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ग़ज़ल : सुकवि बुधराम यादव

सुर म तो सोरिया सुघर – सब लोग मन जुरिया जहंय तैं डगर म रेंग भर तो – लोग मन ओरिया जहंय का खड़े हस ताड़ जइसन – बर पीपर कस छितर  जा तोर छइंहा घाम घाले – बर जमो ठोरिया जहंय एक – दू मछरी करत हें – तरिया भर ल मतलहा आचरन के जाल फेंकव – तौ […]

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कविता गीत

जिनगी के बेताल – सुकवि बुधराम यादव

“डोकरा भइन कबीर “-बुधराम यादव (डॉ अजय पाठक की कृति “बूढ़े हुए कबीर ” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक बानगी जिनगी के बेताल एक सवाल के जुवाब पाके अउ फेर करय सवाल विक्रम के वो खाँध म बइठे जिनगी के बेताल !     पूछय विक्रम भला बता तो अइसन काबर होथे ? अंधवा जुग म आँखी […]

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कविता गीत

गाँव कहाँ सोरियावत हें (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह के कुछ अंश )

जुन्ना दइहनहीं म जब ले दारु भट्ठी होटल खुलगे टूरा टनका मन बहकत हें सब चाल चरित्तर ल भूलगें मुख दरवाजा म लिखाये हावय पंचयती राज जिहाँ चतवारे  खातिर चतुरा  मन नई आवत हांवय बाज उहाँ गुरतुर भाखा सपना हो गय सब काँव -काँव  नारियावत हें देखते देखत अब गाँव गियाँ सब सहर कती ओरियावत हें ! […]

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=वाह रे चुनाव=

वाह रे चुनाव तोर बुता जतिच नाव। जब ले तंय आए हच,होगे काँव काँव। भाई संग भाई ल तंय हा,लड़वा डरे जनम भर के मित मितानी,छिन भर म मेंट डरे। जेती देखबे उहि कोती हाबय हांव हांव।वाह रे चुनाव———– छल करे अइसे सबला,बनादेच लबरा गैरि कस मता डरे,पारा पारा झगरा। काट डरे मया रुख कांहाँ […]

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अब लाठी ठोंक

चर डारिन गोल्लर मन धान के फोंक । हकाले म नइ मानय अब लाठी ठोंक ।। जॉंगर चलय नही जुवारी कस जान । बिकास के नाम म भासन के छोंक ।। भईंस बूड़े पगुरावय अजादी के तरिया । जिंहा बिलबिलावत हे अनलेखा जोंक ।। खेत मन म लाहसे हे खेती मकान के । दलाल मन […]

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होथे कइसे संत हा (कुण्डलिया)

काला कहि अब संत रे, आसा गे सब  टूट । ढोंगी ढ़ोंगी साधु हे, धरम करम के लूट ।। धरम करम के लूट, लूट गे राम कबीरा । ढ़ोंगी मन के खेल, देख होवत हे पीरा ।। जानी कइसे संत, लगे अक्कल मा ताला । चाल ढाल हे एक, संत कहि अब हम काला ।। […]

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लोरी

सुत जबे सुत जबे लल्ला रे सुत जबे न एसे मजा के रे बेटा मोर पलना मा सुत जबे सपना के रानी रे बेटा मोर निदिया में आही न मुन्ना राजा बर भैया रे पलना सजाही न चंदा के पलना रे भैया मोर रेशम के डोरी न टिमटिम चमके रे बेटा मोर सुकवा चंदैनी न […]

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फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक….

(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस बालगीत को मैं अपनी मझली बेटी के लिए तब लिखा था, जब वह करीब एक वर्ष की थी, और थोड़ा-बहुत चलने की कोशिश कर रही थी। उस समय भी आज की ही तरह ठंड का आगमन हो चुका था, और वह बिना कपड़ा पहने घर के आंगन में इधर-उधर खेल रही […]

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वंदे मातरम…

घर-घर ले अब सोर सुनाथे वंदे मातरम लइका-लइका अलख जगाथें वंदे मातरम… देश के पुरवाही म घुरगे वंदे मातरम सांस-सांस म आस जगाथे वंदे मातरम रग-रग म तब जोश जगाथे वंदे मातरम…. उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम मिलके गाथें कहूं बिपत आये म सब खांध मिलाथें तब तोर-मोर के भेद भुलाथे वंदे मातरम…. हितवा खातिर मया लुटाथे वंदे मातरम […]

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कुण्डलियाँ

नंदावत चीला फरा,अउ नंदाय जांता । झांपी चरिहा झउहा,नंदावत हे बांगा। नंदावत हे बांगा,पानी कामे भरबो। जांता बीना हमन,दार कामे दरबो कहत “नुकीला” राम,नवा जबाना हे आवत। गाड़ा दौरी नांगर,सब जावत हे नंदावत। आगी छेना बारि के,सब झन जाड़ बुताय। गोरसी आगु बैठि के,लफ लफर गोठियाय। लफ लफर गोठियाय,काम करे न धाम करे। चारी चुगली […]