गुने के गोठ : मोर पेड़ मोर पहिचान

वासु अउ धीरज ममा फूफू के भाई ऑंय। दूनो झन चार छ: महिना के छोटे बड़ेआय। दूनो तीसरी कक्छा मा पढ़थें। वासु शहर के अँगरेजी इस्कूल मा पढ़थे अउ धीरज गाँव के सरकारी स्कूल मा। धीरज के दाई ददा किसानी करथँय अउ वासु के दाई ददा नउकरिहा हावँय। गर्मी के छुट्टी माँ एसो वासु हा ममा गाँव गइस। आजी आजा खुश होगे। ममा मामी के घलाव मया दुलार पाय लगिस।फेर सबले बढ़िया ओला धीरज लगिस। लइका अपन खेलबर संगवारी खोजथे। ओला अपन जँहुरिया संगवारी मिलगे। दू दिन वासु के महतारी…

Read More

छंद के छ : एक पाठशाला, एक आंदोलन

वइसे “छंद के छ” हा आज कोनो परिचय के मोहताज नइ हे तभो ले मैं छोटे मुँहु बड़े बात करत हँव। छत्तीसगढ़ी छंद शास्त्र के पहिलावँत किताब “छंद के छ” सन् 2015 मा श्री अरुण निगम जी द्वारा लिखे हमर मन के बीच मा आइच। छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे के उद्देश्य ले लिखे ए किताब हा छंद बद्ध रचना के संगे-संग छंद के विधि-विधान उदाहरण सहित अपन भाखा मा देथे। एखर पहिली संस्करन मा मात्र दू सौ किताब छपे रहीच। “छंद के छ” किताब मा पचास प्रकार के छंद…

Read More

महंगइ के चिंता

तइहा के बात ला बईहा लेगे, समे ह बदल गे अउ नवा जमाना देस म अपन रंग जमा डारे हे। एकअन्नी-दूअन्नी संग अब चरन्नी नंदा गे हे। सुने हन सरकार ह अब पांच रूपिया ला घलो बंद करईया हे, अब हमर रूपिया दस ले सुरू होही। पहिली हमर सियान मन खीसा भर पईसा म झोला भर जिनिस बिसा डारत रहिन, अब झोला भर रूपिया म खीसा भर जिनिस मिलत हावय। मंहगई के अहा तरा मुह फरई ला देख के नेता अउ मीडिया वाले मन अड़बड़ चिंता करत दिखथें, उंखर चिंता…

Read More

छत्तीसगढ़ी : कामकाज अउ लेखन के रूप : सुशील भोले

जबले छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दरजा दे के ए भरोसा जगाये गे हवय के अवइया बेरा म ए ह शिक्षा के संगे-संग राजकाज के भाषा बन सकथे, तबले एकर साहित्यिक लेखन के रूप अउ कामकाज माने प्रशासकीय रूप ऊपर भारी गोठ-बात अउ तिरिक-तीरा चलत हे। ए संबंध म राजभाषा आयोग ह एक ठ विचार गोष्ठी के आयोजन घलोक करे रिहिसे, जेमा ए बात प्रमुखता ले आइस के कामकाज के भाषा ल आम बोलचाल के रूप म ही लिखे जाना चाही। ए विचार ले लगभग महूं सहमत हवंव। काबर के प्रशासनिक…

Read More

हीरा गंवा गेहे बनकचरा म…

ये ह छत्तीसगढ़ महतारी के दुर्भाग्य आय केवोकर असर हीरा बेटा मनला चुन-चुनके बनकचरा म फेंक अउ लुकाए के जेन बुता इहां के इतिहास लिखे के संग ले चालू होय हे तेन ह आजो ले चलते हे। एकरे सेती हमला आज हीरालाल काव्योपाध्याय जइसन युग पुरुष ल जनवाय के उदीम करे बर लागत हे। ये ह कतेक लाज के बात आय के छत्तीसगढ़ी लेखन के जेन गंगोत्री आय तेने ल इहां के इतिहास लेखन ले दुरिहाए के उदीम करे गे हवय। मोला लागथे के अइसन किसम के उजबक बुता ल…

Read More

अस्मिता के आत्मा आय संस्कृति

आजकाल ‘अस्मिता’ शब्द के चलन ह भारी बाढग़े हवय। हर कहूँ मेर एकर उच्चारन होवत रहिथे, तभो ले कतकों मनखे अभी घलोक एकर अरथ ल समझ नइ पाए हे, एकरे सेती उन अस्मिता के अन्ते-तन्ते अरथ निकालत रहिथें, लोगन ल बतावत रहिथें। अस्मिता असल म संस्कृत भाषा के शब्द आय, जेहा ‘अस्मि’ ले बने हे। अस्मि के अर्थ होथे ‘हूँ’। अउ जब अस्मि म ‘ता’ जुड़ जाथे त हो जाथे ‘अस्मिता’ अउ ये दूनों जुड़े शब्द के अरथ होथे- ‘मैं कोन आँव?’, मैं कौन हूँ?, मेरी पहचान क्या है?, मोर…

Read More

काम दहन के आय परब- होली

छत्तीसगढ़ आदिकाल ले बूढ़ादेव के रूप म भगवान शिव अउ वोकर परिवार ले जुड़े संस्कृति ल जीथे, एकरे सेती इहां के जतका मूल परब अउ तिहार हे सबो ह सिव या सिव परिवार ले जुड़े हावय। उही किसम होली जेला इहां के भाखा म होली कहे जाते। इहू हर भगवान भोलेनाथ द्वारा कामदेव ल भसम करे के परब आय। छ त्तीसगढ़ म हमन जेन होली के परब मनाथन वो हर असल म काम दहन के परब आय। बाहिर ले आए मनखे मन इहां के सांस्कृतिक स्वरूप अउ इतिहास ल अब्बड़…

Read More

आरूग चोला पहिरावय 10 जन

धर्म के नांव म हमर मन ऊपर अन्य प्रदेश के संस्कृति ल खपले के लगातार प्रयास चलत हे। जेकर सेती हमर भूल संस्कृति के उपेक्षा करे जाथे या फेर वोकर ऊपर कोनो आने किस्सा कहिनी गढ़ के वोकर रूप ल बिगाड़ दिए जाथे। जब कभू संस्कृति के बात होथे त लोगन सिरिफ नाचा-गम्मत, खेल-कूद या फिर जे मन ल सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत मंच आदि म प्रस्तुत करे जा सकथे, वोकरे मन के चरचा करथें। मोला लागथे के ये हर संस्कृति के मानक रूप नोहय। येला हम कला के अंतर्गत…

Read More

छत्तीसगढ़ी के विकास यात्रा

‘छत्तीसगढ़ी के विकासयात्रा ल जाने के जरूरत हे तभे छत्तीसगढ़ी के लेखन ह समझ में आही। छत्तीसगढ़ी ल बोली के मापदण्ड के ऊपर उठाके भासा के मापदण्ड म लिखे जाना चाही। लोकभासा मन ले परिष्कृत ‘हिन्दी’ ल नागरी लिपि के वर्ण माला के सबो अक्षर संग सजा के शुध्द बनाए गीस, वइसने छत्तीसगढ़ी ल घलोक ‘नागरी’ वर्णमाला के सबो अक्षर संग शुध्द बनाए जाना चाही।’ अइसे कहे जाथे के कोनो भी भाखा ल जब प्रकाशन के मंच मिलथे, त वोमा अउ वोकर लेखन म धीरे-धीरे निखार आए लगथे। छत्तीसगढ़ी भाखा…

Read More

मन के सुख

अंजली दीदी फूफू दीदी संग माटी मताए अउ गारा अमरे बर जावय। तेकर पाछू एक झन डॉक्टर इहां झाड़ू पोछा के काम करे लागीस। इहें वोला पढ़े अउ आगे बढ़े के माहौल मिलिस। ऊंहा के डॉक्टर अउ नर्स मन ले मिलत प्रोत्साहन के सेती वो ह आया, फेर नर्स अउ फेर नर्स ले डॉक्टर के पदवी तक पहुंचगे। अब नौकरी छोड़के अपन अस्पताल चलावत हे। अब वो ह माटी मताने वाली अउ झाड़ू पोछा लगइया अंजली नहीं, डॉक्टर अंजली हे। ‘भोला… ए भोला.. लेना अउ बताना अंजलि के कहिनी ल’…

Read More