दे। राजेस ह स्कूल ले आ गिस होही, आरो नइ मिलत हे, कहां हे?’’ देवकी – ‘‘हव आ गे हे। काली पंदरा अगस्त के तियारी करे बर जल्दी छुट्टी होइस होही। कोठा डहर अपन संगवारी मन संग खेलत हे।’’ रतनू सोंचथे, कोठा डहर…
Read Moreसाला छत्तीसगढि़या
‘‘इसकुल खुले महिना भर हो गे, लइका ह रात दिन रेंध मतावत हे, तंय का सुनबे? तोर कान म तो पोनी गोंजा गे हे। पेन-कापी लेय बर कहत हे, ले नइ देतेस।’’ देवकी ह अपन नंगरिहा रतनू ल झंझेटिस। रतनू ह कहिथे – ‘‘हित लगा के दू कंवरा बासी ल तो खावन दे भगवान। पेन-कापी ह भागत थोरे हे। कालिच बांवत उरकिस हे। हांथ म एको पइसा नइ हे। खातू-दवाई घलो अभिचे लेना हे। निंदइ-कोड़इ ल आन साल जुर मिल के कर डारत रेहेन, फेर पर साल ले तो बन-झार…
Read Moreपटवारी साहब परदेसिया बन गे
दिन भर नांगर के मुठिया धरइ अउ ओहो त..त..त.. कहइ म रग रग टूट जाथे। ढलंगते साट पुट ले नींद पर जाथे। फेर आज तीन दिन हो गे हे रतनू के नींद उड़े। मन म जिंहा चिंता फिकर समाइस तहा न तो नींद परे अउ न भूख लगे। रात आंखी म पहावत हे। बात बड़े जबर नो हे। बुता छोटे हे, फेर रतनू बर विही ह पहाड़ कस हो गे हे। कोट-कछेरी अउ पुलिस निस्पेक्टर के सपड़ म पड़े से तो बड़े-बड़े के होस गुम हो जाथे, फेर इहां अइसनो…
Read Moreगनेसी के टुरी
आज संझा बेरा पारा भर म षोर उड़ गे – ‘‘गनेसी के टुरी ह मास्टरिन बनगे…………..।’’ परतिंगहा मन किहिन – ‘‘काबर अइसने ठट्ठा करथो जी? ओली म पइसा धरे-धरे fकंजरत हें, fतंखर लोग-लइका मन कुछू नइ बनिन; गनेसी के टुरी ह मास्टरिन बनगे? वाह भइ ! सुन लव इंखर मन के गोठ ल।’’ हितु-पिरीतू मन किहिन – ‘‘अब सुख के दिन आ गे ग गनेसी के। अड़बड़ दुख भोगत आवत हे बिचारी ह जनम भर।’’ तिसरइया ह बात ल फांकिस – ‘‘अरे, का सुख भोगही अभागिन ह? बेटी के जात,…
Read Moreसरपंच कका
सांझ के बेरा रिहिस। बरदी आवत रहय। गरमी के दिन म संझा बेरा तरिया के पार ह बड़ सुहावन लगथे। किसुन अउ जगत, दुनों मितान टुरा घठौंदा के पथरा मन म बइठ के गपसप करत रहंय। थोरिक पाछू लखन, ओमप्रकाश , फकीर अउ चंदू घला आगें। बैठक जम गे। नवयुवक दल के अइसनेच रोज बैठक होथे। गपसप के बहाना तरह तरह के चर्चा होवत रहिथे। सहर के टाकीज मन म कोन कोन नवा फिलिम लगिस। गांव म काकर घर का होवत हे। कोन कोन टुरा-टुरी के बिहाव माड़ गे, काकर…
Read Moreचढौत्तरी के रहस
अभी हमर गांव म भागवत कथा होइस। मोर जानती म इहां अइसन जग पहिली अउ नइ होय रिहिस। डोकरा सियान मन कहिथें कि पैतिस चालिस साल पहिली झाड़ू गंउटिया के डोकरा बबा मरिस त अंतू गंउटिया ह ए गांव म वोकर बरसी बर भागवत जग रचाय रिहिस। अतराब म वोकर किस्सा आज ले परसिध्द हे। डेरहा बबा ह घला बताथे। बताथे त अइसे लगथे कि वो ह विही जुग म वापिस चल दे हे। एक-एक ठन सीन के बरनन करथे। बताथे कि गंउटिया के बरसी ह ठंउका बैसाख के महीना…
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