सुर म तो सोरिया सुघर – सब लोग मन जुरिया जहंय तैं डगर म रेंग भर तो – लोग मन ओरिया जहंय का खड़े हस ताड़ जइसन – बर पीपर कस छितर जा तोर छइंहा घाम घाले – बर जमो ठोरिया जहंय एक – दू मछरी करत हें – तरिया भर ल मतलहा आचरन के जाल फेंकव – तौ […]
Category: गज़ल
छत्तीसगढ़ी गजल
काकर नाँव लिखत रहिथस तैं नँदिया तिर के कुधरी मा। राखे हावस पोस के काला तैंहर मन के भितरी मा। डहर रेंगइया ओकर कोती कभू लहुट के नई देखै, लटके रहिथे चपके तारा जे कपाट के सकरी मा। नाली कतको उफना जावै नँदिया कब्भू बनै नहीं, नहर बने नइ चाहे कतको पानी उलदौ डबरी मा। […]
छत्तीसगढ़ी गजल
दसो गाड़ा धान हा घर मा बोजाय हे जरहा बिड़ी तबले कान म खोंचाय हे. एक झन बिहाती, चुरपहिरी दूसर देवरनिन मा तभो मोहाय हे. हाड़ा हाड़ा दिखत हे गोसाइन के अपन घुस घुस ले मोटाय हे. लगजाय आगी फैसन आजकल के आघू पाछू कुछू तो नइ तोपाय हे. तिनो तिलिक दिखही मरे बेर लहू […]
रिमझिम पानी म मन मंजूर हो जाथे काबर बादर के गरजन मोला अब्बड डेरवाथे काबर ? पानी गिरथे तव ए माटी बिकट मम्हाथे काबर रिमझिम पानी ह मोर मन ल हरियाथे काबर? नोनी आही तीजा पोरा म अगोरत हावय महतारी रहि रहि के नोनी के गोड हर खजुआथे काबर? बादर आथे तव मस्त मगन होथे […]
आम – लीम- बर- पीपर – पहिरे छत्तीसगढ के सबो गॉंव नदिया नरवा पार म बइठे छत्तीसगढ के सबो गॉंव । धान-बौटका कहिथें सब झन किसम किसम के होथे धान हरियर – हरियर लुगरा पहिरे छत्तीसगढ के सबो गॉंव । हर पारा म सुवा ददरिया राग सुनावत रहिथे ओ संझा कन जस गीत ल गाथे […]
बाबा हर सरकार ल रामलीला ले चुपे-चुप चेताइस हे जनतंत्र के महत्व ल गॉंधी के भाखा म समझाइस हे। बाबा तैं अकेला नइ अस देश तोर संग ठाढे हावय देश ह सत्याग्रह ल आज तोरेच कंठ ले गाइस हे । बाबा तैं फिकर झन कर जनता जाग गए हावय जयप्रकाश के ऑंदोलन हर आज रंग […]
रंग म बूड के फागुन आ गे बइठ पतंग सवारी म टेसू फूल धरे हे हाथ म ठाढे हावय दुवारी म । भौंरा कस ऑंखी हे वोकर आमा मौर हे पागा म मुच – मुच हॉंसत कामदेव कस ठाढे हावय दुवारी म । मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध ह बांदी हो गे आज […]
आगे बादर पानी के दिन अब तो पानी – पूरा आही बीत गे बोरे – बासी के दिन दार – भात ह अब भाही। फरा अंगाकर रोटी चीला – चटनी संग सब खावत हें खेत – खार म कजरी – करमा भोजली गॉंव-गॉंव गाही । अंगना गली खोर म चिखला नोनी खेलय कोन मेरन सम्हर […]
तीन छत्तीसगढ़ी गज़ल
दादूलाल जोशी ‘फरहद’ (1) सच के बोलइया ला ,जुरमिल के सब लतिया दीन जी । लबरा बोलिस खांटी झूठ , त तुरते सब पतिया लीन जी ।। हमू ल बलाये रिहीन बइठका मा , फेर मिलिस नहीं मौका , कोन्दा लेड़गा मान के मोला , अपनेच्च मन गोठिया लीन जी ।। न कुछु करनी हे […]