सुर म तो सोरिया सुघर – सब लोग मन जुरिया जहंय तैं डगर म रेंग भर तो – लोग मन ओरिया जहंय का खड़े हस ताड़ जइसन – बर पीपर कस छितर जा तोर छइंहा घाम घाले – बर जमो ठोरिया जहंय एक – दू मछरी करत हें – तरिया भर ल मतलहा आचरन के जाल फेंकव – तौ कहुं फरिया जहय झन निठल्ला बइठ अइसन – माड़ी कोहनी जोर के तोर उद्दीम के करे – बंजर घलव हरिया जहय देस अऊ का राज कइठन – जात अऊ जम्मो धरम सुमत अऊ बिसवास के बिन –…
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जिनगी के बेताल – सुकवि बुधराम यादव
“डोकरा भइन कबीर “-बुधराम यादव (डॉ अजय पाठक की कृति “बूढ़े हुए कबीर ” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक बानगी जिनगी के बेताल एक सवाल के जुवाब पाके अउ फेर करय सवाल विक्रम के वो खाँध म बइठे जिनगी के बेताल ! पूछय विक्रम भला बता तो अइसन काबर होथे ? अंधवा जुग म आँखी वाला जब देखव तब रोथें सूरुज निकलय पापी के घर दर -दर मारे फिरय पुन्न घर जाँगर टोर नीयत वाले के काबर हाल बिहाल ? राजा अपन राज धरम ले करंय नहीं अब…
Read Moreगाँव कहाँ सोरियावत हें (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह के कुछ अंश )
जुन्ना दइहनहीं म जब ले दारु भट्ठी होटल खुलगे टूरा टनका मन बहकत हें सब चाल चरित्तर ल भूलगें मुख दरवाजा म लिखाये हावय पंचयती राज जिहाँ चतवारे खातिर चतुरा मन नई आवत हांवय बाज उहाँ गुरतुर भाखा सपना हो गय सब काँव -काँव नारियावत हें देखते देखत अब गाँव गियाँ सब सहर कती ओरियावत हें ! कलपत कोयली बिलपत मैना मोर गाँव कहाँ सोरियावत हें ! -बुधराम यादव
Read More=वाह रे चुनाव=
वाह रे चुनाव तोर बुता जतिच नाव। जब ले तंय आए हच,होगे काँव काँव। भाई संग भाई ल तंय हा,लड़वा डरे जनम भर के मित मितानी,छिन भर म मेंट डरे। जेती देखबे उहि कोती हाबय हांव हांव।वाह रे चुनाव———– छल करे अइसे सबला,बनादेच लबरा गैरि कस मता डरे,पारा पारा झगरा। काट डरे मया रुख कांहाँ मिलही छांव।वाह रे चुनाव——– निसरमी बना डरे सब ला,भिखारी घुमा डरे हांथ जोरे ए दुवारी वो दुवारी। खियाजहि मांथा घलो परत परत पांव।वाह रे चुनाव——— डोकरी दाई के फरमाइस,लुगरा चाही उंचहा डोकरा बबा खाहौं कथे…
Read Moreअब लाठी ठोंक
चर डारिन गोल्लर मन धान के फोंक । हकाले म नइ मानय अब लाठी ठोंक ।। जॉंगर चलय नही जुवारी कस जान । बिकास के नाम म भासन के छोंक ।। भईंस बूड़े पगुरावय अजादी के तरिया । जिंहा बिलबिलावत हे अनलेखा जोंक ।। खेत मन म लाहसे हे खेती मकान के । दलाल मन उड़वावत हे झोंक भाई झोंक ।। सोन के चिरइया ल खावन दे खीर । बॉंचे खूंचे पद ल आरकछन म झोंक ।। चिटिकन जघा नइहे धरे बर इमान के । भिथिया म कोनो मेर टॉंग…
Read Moreहोथे कइसे संत हा (कुण्डलिया)
काला कहि अब संत रे, आसा गे सब टूट । ढोंगी ढ़ोंगी साधु हे, धरम करम के लूट ।। धरम करम के लूट, लूट गे राम कबीरा । ढ़ोंगी मन के खेल, देख होवत हे पीरा ।। जानी कइसे संत, लगे अक्कल मा ताला । चाल ढाल हे एक, संत कहि अब हम काला ।। होथे कइसे संत हा, हमला कोन बताय । रूखवा डारा नाच के, संत ला जिबराय ।। संत ला जिबराय, फूल फर डारा लहसे । दीया के अंजोर, भेद खोलय गा बिहसे ।। कह ‘रमेष‘ समझाय,…
Read Moreलोरी
सुत जबे सुत जबे लल्ला रे सुत जबे न एसे मजा के रे बेटा मोर पलना मा सुत जबे सपना के रानी रे बेटा मोर निदिया में आही न मुन्ना राजा बर भैया रे पलना सजाही न चंदा के पलना रे भैया मोर रेशम के डोरी न टिमटिम चमके रे बेटा मोर सुकवा चंदैनी न गजरा गुंथाये रे लल्ला मोर चम्पा चमेली न पलना झुलाही रे बेटा मोर सखी अऊ सहेली न ऐसे के बेरिया म भैया मोर रानी जब आही न लोरी सुना के रे बेटा मोर तोला सुताही…
Read Moreफुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक….
(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस बालगीत को मैं अपनी मझली बेटी के लिए तब लिखा था, जब वह करीब एक वर्ष की थी, और थोड़ा-बहुत चलने की कोशिश कर रही थी। उस समय भी आज की ही तरह ठंड का आगमन हो चुका था, और वह बिना कपड़ा पहने घर के आंगन में इधर-उधर खेल रही थी….) फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक खेलत हे नोनी फुदुक-फुदुक…. बिन कपड़ा बिन सेटर के जाड़ ल बिजरावत हे। कौड़ा-गोरसी घलो ल, एहर ठेंगा देखावत हे। बिन संसो बिन फिकर के, कुलकत हे ये गुदुक-गुदुक…… कभू गिरथे,…
Read Moreवंदे मातरम…
घर-घर ले अब सोर सुनाथे वंदे मातरम लइका-लइका अलख जगाथें वंदे मातरम… देश के पुरवाही म घुरगे वंदे मातरम सांस-सांस म आस जगाथे वंदे मातरम रग-रग म तब जोश जगाथे वंदे मातरम…. उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम मिलके गाथें कहूं बिपत आये म सब खांध मिलाथें तब तोर-मोर के भेद भुलाथे वंदे मातरम…. हितवा खातिर मया लुटाथे वंदे मातरम बैरी बर फेर रार मचाथे वंदे मातरम अरे पाक-चीन के छाती दरकाथे वंदे मातरम… सुवा-ददरिया-करमा धुन म वंदे मातरम भोजली अउ गौरा म सुनथन वंदे मातरम तब देश के खातिर चेत जगाथे वंदे मातरम… सुशील…
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नंदावत चीला फरा,अउ नंदाय जांता । झांपी चरिहा झउहा,नंदावत हे बांगा। नंदावत हे बांगा,पानी कामे भरबो। जांता बीना हमन,दार कामे दरबो कहत “नुकीला” राम,नवा जबाना हे आवत। गाड़ा दौरी नांगर,सब जावत हे नंदावत। आगी छेना बारि के,सब झन जाड़ बुताय। गोरसी आगु बैठि के,लफ लफर गोठियाय। लफ लफर गोठियाय,काम करे न धाम करे। चारी चुगली करत,जिनगी ल अंधियार करे। कहत “नुकीला” राम, सुनव रे म मोरे रागी। गिस मांगे ल आगी, अउ लगादिस घर आगी। नोख सिंह चंद्राकर “नुकीला” पता :- गाँव – लोहारसी पोष्ट – तर्रा तह.-पाटन जिला –…
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