छत्तीसगढ़ी नवगीत

चलव गीत ल गा के देखन, चलव गीत ल गा के देखन, अंतस ल भुलिया के देखन। सुख अउ दुख तो आथे-जाथे, कभू हँसाथे कभू रोवाथे। मन के पीरा ला मीत बना ले अपने अपन वो गोठियाथे। ये सब के पाछू मा का हे ? चिटिक हमू फरिया के देखन। चार दिन बर चंदा आथे फेर अँधियारी समा जाथे ये जिनगी के घाम-छाँव हर दुनिया भर ला भरमाथे। जिनगी के मतलब जाने बर दुख-पीरा टरिया के देखन। जिनगी सरग बरोबर होथे सुख हर जब सकला जाथे मन उछाहित हो जाथे…

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गीत: सुरता के सावन

घुमङे घपटे घटा घनघोर। सुरता के सावन मारे हिलोर।। घुमङे घपटे घटा घनघोर…. मेछरावे करिया करिया बादर, नयना ले पिरीत छलके आगर। होगे बइहा मन मंजूर मोर, सुरता के सावन मारे हिलोर।।१ नरवा,नँदिया,तरिया बउराय, मनमोहनी गिंया मोला बिसराय। चिट्ठी,पतरी,संदेस ना सोर, घुमङे घपटे घटा घनघोर।।२ बरसा बरसे मन बिधुन नाँचे, बिन जँउरिहा हिरदे जेठ लागे। लामे मन मयारूक मया डोर, सुरता के सावन मारे हिलोर।।३ पुरवाही जुङ, डोलय पाना डारा, पूँछव पिरोहिल ल पारा ओ पारा। फिरँव खोजव खेत खार खोर, घुमङे घपटे घटा घनघोर।।४ सुरता के सावन मारे हिलोर……..…

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भोले बाबा

डोल डोल के डारा पाना ,भोला के गुण गाथे। गरज गरज के बरस बरस के,सावन जब जब आथे। सोमवार के दिन सावन मा,फूल पान सब खोजे। मंदिर मा भगतन जुरियाथे,संझा बिहना रोजे। लाली दसमत स्वेत फूड़हर,केसरिया ता कोनो। दूबी चाँउर दूध छीत के,हाथ ला जोड़े दोनो। बम बम भोला गाथे भगतन,धरे खाँध मा काँवर। नाचत गावत मंदिर जाके,घुमथे आँवर भाँवर। बेल पान अउ चना दार धर,चल शिव मंदिर जाबों। माथ नवाबों फूल चढ़ाबों ,मन चाही फल पाबों। लोटा लोटा दूध चढ़ाबों ,लोटा लोटा पानी। भोले बाबा हा सँवारही,सबझन के जिनगानी।…

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गीत : सावन महीना

सावन आथे त मन मा, उमंग भर जाथे। हरियर हरियर सबो तीर, रंग भर जाथे। बादर ले झरथे, रिमझिम पानी। जुड़ाथे जिया, खिलथे जिनगानी। मेंवा मिठाई, अंगाकर अउ चीला। करथे झड़ी त, खाथे माई पिला। खुलकूद लइका मन, मतंग घर जाथे। सावन आथे त मन मा….. । भर जाथे तरिया, नँदिया डबरा डोली। मन ला लुभाथे, झिंगरा मेचका बोली। खेती किसानी, अड़बड़ माते रहिथे। पुरवाही घलो, मतंग होके बहिथे। हँसी खुसी के जिया मा, तरंग भर जाथे। सावन आथे त मन मा….. । होथे जी हरेली ले, मुहतुर तिहार। सावन…

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गीत : जिनगी के गाड़ा

जिनगी के गाड़ा ल, अकेल्ला कइसे तिरौं। उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा मैं गिरौं। काया के पाठा, पक्ति पटनी ढिल्ला। बेरा हा कोचे, तुतारी धर चिल्ला। धरसा मा भरका, काँटा खूँटी हे। बहरावत नइ हे, बाहरी ठूँठी हे। गर्मी म टघलौं, त बरसा म घिरौं——। उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा मैं गिरौं। भारा बिपत के , भराये हे भारी। दुरिहा बियारा , दुरिहा घर बारी। जिम्मेवारी के जूँड़ा म, खाँध खियागे। बेरा बड़ बियापे , घर बन सुन्ना लागे। हरहा होके इती उती, भटकत फिरौं—। उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा…

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बरसा गीत

हरियागे धरती अऊ खेती म धान, कई मन के आगर हें चतुरा किसान। बरसथे बादर, अऊ चमकत हे बिजुरी, नोनी मन हवा संग म खेलथें फुगड़ी। मेड़ पार म अहा तता, भर्री म कुटकी, लपकट लहरावत हे, घुटवा कस लुगरी। सोना बरसाथें – गुलाबी बिहान। कइ मन के आगर हें चतुरा किसान। अरवा अऊ नदिया के पेट हा अघागे डोंगरी के पानी, समुनदर थिरागे। करमा ददरिया अऊ आलहा चनदैनी, चौरा चौरसता म, भाई अऊ बहिनी। गावथें बांचथे – पोथी पुरान। कई मन के आगर हें चतुरा किसान। महर महर केकती,…

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मानसून

तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून। मया करथों मैं तोला,रे घात मानसून। का पैरा भूँसा अउ का छेना लकड़ी। सबो चीज धरागे रीता होगे बखरी। झिपारी बँधागे , देवागे पँदोली। काँद काँटा हिटगे,चातर हे डोली। तोर नाम रटत रहिथों,दिन रात मानसून। तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून—–। तावा कस तीपे हे,धरती के कोरा। फुतका उड़त हे , चलत हे बँरोड़ा। चितियाय पड़े हे,जीव जंतु बिरवा। कुँवा तरिया रोये,पानी हे निरवा। पियास मरत हे,डारपात मानसून। तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून। झउँहा म जोरागेहे ,रापा कुदारी। बीज भात घलो,जोहे अपन बारी।…

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मोर देश के किसान

नांगर बईला धर निकलगे, बोय बर जी धान, जय हो, जय हो जी जवान , मोर देश के किसान। बरसत पानी, घाम पियास में जांगर टोर कमाथस, धरती के छाती चीर के तैहा, सोना जी उपजाथस, माटी संग में खेले कूदे, हरस माटी के मितान, जय हो, जय हो जी जवान, मोर देश के किसान। सुत उठ के बड़े फजर ले माटी के करथस पूजा, तोर सही जी ये दुनिया मे नई है कोनो दूजा, दुनिया भर के पेट ल तारे, तै भुईया के भगवान, जय हो, जय हो जी…

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काँदा कस उसनात हे

कभू घाम कभू पानी, भुँइया हा दंदियात हे । जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे। दिनमान घाम के मारे , मुँहू कान ललियावत हे । पटकू बाँध के रेंगत हे , देंहे हा पसिनयावत हे। माटी के घर ला उजार के, लेंटर ला बनात हे । जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे। कूलर पंखा चलत तभो ले , पसीना हा आवत हे । लाइन हा गोल होगे ताहन , भारी दंदियावत हे । दिन में चैन न रात में चैन, मच्छर घलो भुनभुनात हे।…

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छत्‍तीसगढ़ी प्रेम गीत

काबर तै मारे नयना बान, गोरी तै मारे नयना बान। जीव ह मोर धक ले करथे, नई बाचे अब परान। काबर तै मारे……….. अँतस के भीतरी म, आके जमाये डेरा। अब्बड़ तोर सुरता आथे, दीन रात सबो बेरा। नई देखव तोला त जोहि, तरस जथे मोर चोला। काबर तै मारे नयना…… आजा मोर संगवारी , सुग्घर जिनगी बिताबो। मया पिरित के कुरिया, संगी मिल दोनों बनाबो। पाव के तोर पैइरी ल, छुनुर छुनुर बजाके। काबर तै मारे……… युवराज वर्मा बरगड़िया साजा 9131340315

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