– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव म एक झ लेड़गा रहय। काम बुता कुछ नइ करय। ओखर दाई ओला अड़बड़ खिसयावय। लेड़गा के दाई जब सियान होगे अउ लेड़गा जवान, तब रिस के मोर डोकरी ओला अड़बड़ गारी-बखाना दिस। लेड़गा हाथ जोड़के किहिस-‘‘ले दाई अब जादा झन खिसया। काली ले महुं कुछु बुता काम करके चार […]
Category: कहानी
सेठ घर के नेवता : कहिनी
रमेसर अपन छोटे बेटी के चइत मा बिहाव बखत अड़बड़ खुस रहिस। जम्मो सगा सोदर,नत्ता गोत्ता, चिन पहिचान,अरपरा परपरा ल नेवता देय रहिस।सबो मन आय घलाव रहिस।सहर के सबले बड़े सेठ ला घलो नेवता दिस। ओकर संग बीस बच्छर पहिली जब नानकुन नवा दुकान धरिस तब ले लेन देन चलत हे। आज ओकर दुकान बीस […]
परेम : कहानी
साकुर चैनल ल एति-तेति पेले असन करके बिकास पीठ म ओरमाये अपन बेग ल नहकाइस। बैंक भीतर पांव रखते साठ, अहा! कतका सुघ्घर गमकत, ममहावत ठंढा! जइसे आगि म जरे ल घीव म नहवा दिस। भाटा फूल रंग के पुट्टी अउ गाजरी रंग के पट्टी नयनसुख देवत रहिस। बिकास दूनों बाजू, एरी-डेरी, नजर दौडाइस।खास पहिचान […]
आज के बड़का दानव
अभिच कुन के गोठ हवै। हमर रयपुर म घाम ह आगी कस बरसत रिहिस, जेखर ले मनखे मन परसान रिहिस। मेहा एक झन संगवारी के रद्दा देखत एक ठन फल-फूल के ठेला के तीर म बैठै रहव। ओ ठेला वाला करा अब्बड झन मनखे मन आतिस, अऊ अपन बड़ महँगा जिनिस लेके चल देवय। आप […]
संगी हो ये किताब ल बने सहिन पीडीएफ बनाए नइ गए हे, तभो ले डॉ.शैल चंद्रा जी के रचना मन के दस्तावेजीकरण के उद्देश्य से येला ये रूप में हम प्रस्तुत करत हवन। पाछू प्रकाशक या टाईप सेट वाले मेरे ले सहीं पीडीएफ या टैक्स्ट फाईल मिल जाही त वोला प्रकाशित करबोन। 1. सहर के […]
कहानी – बड़की बहू
कमला के बिहाव होय 24 बच्छर होगे हे।ओ हा अपन बड़े नोनी के बिहाव घलाव कर डारिस।ओकर नानकुन बेटी नतनीन घलो आगे,फेर कमला के बुढ़ी सास अऊ ओकर सास ह आज ले गारी देयबर नी छोड़िन अउ न कमला ल बड़की बहू मानिन। कम पढ़े लिखे घलो नई हे कमला! अपन मईके के पहिली नोनी […]
राजा के मुड़ी म सिंग
ऐ बात तब के आय.जब हमन छुट्टी बिताए बर गांव म जान, हमर कुंती दई अब्बड किस्सा कहनी कहे..संझा ढलत देरी नई की सब्बो लईकामन खटिया ल जोर के बइठ जाए, तहां ले कुतीं दइ के कहनी सुरु हो जाए…एक ठन राजा रहिस..हव कहत रहू त कहनी ल आगू कहहू.. नइ हूकारू भरहू त कहनी […]
लघुकथा : बड़का घर
जब मंगल ह बिलासपुर टेसन म रेल ले उतरिच तव रात के साढ़े दस बज गय रहिस। ओखर गाड़ी ह अढ़ाई घंटा लेट म पहुंचिस, जेखर कारन गाँव जवैया आखिरी बस जेहा साढ़े आठ छूटथे कब के छूट गे रहिस। ट्रेन ले उतर के वो हा सोचे लगिस के अब का करंव। फेर मंगल ह […]
लघुकथा : अमर
आसरम म गुरूजी, अपन चेला मनला बतावत रहय के, सागर मनथन होइस त बहुत अकन पदारथ निकलीस । बिख ला सिवजी अपन टोंटा म, राख लीस अऊ अमरित निकलीस तेला, देवता मन म बांट दीस, उही ला पीके, देवता मन अमर हे । एक झिन निचट भोकवा चेला रिहीस वो पूछीस – एको कनिक अमरित, […]
कहानी : असली होली
एक ठन नानकुन गाँव रिहिस, जिहाँ के जम्मो झन बने-बने अपन जिनगी ल जियत रिहिस। जम्मो पराणि मन ह मिर-जुल के रहत रहै। उहाँ एक झन डोकरी दई घलो रहै, जेखर कोनो नी रिहिस। ऊखर बेटा-बहु मन ह शहर म रहै बर चल दे रिहिस, जउन मन बड़ दिन बादर होगे नी आवत रिहिस। होली […]