महतारी तोर अगोरा मा

परसा झुमरै कोइली गावय, पुरवईया संग,दाई के अगोरा मा। नवा बछर ह झुम के नाचय, सेउक माते ,नवरात्रि के जोरा मा।। लाली धजा संग देव मनावय, भैरो बाबा , गाँव के चौंरा-चौंरा मा।। बईगा बबा ह भूत भगावय, मार के सोंटा,डोरा मा।। सातो बहिनीया आशीस लुटावय, बइठे दाई तोर कोरा मा।। बीर बजरंगी फूलवा सजावय, महतारी तोर अगोरा मा।। राम कुमार साहू सिल्हाटी, कबीरधाम [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]

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अपन-अपन भेद कहौ, भैरा मन के कान मा

अपन-अपन भेद कहौ, भैरा मन के कान मा। जम्मो जिनिस रख देवौ, ओ टुटहा मकान मा। झूठ – लबारी के इहाँ नाता अउ रिस्ता हे, गुरुतुर-गुरुतुर गोठियावौ,अपन तुम जबान मा। थूँके-थूँक म चुरत हे, नेता मन के बरा हर, जनता हलाकान हो गे , ऊँकर खींचतान मा। कऊँवा, कोयली एक डार मा, बइठे गोठियावै, अब अंतर दिखथे मोला, दुनो के उड़ान मा। गाँव के निठल्ला मन अब भले मानुस हो गे, लिख दे पुस्तक जम्मो, ‘बरस’ उनकर सनमान मा। भैरा= बहरा , जिनिस=वस्तु, टुटहा =टूटा हुआ, डार= शाख , गुरुतुर…

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आगे आगे नवा साल

आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल। डारा पाना गीत गाये,पुरवाही मा हाल। पबरित महीना हे,एक्कम चैत अँजोरी के। दिखे चक ले भुइँया हा,रंग लगे हे होरी के। माता रानी आये हे,रिगबिग बरत हे जोती। घन्टा शंख बाजत हे,संझा बिहना होती। मुख मा जयकार हवे ,तिलक हवे भाल। आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल। नवा नवा पाना मा,रूख राई नाचत हे। परसा फुलके लाली,रहिरहि के हाँसत हे। कउहा अउ मउहा हा इत्तर लगाये हे। आमा के मौर मा छोट फर आये हे। कोयली नाचत गावत हे,लहसे आमा डाल। आगे…

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बुढ़वा लइका पांव पखारत हे तोर

सज गे तोर दरबार दाई, जल गे जोत हजार । चैत नवत्रत आगे दाई, मनावन जवरा तिहार। जय होवय डोंगड़गढ़हीन, कइथे तोला सब बमलाई। रतनपुर म बइठे हावय, दुःख हरइया महमाई। नव दीन के नवरात हे, जोत जवारा बोवाथे वो। सेउक तोर सेवा करत हे, मनवांछित फल पाथे वो। नव दीन ले तै रईथस माई, नव ठन हे अउ रूप। जय होवय तोर नव रूप मई, जलावव आगरबत्ती अउ धुप। मोर शीतला महमाया बरगड़ा के, तोर अंगना म जलत हे जोत। गांव म लगे मोर मैया के दरबार, बुढ़वा लइका…

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मैं जनम के बासी खावत हौं

नवजवान,तैं चल, मैं पीछु-पीछु आवत हौं, कइसे चलना हे, बतावत हौं। ताते-तात के झन करबे जिद कभू, मैं जनम के बासी खावत हौं। तोर खांध म बइठार ले मोर अनुभव ल बस , मैं अतके चाहत हौं। दूर नहीं मैं तोर से , मोर संगवारी, पुस्तक म, घटना म, समे म,सुरतावत हौं। पानी के धार बरोबर होथे जवानी, सधगे त साधन बनगे, चेतावत हौं। बइठे रहिबे त पछुआ जाबे खुद से, सोंच ले, समझ ले, मैं बड़ पछतावत हौं। फूटे फोटका जस फेर नइ मिलै समै दुबारा, समै म सवार…

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सेवा गीत : कोयली बोलथे

कोइली बोलथे आमा डार, भवानी मइया तोर अँगना। उड़े झर झर चुनरी तुम्हार, भवानी मइया तोर अँगना।। कोइली…………………. मैना मँजूर चुन चुन फ़ुलवा, मोंगरा केकती ला लावय। गूँथे सुघ्घर गरवा के हार, भवानी मइया तोर अँगना। कोइली…………………. माता के चरन तीर बइठे, लँगूर चँवर ला डोलावय। धूप-दीप आरती उतार, भवानी मइया तोर अँगना। कोयली………………… नव तोर कलशा ला साजे, नव ज्योति मँय जलावँव। नित संझा बिहना तियार, भवानी मइया तोर अँगना। कोयली………………… बोधन राम निषाद राज सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.) [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]

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जनतंत्र ह हो गय जइसे साझी के बइला

मोटा थे नेता, जनता खोइला के खोइला बिरथा लागथे एला सँवारे के जतन, जैसे अंधरा ल काजर अँजाई हे।। करलइ हे भैया करलइ हे। छोटे -छोटे बात के बड़े- बड़े झगड़ा हे अपन -अपन गीत अउ अपन -अपन दफड़ा हे मनखे-मनखे बीच खाई खना गे हे, भाई के दुश्मन अब होगे भाई हे।। करलइ हे भैया करलइ हे। अंधरा प्रसासन अउ भैरा कानून हवय गरीब के सुनवइयां इँहा भला कउन हवय सब के सब लुटे बर घात लगाय बैइठे हे बुड़ मरे घलो म नहकौनी देवइ हे।। करलइ हे भैया…

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राज काज म लाबोन

चलव धधकाबो भाखा के आगी ल, दउड़ समर म कूद जाबों रे गुरतुर मीठ छतीसगढ़ी भाखा ल्, हमर राजकाज म लाबोंन रे हमर राज म दूसर के भाखा, होवत हे छतीसगढ़ी के अपमान दूसर के भाखा जबर मोटहा, दूबर पातर छतीसगढ़ी काडी समान अपन भाखा के बढाबोन मान, चलव जुरमिल सुनता बधाबोन रे गुरतुर मीठ छतीसगढ़ी भाखा ल, हमर राजकाज म लाबोंन रे देवनागरी ले उपजे बाढ़हे, अब छाती ताने राजा ठाड़हे हे दूसर ल मया देवईया हमर भाखा, आज अपने विपत म माड़हे हे अपन भाखा ल देवाबोन पहिचान,…

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सरग हे जेकर एड़ी के धोवन

सरग ह जेखर एड़ी के धोवन, जग-जाहरा जेखर सोर। अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुईयां हवय मोर॥ कौसिल्या जिहां के बेटी, कौसल छत्तीसगढ़ कहाइस, सऊंहे राम आके इहां, सबरी के जूठा बोइर खाइस। मोरध्वज दानी ह अपन, बेटा के गर म आरा चलाइस, बाल्मिकी के आसरम म, लवकुस मन ह शिक्षा पाइन। चारों मुड़ा बगरे हे जिहां, सुख-सुम्मत के अंजोर। अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुंईयां हवय मोर॥ बीर नारायन बांका बेटा, आजादी के अलख जगाए, पंडित सुन्दरलाल शर्मा, समता के दिया जलाए। तियाग-तपस्या देस प्रेम के, कण-कण ह गीत…

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तंय उठथस सुरूज उथे

जिहां जाबे पाबे, बिपत के छांव रे। हिरदे जुड़ा ले आजा मोर गांव रे।। खेत म बसे हाबै करमा के तान। झुमरत हाबै रे ठाढ़े-ठाढ़े धान।। हिरदे ल चीरथे रे मया के बान। जिनगी के आस हे रामे भगवान।। पीपर कस सुख के परथे छांव रे। हिरदे जुड़ा ले, आजा मोर गांव रे। इहां के मनखे मन करथें बड़ बूता। दाई मन दगदग ले पहिरे हें सूता। किसान अउ गौंटिया, हाबैं रे पोठ। घी-दही-दूध-पावत, सब्बो हें रोठ। लेवना ल खोंच के ओमा नहांव रे। हिरदे जुड़ा ले, आजा मोर गांव…

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