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रितु बरनन
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Read Moreतपत कुरू भइ तपत कुरू
असीस देवे वो देवारी अउ दुकाल-अकाल बेटी के बिदा पन्द्रह अगस्त मडई देखे जाबो उँकरे बर सनमान मडइके के मया इही किसम होना चाही तपत कुरु लछमी – पारवती गोठ ले दे मोर खर लुगरा भज लेबे गा तोरेच खातिर अन्नपुरना गउरी सास डोकरी लेवना चोरी निक लागय चन्दा लेहूं अरझ गेहे तुलसी के कहिनी सारी गुरु नानक सारा छत्तीसगढ महतारी गउरी साँही भउजी बिजली चमकथय मोरो मन कहिथय मैं बुडे हाबँव दरस नई नागिन के फन ल तैय चल नई बाँचय तील्मती-चाँउरमती ढेरा घूमत चलबों संगे संग गारव असें…
Read Moreनील पद्म शंख
अघवा: मया के सपना पिछवा: घोर कसमकस परदा भीतरी ले मया आगि हवय, कोन्हों बुता नी सकंय। मया धंधा हवय, कोन्हो जान नी सकंय।। मया मिलाप हवय, कोन्हों छॉंड़ नी सकंय। मया अमर हवय, कोन्हों मेटा नी सकंय।। जान चिन्हार नील – नायिका पद्म – नायिका शंख – नायक रतन – शंख का मितान कैंची – नील के गिंया पिंयारी – पद्म के गिंया मानव – नील के ददा मनुप्रताप – पद्म के ददा आरती – पद्म के दाई बंदन – शंख के दाई अउ आखिर मा बॉंधोसिंह – शंख…
Read Moreगरीबा महाकाव्य (दसवां पांत : राहेर पांत)
जब समाज मं शांति हा बसथय शांति पात जिनगानी। दुख शत्रुता अभाव भगाथय उन्नति पावत प्रानी।। मारपीट झगरा दंगा ले होवत कहां भलाई। मंय बिनवत हंव शांति ला जेहर बांटत प्रेम मलाई।। लगे पेड़ भर मं नव पाना, दसमत फूल फुले बम लाल लगथय – अब नूतन युग आहय, क्रांति ज्वाल को सकत सम्हाल! अब परिवर्तन निश्चय होहय, आत व्यवस्था मं बदलाव पर मंय साफ बात बोलत हंव – नइ दुहरांव पूर्व सिद्धान्त. याने महाकाव्य मं मंय हा, होन देंव नइ हत्या खून जीवन जीयत बड़ मुश्किल मं, तब बढ़…
Read Moreगरीबा : महाकाव्य (नउवां पांत : गंहुवारी पांत) – नूतन प्रसाद शर्मा
शोषण अत्याचार हा करथय हाहाकार तबाही। तब समाज ला सुख बांटे बर बजथय क्रांति के बाजा।। करंव प्रार्थना क्रांति के जेहर देथय जग ला रस्ता । रजगज के टंटा हा टूटत आथय नवा जमाना ।। गांव के सच वर्णन नइ होइस, फइले हे सब कोती भ्रांति जब सच कथा प्रकाश मं आहय, तभे सफलता पाहय क्रांति. लेखक मन हा नगर मं किंजरत, रहिथंय सदा गांव ले दूर संस्कृति कला रीति जनजीवन – इंकर तथ्य जाने बस कान. तब तो लबरइ बात ला लिखदिन, उंकर झूठ ला भुगतत आज रुढ़ि बात…
Read Moreकका के घर : छत्तीसगढ़ी उपन्यास
छत्तीसगढ़ी उपन्यास “कका के घर” – रामनाथ साहू
Read Moreगरीबा महाकाव्य (अठवइया पांत : अरसी पांत)
जग मं जतका मनसे प्राणी सब ला चहिये खाना । अन्न हवय तब जीयत जीवन बिना अन्न सब सूना ।। माता अन्न अमर तयं रहि नित पोषण कर सब जन के। तयं रहि सदा प्रसन्न हमर पर मंय बिनवत हंव तोला।। बिरता हरा हाल के झुमरय, बजय बांसरी मधुर अवाज गाय गरूकूदत मेंद्दरावंय, शुद्ध हवा राखय तन ठोस. माटी के घर तउन मं खपरा, पबरित राखंय गोबर लीप लइका मन चिखला मं खेलंय, हंसी तउन छल कपटले दूर. मगर पूर्व के समय बदल गे, अब औद्योगिक युग के राज बड़े…
Read Moreछत्तीसगढ़ी कथा-कंथली : संकलन अउ लेखन – कुबेर
172 पेज के संपूर्ण किताब.
Read Moreगरीबा महाकाव्य (सतवया पांत : चनवारी पांत)
गांव शहर तुम एका रहिहव राष्ट्र के ताकत दूना । ओकर ऊपर आंच आय नइ शत्रु नाक मं चूना ।। गांव शहर तुम शत्रु बनव झन रखत तुम्हर ले आसा । करत वंदना देश के मंय हा करत जिहां पर बासा ।। ऊगे ठाड़ ‘गाय धरसा’ हा.पंगपंगाय पर कुछ अंधियार खटियां ला तज दीस गरीबा, पहुंच गीस मेहरू के द्वार. मेहरु सोय नाक घटकत हे, तेला उठा दीस हेचकार बोलिस-“तंय अइसे सोवत हस- बेच देस घोड़ा दस बीस. लगथय- तोर मुड़ी पर चिंता, याने रिहिस बड़े जक बोझ लेकिन ओहर…
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