तइहा ले ये सुनत आए हवन के ‘गरजइया बादर कभू बरसय नहीं’। अब जब अइसनहा जिनिस ल रोजे अपन आंखी म देखत हवन, त लागथे के हमर पुरखा मन जेन गोठ ल कहि दिए हें, ते मन ओग्गर सोन कस टन्नक हे। ए बात अलग हे के वो मन अइसन हाना ला कोनो सेखिया मनखे के संदर्भ म कहि दिए रहे होहीं के ‘जेन टांय-टांय करथे, तेकर जांगर नइ चलय’ फेर ए बात ह अब बादर के घड़घड़-घड़घड़ गरजई अउ फुसफुसहा बरसई के रूप म घलोक दिखत हावय। जब ले…
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गुड़ी के गोठ : महतारी भाखा म कब होही पढ़ई..?
केहे बर तो छत्तीसगढ़ी ल ए राज के राजभाषा बना दिए गे हवय, फेर अभी तक अइसन कोने मेर नइ जनावत हे के इंहा के सरकार ह एला जमीनी रूप दे खातिर कोनो किसम के जोंग मढ़ावत हे। हां, ए बात जरूर हे के राजनीतिक लाभ ले खातिर राजभाषा आयोग के गठन कर दिस, लाल बत्ती के मजा ले खातिर वोमा लोगन ल बइठार घलोक दिस। फेर अब तक जब ए बुता ल पूरा करे दू बछर होए जावत हे, वोमा बइठे ‘लाल बत्ती’ वाले मन ‘सफेद हाथी’ कस जनाए…
Read Moreगुड़ी के गोठ : आयोग ल अधिकार देवयं
छत्तीसगढ़ी भाखा-संस्कृति के हितु-पिरितु मन के मन म 14 अगस्त 2008 के छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के गठन के साथ जेन उमंग अउ उछाह जागे रिहीसे, वे ह वोकर दू बछर के पुरती बेरा म थोर-थोर लरघियाए ले धर ले हवय। अउ एकर असल कारन हे ‘मनसा भरम’ के टूटना। राजभाषा आयोग म जे मन ल बइठारे गे हवय वो मन ल एकदम से हुदरना-कोचकना या निंदा-चारी करना अभी बने नोहय काबर ते कोनो भी आयोग के जेन बुता होथे वोकर मुताबिक वोकर काम ठउका चलत हे। आयोग के काम सरकार…
Read Moreसमय मांगथे सुधार – गुड़ी के गोठ
कोनो भी मनखे ह अपन अंतस के भाव ल कोनो दूसर मनखे ल समझाय खातिर जेन बोली के उपयोग करथे, उही ल हम भाषा कहिथन। अउ जब उहीच भाषा ल माध्यम बना के बहुत झन मनखे अपन भाव ल परगट करथें त फेर वोला एक निश्चित रूप दे खातिर लिपि के, वोकर मानक रूप से अउ आने जम्मो जरूरी जिनीस मन के बेवस्था करथन। छत्तीसगढ़ी खातिर घलोक अइसन किसम के बुता कतकों बछर ले चलते हे। जिहां तक व्याकरण अउ लिपि के बात हे त एमा तो सबो एकमत दिखथें,…
Read Moreधुर्रा-गर्दा ल झटकारे के जरूरत – गुड़ी के गोठ
मोला जब ले ये बात के जानबा होइस के इहां भगवान भोलेनाथ ह माता पार्वती संग सोला साल तक रहिके अपन जेठ बेटा कार्तिकेय ल वापस कैलाश लेगे खातिर डेरा डार के बइठे रिहीसे, तब ले मोर मन म एक गुनान चालू होगे के त फेर आज हमन ल छत्तीसगढ़ के जेन इतिहास देखाए जावत हे, वोहर आधा-अधूरा अउ बौना हे, जेला फेर नवा सिरा ले लिखे के जरूरत हे। अभी तक इहां बगरे किताब मन के माध्यम ले सिरिफ अतके ज्ञान पाये रेहेन के छत्तीसगढ़ के इतिहास ह रमाएन…
Read Moreधरती म समावय निस्तारी के पानी – गुड़ी के गोठ
बरखा के पानी ल भुइयां के गरभ म उतारे खातिर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के गोठ आज-काल बहुत करे जावत हे। ये अच्छा बात आय के लोगन अब दिन के दिन कमतियावत पानी खातिर सोचे-गुने लागे हें, वोकर व्यवस्था खातिर नवा-नवा उदिम करत हें। फेर मोला लागथे के सिरिफ बरखा भर के पानी ल नहीं भलुक जतका भी पानी बिरथा बोहा के नरवा-ढोडग़ा ले होवत समुंदर म चले जाथे, वो जम्मो ल छेंक-छाक के धरती के गरभ म उतारना चाही। गांव-गंवई के बात तो अइसे हे के उहां नहाये-धोये अउ निस्तारी…
Read More‘रखवार’ समिति बनना चाही – गुड़ी के गोठ
कोनो भी भाखा, संस्कृति अउ वो क्षेत्र के अस्मिता के विकास अउ संवर्धन-संरक्षण म उहां के कला अउ साहित्य ले जुड़े मनखे मनके सबले बड़का योगदान होथे। ए मनला भाखा अउ संस्कृति के संवाहक घलो कहे जा सकथे। फेर अइसने मनखे मनके सेती जब कहूं के भाखा अउ संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन ह मुसकुल हो जाय त एला वो क्षेत्र के दुर्भाग्य अउ ओकर सपूत मनके बंटवारी कहे जाही। छत्तीसगढ़ी के नांव म आज जतका फिलिम अउ वीडियो एलबम बनत हे वोमन ल देख सुनके प्रचार तंत्र के ए सबले बड़का…
Read Moreअजब नियाव – गुड़ी के गोठ
ये जुग के सबले बड़े औद्योगिक त्रासदी के नियाव होते हमर पारा के बइठांगुर के मति छरियागे। मोला कथे भाई-एकरे सेती मैं कानून-फानून, नियाव-फियाव कुछू ल नइ मानंव। अइसन पहिली बेर नइ होए हे, जब पद, पइसा अउ पावर के आगू नियाव हार गे हे। तइहा जुग ले अइसन होवत आवत हे, अत्याचारी मन के हाथ म हमर कानून अउ नियाव ह धंधाय परे हवय। मैं वोला थोक पुचकारत कहेंव-त का होगे तेमा अतेक तलमलावत हस? -अरे कइसे का नइ होगे, तैं जानत हस आज ले 25 बछर पहिली जेन…
Read Moreडबरी झन बनय डबरा – गुड़ी के गोठ
आधुनिकता के चकाचौंध म चौंधियाये हमन जेन गति ले अपन परम्परा, संस्कृति अउ जीवन जीए के ढंग ल बिसरावत जावत हवन, उही गति ले कई किसम के समस्या घलोक हमर मन के आगू म अभरत जावत हवय। चाहे वो विकास के बात होवय ते सुख- समृद्घि के जम्मो म एकर पाछू विनास अउ पीरा के आरो मिल जाथे। आधुनिकता के नाव म जबले हमन अंध औद्योगीकरण ल बढ़ावा दिए हवन तबले खेती-किसानी, जंगल-झाड़ी, डोंगर-पहार अउ तरिया-नंदिया मन के दुरगत मातगे हवय। हमर जानती म छत्तीसगढ़ म 60 ले 70 इंच…
Read Moreसोरिहा बादर – गुड़ी के गोठ
तइहा के बात आने रिहीसे जब ठउका लगते असाढ़ के बादर उमडय़ अउ कालिदास के बिरहा भोगत यक्ष ह वोला सोरिहा बना के अपन सुवारी तीर पठो देवय। अब वो जुग बदले के संगे-संग बादर के अवई-जवई के बेरा घलो बदले बर धर लिए हे, अइसे म बिरहा भोगत यक्ष कइसे करय, वो अपन सुवारी ल कइसे बतावय के वोकर ‘राज निकाला’ के एक बछर पूरगे अब खंचित वो अपन सुवारी करा आही अउ असाढ़ के जउंहर बरसा कस वोकरो हिरदय म बरसही, वोला हरियाही। वइसे मौसम विज्ञानी मन के…
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