सोनहा सावन सम्मारी

सोनहा समे हे सावन सम्मारी, भजय भगद हो भोला भण्डारी। सोनहा समे हे सावन सम्मारी, भजय भगद हो भोला भण्डारी।। नीलकंठ तोर रूप निराला, साँप-डेरू के पहिरे तैं माला। जटा मा गंगा,माथ मा हे चंदा, अंगरक्खा तोर बघवा छाला।। भूत,परेत,नंदी हे संगवारी। सोनहा समे हे सावन सम्मारी।।१ भजय भगद हो भोला भण्डारी।। कैलासपती तैं अंतरयामी, तीन लोक के तैं हर सुवामी। सिचरन संग सकती साजे, देबी देवता के तैं देव धामी।। जगत म जबर तैं जटाधारी। भजय भगद हो भोला भण्डारी।।२ सोनहा समे हे सावन सम्मारी।। सिव संगीकर बड़ बरदानी,…

Read More

नरसिंह दास वैष्‍णव के शिवायन के एक झलक

आइगे बरात गांव-तीर भोला बाबा जी के देखे जाबो चल गीयॉं संगी ल जगाव रे डारो टोपि, मारो धोति, पॉंव पयजामा कसि गरगल बांधा अंग कुरता लगाव रे हेरा पनही, दौड़ंत बनही कहे नरसिंहदास एक बार छूंहा करि सबे कहूँ धाव रे पहुँच गये सुक्खा भये देखि केंह नहिं बाबा नहिं बब्बा कहे प्राण ले अगाव रे कोऊ भूत चढ़े गदहा चढ़े कूकूर म चढ़े कोऊ-कोऊ कोलिहा म चढि़ आवत कोऊ बिघवा म चढि़ कोऊ बघवा म चढि़ कोऊ घुघुवा म चढि़ हाँकत-उड़ावत सर्र-सर्र सांप करे गर्र-गर्र बाघ रे हॉंव-हॉंव…

Read More

गीत : मउहा बिने ल जाबो

चल बिने ल जाबो रे संगी , मउहा के दिन आगे बिनेल जाबो ।…….2 सुत उठके बड़े बिहनिया, टूकनी धर के जाबो। टुकनी टुकनी मउहा संगी, बीन के हमन लाबो। झरत हाबे मउहा संगी -2, धर के हमन आबो । चल बिने ल जाबो रे संगी, मउहा के दिन आगे बिनेल जाबो । लट लट ले फरे हाबे, अब्बड़ ममहाथे । खुसबू ल पाके ओकर, भालू घलो आथे । जगा जगा फरे मउहा -2, सबोझन खाथे । चल बिने ल जाबो …………………………. डोंगरी पहाड़ चढबो, तेंदू चार लाबो। आमा अमली…

Read More

चलो मंदिर जाबो

चलो मंदिर जाबो भैया मोर, दाई के पूजा करबो । चलो मंदिर जाबो बहिनी मोर, माता के सेवा करबो। चंपा चमेली के फूल गुंथके , माता ल पहिनाबोन । आनी बानी फूल लानके, आसन ओकर सजाबोन। जोत जलाके सुघ्घर, आरती सबझन गाबो । चलो मंदिर जाबो भैया मोर, दाई के पूजा करबो । सोला सिंगार करके, माता हर मुसकाथे । भगत के मान रखे खातिर, सुंदर रुप देखाथे । चैत के महिना आगे, झूला ओकर सजाबो । चलो मंदिर जाबो बहिनी मोर, माता के सेवा करबो । बघवा के सवारी…

Read More

मंहगाई

मंहगाई के मार से , बच न सके अब कोय, जेकर जादा लइका रही, तेला मरना होय। का अमीर अऊ का गरीब, सबके एके हाल, चक्की में पिसावत हे, सबके हाल बेहाल । दौलत खातिर लड़त हे, भाई भाई आज, घर परिवार ल दुख देके, अपन करत राज। दौलत ही सब कुछ हे, महिमा अपरंपार, कतको ग्यानी ध्यानी होही, कोनों न पावे पार। जेकर पास दौलत हे, उही करत हे राज , कुछू भी करही तब ले, ओला नइहे लाज । कतको पढ लिख के, घूमत हे बेरोजगार, जब तक…

Read More

नानपन के होरी

नानपन म होरी खेले म अड़बड़ मजा आवय, खोर गली के चिखला म, जहुंरिया मन घोन्डावय। पहिली संझा होली के लकड़ी घर घर ले लावन। सियान संग पूजा करके होली हमन जलवावन। अधरतिया ले नंगारा बजाके अंडबंड गीत गावन। कभू कभू परोसी घर के, झिपारी, लकड़ी चोरावन। उठ बिहनिया बबा संगधरके होली डांड़ जावन। लकड़ी छेना नरियर डारन ऊद बत्ती जलावन। बबा पाछू करीस ताहन नरियर ल खोधियावन। फोरके नरियर खुरहोरी ल झपट-झपट के खावन। पिचकारी म पानी भरके रेंगईया ऊपर पिचकन। कनकन पानी दुसर पिचके त एती ओती बिदकन।…

Read More

दान लीला के अंश : पं. सुन्दरलाल शर्मा

पं. सुन्दरलाल शर्मा ल छत्तीसगढी़ पद्य के प्रवर्तक माने जाथे। सबले पहिली इमन छत्तीसगढी़ मं ग्रंथ-रचना करिन अउ छत्तीसगढी़ जइसे ग्रामीण बोली (अब भाषा) मं घलोक साहित्य रचना संभव हो सकथे ए धारणा ल सत्य प्रमाणित करे गीस। इंखर ‘दान लीला’ ह छत्तीसगढ मं हलचल मचा दे रहिस हे। ओ समें कुछ साहित्यकार मन इंखर पुस्तक के स्वागत करिन अउ कुछ मन विरोध तको करिन। मध्यप्रदेश के ख्याति प्राप्त साहित्यकार पण्डित रघुवरप्रसाद द्विवेदी ह ओ समें के ‘हितकारिणी पत्रिका’ मं ए पुस्तक के अड़बड़ करू आलोचना करिन। तेखर बाद भी…

Read More

सावन सरल सारदा मैया : जगन्नाथ प्रसाद भानु

आप बिलासपुर के निवासी रहेव। आप मध्यप्रदेश शासन म उच्च अधिकारी रहेव। आपला मातृभाषा हिन्दी उपर बडा़ अनुराग रहिस। इंखर अधिकांश समय साहित्य-सेवा म बीतय। काव्य उपर इंखर अड़बड़ प्रेम रहिस अउ आप काव्य शास्त्र के बड़े ज्ञाता घलव रहेव। ‘छन्द प्रभाकर’ अउ ‘काव्य प्रभाकर’ इंखर काव्यशास्त्र संबंधी प्रसिद्ध ग्रंथ आए। उर्दू म इंमन ‘फैंज’ उपनाम ले कविता घलव लिखें हें। छत्तीसगढी़ म इंमन माता जस/सेवा गीत लिखें हें जउन ह ‘श्री मातेश्वरी सेवा के गुटका’ नाम के संग्रह म उपलब्ध हे। इंखर माता जस/सेवा गीत के उदाहरण प्रस्तुत हे-…

Read More

तुम करहु जैसे जौन : प्राचीन कवि प्रहलाद दुबे

प्रहलाद दुबे सारंगढ के रहईया रहिन। सत्रहवीं शताब्दी के आखरी म इमन ‘जय चन्दिका’ लिखे रहिन। एमा संबलपुर के राज-वंश के वर्णन हावय। इखंर भाषा म व्रज, बसवाडी अउ छत्तीसगढी़ के मेल हे। इंखर कविता के एक उदाहरण देखव- तुम करहु जैसे जौन, हम हवें सामिल तौन। महापात्र मन मंह अन्दाजे, हम ही हैं सम्बलपुर राजे।। राजकुमार हिये अन्ताजेव, सोमला मन्दिर जाई बिराजेव। एको निसर जान नई पैहे मूढ़ में गड़रगप्प ह्वै जैहे । क्या जानी क्या होय, बौहों काहे सिर बद्दी। (परिचय डॉ.दयाशंकर शुक्‍ल : छत्‍तीसगढ़ी लोकसाहित्‍य का अध्‍ययन…

Read More

हिरदे जुडा ले आजा मोर गांव रे : डॉ. विनय कुमार पाठक के गीत

जिहाँ जाबे पाबे, बिपत के छांव रे। हिरदे जुडा ले आजा मोर गांव रे॥ खेत म बसे हावै करा के तान। झुमरत हावै रे ठाढे-ठाढे धान॥ हिरदे ल चीरथे रे मया के बान। जिनगी के आस हे रामे भगवान॥ पीपर कस सुख के परथे छांव रे। हिरदे जुडा ले, आजा मोर गाँव रे ॥ इहाँ के मनखे मन करथें बड़ बूता। दाई मन दगदग ले पहिरे हें सूता॥ किसान अउ गौटिया, हावैं रे पोठ। घी-दही-दूध-पावत, सब्बे रें रोठ॥ लेवना ल खांव के ओमा नहाँव रे। हिरदे जुडा ले, आजा मोर…

Read More