कया के पेंड माँ कया नइए । निरदई तोर शरीर माँ दया नइये॥ हंडिया के मारे तेलई फूट जाय। चारी चुगली के मारे पिरित छुट जाय॥ तवा के रोटी तवा मं जरि जाय। दुजहा ला झन देबे कुंआरी रहि जाय॥ पीपर के पाना हलर ह॒इया। दुई डउकी के डउका कलर कइया॥ तोर मन चलती मोर मन उदास। जल देवता मां खड़े होके मरथंव पियास॥ फूटहा रे मंदीर कलस तो नइये। दू दिन के अवइया दरस तो नइये॥ मोर जरत करेजा कसकत तन मां। चुर चुर के रहंव राजा अपन मन…
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पारंपरिक बांस-गीत
छेरी ल बेचों मेढ़ ल बेचौं, बेचों भंसी बगार। बनी भूती मा हम जी जाबो सोबोन गोड़ लमाय॥ छरी न बेचों, मेढ़ी न बेचौं न बेचौं भैंसी बगार। मोले मही मां हम जी जाबो, अउ बेचौं तोही ल घलाय॥ कोन तोरे करही राम रसोई, कोन करे जेवनार। कोन तोरे करही पलंग बिछौना, कोन जोहे तोरे बाट॥ दाई करिहै रामे रसोई, बहिनी करे जेवनार। सुलखी चेरया पलंग बिछाही, अउ मुरली जोहे मोर बाट॥ सास डोकरिया मरहर जाही नंनद पढठोहूं ससुरार। सुलखी चेरिया हाटन बिकाही, अउ मुरली नदी माँ बोहाय॥ दाई ल…
Read Moreपारंपरिक देवार-गीत
मार दिस पानी बिछल गे बाट ठमकत केंवटिन चलिस बजार केंवटिन गिर गे माड़ी के भार केवट उठाये नगडेंवा के भार लाई मुर्रा दीन बिछाय शहर के लइका बिन बिन खाय अपन लइका ला थपड़ा बजाय पर के लइका ला कोरा मां बइठाय दिन खवाय मछरी भात रात ओढ़ाइस मछरी के जाल अलको रे केंवटिन मलको रे धार सुख सनीचर मंगलवार भरे पूरा मां घोड़ा दौड़ाय सुक्खा नदिया मां डोंगा चलाय रात के केंवटिन डफड़ा बजाय दिन के केंवटिन खपड़ा बजाय एक ठन सीथा मां फुल के मरे एक बूंद…
Read Moreपारंपरिक फाग गीत
श्याम बजा गयो बीना हो एक दिन श्याम बजा गयो बीना चैत भगती, बैस़ाख लगती, जेठ असाढ़ महीना सावन में गोरी झूले हिंडोलना, भादो मस्त महीना हो … एक दिन श्याम बजा गयो बीना। कुंवार भागती, कातिक लगती अगहन पूस महीना माघ में गोरी मकर नहावे, फ़ागुन मस्त महीना हो … एक दिन श्याम बजा गयो बीना। सुंदर सेज बिछे अंटा पर, पौढ़े नारी नगीना चोली के बंद तड़ातड़ टूटे अंचरा पोछे पछीना हो … एक दिन श्याम बजा गयो बीना। पारंपरिक फाग गीत
Read Moreपारंपरिक छत्तीसगढ़ी सोहर गीत
यशोदा से देवकी कहती है कि ‘नून-तेल’ की उधारी होती है, पैसे की भी उधारी होती है, बहन किन्तु अपने कोख की उधारी नहीं होती.. विधन हरन गन नायक, सोहर सुख गावथंव। सातो धन अंगिया के पातर, देवकी गरभ में रहय वो, बहिनी, विघन हरन गन नायक, सोहर सुख गावथंव। साते सखी आगे चलय, साते सखी पीछे चलय, बहिनी बीच में दशोमती रानी चलत हे, जमुना पानी बर वो, बहिनी कोनो सखी बोहे हावय हवला, मोर कोनों बटलोइहा ला वो, कोनो सखी बोहे माटी के घइला, चलत हे जमुना पनिया…
Read Moreहमर देस : जौन देस में रहिथन भैया, ये ला कहिथन भारत देस
जौन देस में रहिथन भैया, ये ला कहिथन भारत देस, मति अनुसार सुनाथंव तुमला, येकर कछु सुंदर सन्देस। उत्ती बाजू जगन्नाथ हैं, बुड़ती में दुवारिका नाथ, बदरी धाम भंडार बिराजे, मुकुट हिमालय जेकर माथ। सोझे सागर पांव धोत हैं, रकसहूं रामेश्वर तीर, बंजर झाडी़ फूल चढ़ावें, कोयल बिनय करे गंभीर। जो ये देह हमार बने है, त्यारे अन्न इहें के जॉन, लंह हमार इहें के पानी, हवा इहें के प्रान संमान। रोंवां रोंवा पोर पोर ले, कहं तक कहाँ बात समझाय, थोरे को नइये हमर कहेबर, सब्बो ये भारत के…
Read Moreचंदैनी गोंदा के 14 गीत
शीर्षक गीत – रविशंकर शुक्ल घानी मुनी घोर दे – रविशंकर शुक्ल छन्नर छन्नर पइरी बाजे – कोदूराम ‘दलित’ मइके के साध – रामरतन सारथी झिलमिल दिया बुता देबे – श्री प्यारे लाल गुप्त घमनी हाट – द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ गाँव अभी दुरिहा हे – नारायणलाल परमार बसदेव गीत – भगवती सेन चल सहर जातेंन – हेमनाथ यदु तोर धरती तोर माटी – पवन दीवान माटी होही तोर चोला – चतुर्भुज देवांगन ‘देव’ चलो जाबो रे भाई – रामकैलाश तिवारी मोला जान दे संगवारी – रामेश्वर वैष्णव चलो बहिनी…
Read Moreधान कटोरा रीता होगे
धान कटोरा रीता होगे कहां होही थिरबांह है। छत्तीसगढ़ के पावन भूइया बनगे चारागाह है। बाहिर ले गोल्लर मन के आके, ओइल गइन छत्तीसगढ़ मा। रौंद रौंद के गौंदन कर दिस, भूकरत हे छत्तीसगढ़ मा। खेत उजरगे जमीन बेचागे खुलिस मिल कारख़ाना हे। छत्तीसगढ़ के किस्मत मा दर दर ठोकर खाना हे । हमर खनिज ला चोरा चोरा के डोहारत हे चोरहा मन। जंगल ल सब कांट काटके भरे तिजोरी ढोरहा मन। इंहा के पइसा हा बंट जाथे दिल्ली अउ भोपाल हे। जुर मिलके सब निछत हावै छतीसगढ़ के खाल…
Read Moreछत्तीसगढ़ी बाल गीत
सपना कहाँ-कहाँ ले आथे सपना। झुलना घलो झुलाथे सपना। छीन म ओ ह पहाड़ चढ़ाथे, नदिया मा तँऊराथे सपना। जंगल -झाड़ी म किंजारथे, परी देस ले जा जाथे सपना। नाता-रिस्ता के घर ले जा के, सब संग भेंट करथे सपना। कभू हँसाथे बात-बात मा, कभू – कभू रोवाथे सपना। कभू ये हर नइ होवै सच, बस, हमला भरमाथे सपन। -बलदाऊ राम साहू
Read Moreछत्तीसगढ़ी नवगीत : पछतावत हन
ओ मन आगू-आगू होगे हमन तो पछवावत हन हाँस-हाँस के ओ मन खावय हमन तो पछतावत हन। इही सोंच मा हमन ह बिरझू अब्बड़ जुगत लखायेन काँटा-खूँटी ल चतवार के हम रद्दा नवा बनायेन। भूख ल हमन मितान बनाके रतिहा ल हम गावत हन। मालिक अउ सरकार उही मन हमन तो भूमिहार बनेन ओ मन सब खरतरिहा बनगे हमन तो गरियार बनेन। ढोकर-ढोकर के पाँव परेन मुड़ी घलो नवावत हन। उनकर हावै महल अँटारी टूटहा हमर घर हे उनकर छाती जब्बर हे चाकर देह हमर दुब्बर हे। ओ मन खावय…
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