छत्तीसगढ़ी बाल गीत

कुतर-कुतर के खाथस मुसवा, काबर ऊधम मचाथस मुसवा। चीं-चीं, चूँ-चूँ गाथस काबर तैं, बिलई ले घबराथस काबर तैं । काबर करथस तैं हर कबाड़ा, अब तो नइ बाँचे तोरो हाड़ा। बिला मा रहिथस तैं छिप के, हिम्मत हे तब देख निकल के। कान पकड़ के नचाहूँ तोला, अड़बड़ सबक सिखाहूँ तोला। बलदाऊ राम साहू

Read More

धानी भुईया मोर छत्तीसगढ़

बड़ सुग्घर महतारी के कोरा धान कटोरा धानी रे। डोंगरगढ़ बमलई ईहा तेलिन दाई के घानी रे।। पैरी सोंढुर के धार संग महानदी के पानी हे। जनमेन इही भुइया म धन धन हमरो जिनगानी हे।। जुड़ पुरवाही झकोरा म लह लहावत धान के बाली। हरियर लुगरा पहिरय दाई माथ नवावय सूरज के लाली।। अइसन हे छतीसगढ़ के भुईया जिनगी हमर भागमानी हे। जनमेन इही भुइया म धन धन हमरो जिनगानी हे।। सरग बरोबर गांव गली हे अमरईया खार ओनहारी डोली। लइका खेलय भवरा बाटी बीरो बिल्लस हासी ठिठोली।। कहानी कथा…

Read More

सरगुजिहा जाड़ा कर गीत

जाड़ा कर मारे, कांपत हवे चोला बदरी आऊ पानी हर बईरी लागे मोला। गरु कोठारे बैला नरियात है, दूरा में बईठ के कुकुर भुंकात हवे, आगी तपात हवे गली गली टोला, जाड़ा कर मारे……… पानी धीपाए के आज मै नहाएन चूल्हा में जोराए के बियारी बनाएन आज सकूल नई जाओ कहत हवे भोला जाड़ा कर मारे…… बाबू हर कहत हवे भजिया खाहूं नोनी कहत है छेरी नई चराहूं संगवारी कहां जात हवे धरीस हवे झोला, जाड़ा कर मारे…………. मधु गुप्ता “महक”

Read More

मनखे-मनखे एक समान

सुनो-सुनो ग मितान, हिरदे म धरो धियान। बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान”।। एके बिधाता के गढ़े, चारों बरन हे, ओखरे च हाथ म, जीवन-मरन हे। काबर करथस गुमान, सब ल अपने जान। बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान”।। सत के जोत, घासीदास ह जगाय हे, दुनिया ल सत के ओ रद्दा देखाय हे। झन कर तैं हिनमान, ये जोनी हीरा जान। बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान।। जीव जगत बर सत सऊहें धारन हे, मया मोह अहम, दुख पीरा के कारन हे। झन डोला तैं ईमान, अंतस उपजा गियान।…

Read More

10 दिसम्बर शहीद वीरनारायण सिंह बलिदान दिवस

सोनाखान के हीरा बेटा सोनाखान जमींदार रहय तैं, नाम रहय वीरनारायन। परजा मन के पालन करके, करत रहय तैं सासन।। इखरे सेवा मा बित गे जिनगी, अउ बितगे तोर जवानी। सोनाखान के हीरा बेटा, तैं होगे अमर के बलिदानी।। परिस अकाल राज मा तब ले, चलय न सकिस गुजारा। सबके मुख मा तहिं रहय, अउ तहिं उखर सहारा।। भरे गोदाम अनाज बांट के लिख देय नवा कहानी। सोनाखान के हीरा बेटा, तैं होगे अमर के बलिदानी।। सब के खातिर जेल गये तैं, तभो ले हिम्मत दिखाये। जेल ले भाग के…

Read More

सरगुजिहा लोक गीत – जाड़ा

हाय रे जाड़ा हाय रे जाड़ा ऐसो एतेक बैरी हो गे ठिठुरत हवे हाड़ा हाय रे…….. भिनसारे गोदरी में दुबके सूते रहथो, कईसे उसरी काम बूता मने मने कहथो, अकड़ल हाथे हाय रे दाई कईसे झाड़ो,आंगन बाड़ा हाय………. हालू हालू उसरा के बूता घामा तापत रहथों, जीते जायल घामा उते खटिया खींचत रहथों, छिंड़हा कांचे जाथो त पानी हर लागे कारा हाय रे………। जईसे जईसे सांझ होते थर थर कांपे लगथन, गोरसी ला जराए के जम्मो लिघे बईठे रहथन, दोना पतरी खिलत रहथों कोन मांजे भाड़ा हाय रे जाड़ा हाय…

Read More

घटारानी हावे तोर नांव

धसकुड़ मं बिराजे ओ,घटारानी हावे तोर नांव…२ चिरई-चिरगुण चिंव-चाँव करत हे…२ मईयां मईयां रटे नांव…२ धसकुड़ मं बिराजे ओ,घटारानी हावे तोर नांव…२ झरझर-झरझर झरना चलत हे,तोर, तोर अँगना अऊ दुवारी ओ…२ सुर-सुर-सुर-सुर पवन चलत हे, जुड़ चले पुरवाई ओ…२ बघुवा भालू तोर रखवारी करत हे…२ करत हावे हांव-हांव…२ धसकुड़ मं बिराजे ओ,घटारानी हावे तोर नांव…२ हरियर-हरियर रूख राई दिखत हे, चारो मुंड़ा चारो कोती ओ…२ रीग-बीग-रीग-बीग जोत जलत हे, अँगना बरे तोर जोति ओ…२ महर-महल तोर अँगना करत हे…२ बगिया हावे तोर गांव…२ धसकुड़ मं बिराजे ओ,घटारानी हावे तोर नांव…२…

Read More

सरगुजिहा गीत

हाथे धरे बीड़ा, लगावत हो रोपा मिले आबे संगी तै खेतवा कर धरी मिले आबे…………… बेर उगते ही डसना उड़ासेन माया मिलाए के केलवा बनाएन खाएक आबे संगी तै सुन ले फरी फरी. मिले आबे संगी तै खेतवा कर धरी। तै हस संगी मोर हिरदे कर चैना, तै हस मोर सुगा मै हो तोर मैना, तोर सूरता संगी मोला आएल घरी घरी मिले आबे संगी तै खेतवा कर धरी। मधु गुप्ता ‘महक’

Read More

हमर छत्तीसगढ़

गुरतुर हमर भाखा सिधवा हमर चाल हे। ऐ छत्तीसगढ़िया बड़ा कमाल हे…….2। अरपा पैरी हसदो के निरमल सुघ्घर पानी हे। महानदी हे पुण्य सलिला एहि हमर जिंदगानी हे। ये भुइयां के बात अलग हे…2 राम के इहाँ ननिहाल है मोर छत्तीसगढ़िया बड़ा कमाल के…2। नदिया नरवा झिरिया म देवता धामी बइठे है। रुख राई के पांव पखारेन सब म ईश्वर देखे हे। जम्मो कोती हे भाईचारा…2 नही कोई जंजाल हे मोर छत्तीसगढ़िया बड़ा कमाल के…2। घर म आइन पहूना पाठी मिलथे बड़ सम्मान जी ठेठरी खुरमी कडुवा पपची हमन के…

Read More

माटी मोर मितान

सुक्खा भुँइया ल हरियर करथंव, मय भारत के किसान । धरती दाई के सेवा करथँव, माटी मोर मितान । बड़े बिहनिया बेरा उवत, सुत के मँय ऊठ जाथंव । धरती दाई के पंइया पर के, काम बुता में लग जाथंव । कतको मेहनत करथों मेंहा, नइ लागे जी थकान । धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान । अपन पसीना सींच के मेंहा, खेत में सोना उगाथंव । कतको बंजर भूंइया राहे, फसल मँय उपजाथँव । मोर उगाये अन्न ल खाके, सीमा में रहिथे जवान । धरती दाई के…

Read More