संस्कृति बिन अधूरा हे भाखा के रद्दा

भाखा के मापदण्ड म राज गठन के प्रक्रिया चालू होए के साथ सन् 1956 ले चालू होय छत्तीसगढ़ी भाखा ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल करे के मांग आज तक सिरिफ मांग बनके रहिगे हवय। अउ लगथे के ए हर तब तक सिरिफ मांगेच बने रइही, जब तक राजनीतिक सत्ता म सवार दल वाला मन के कथनी अउ करनी एक नइ हो जाही। काबर ते ए बात ल अब तक हर पढ़े-लिखे मनखे समझगे हवय के छत्तीसगढ़ी स्वतंत्र रूप ले एक समृध्द भाषा आय, जेकर शब्‍दकोश हे, व्याकरण हे,…

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कोंदा मनके भजन महोत्सव – गुड़ी के गोठ

अब बड़े-बड़े जलसा अउ सभा समारोह ले देवई संदेश ह अनभरोसी कस होवत जात हे, अउ एकर असल कारन हे अपात्र मनखे मनला वो आयोजन के अतिथि बना के वोकर मन के माध्यम ले संदेश देना। राजनीतिक मंच मन म तो एहर पहिली ले चले आवत हे, फेर अब एला साहित्यिक सांस्कृतिक मंच मन म घलोक देखे जावत हे। अभी छत्तीसगढ़ी साहित्य के नांव म एक बड़का समारोह होइस, एमा सबो चीज तो बने-बने लागीस, फेर छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के कमी विषय खातिर जेन वक्ता मनला वोमा बोले खातिर बलाए…

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सांस म जीव लेवा धुंगिया

आज मौसम परिवर्तन के मार झेलत मनखे अचरज खा गे जब बसंत रितु म जाड़ ह अपन डेरा जमाय हावय। बरसात म गर्मी झेलत मनखे मौसम के पीरा ल सहत हावय। मौसम खुदे अचरज म हावय के मोर दिसा कइसे बदल गे हावय। इही सुग्घर साफ पर्यावरन ल करिया करत हमर विकास के रद्दा मलेगइया ये कल कारखाना बर कुछु सोचना चाही। ये हमर आज विस्व ल सोचे बर मजबूत कर दे हावय। काय हमन ल अपन खूबसूरत प्रकृति ल नस्ट करके विकास चाही? राजधानी रायपुर के परछिन अगास म…

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विचार ले भटकगे धारा : गुड़ी के गोठ

लोकतंत्र के नांव म जबले वोट के राजनीति शुरू होय हे, तबले कोनो भी नियम-कायदा या कहिन के विचारधारा ह जम्मो राजनीतिक पारटी मन ले तिरियावत जात हे। एकरे सेती अब कोनो भी पारटी ह अपन एजेण्डा ऊपर ईमानदार नइ दिखय। कहूं न कहूं वोमा लीपापोती या तिरिक-तीरा के चिनहा अवस कर के दिखथे। आम जनता के अधिकार अउ दु:ख पीरा के मापदण्ड म चालू होय नक्सल आंदोलन आज के समय म ए बात के सबले बड़े उदाहरण आय। ए बात सही हे के जब एकर शुरूआत होइस त हुदराय-चुहकाय…

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कुकुर मड़ई माने डॉग शो अउ डॉग ब्‍यूटी कान्टेस्ट – गुड़ी के गोठ

नवा जमाना संग नवा-नवा चरित्‍तर सुने ले मिलथे। पहिली तीज-तिहार, मेला-मड़ई के नांव सुनते मन कुलके अउ हुलके ले धर लेवय। काबर ते एकर ले अपन गौरवशाली परम्परा अउ संस्कृति के चिन्हारी मिलय। फेर अब अइसे-अइसे आयोजन होथे, ते वोकर नांव ल सुनके तरूवा भनभना जथे। अभी हाले के बात आय राजधानी रायपुर म ‘कुकर मड़ई’ होइस। अंगरेजी म एला डॉग शो अउ डॉग ब्‍यूटी कान्टेस्ट घलोक कहिथें। वइसे तो पश्चिमी देश मन म अइसन किसम के आयोजन ह कहूं न कहूं होतेच रहिथे। एकरे सेती उहां के जीवन शैली…

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कुकुर मड़ई माने डॉग शो अउ डॉग ब्‍यूटी कान्टेस्ट – गुड़ी के गोठ

नवा जमाना संग नवा-नवा चरित्‍तर सुने ले मिलथे। पहिली तीज-तिहार, मेला-मड़ई के नांव सुनते मन कुलके अउ हुलके ले धर लेवय। काबर ते एकर ले अपन गौरवशाली परम्परा अउ संस्कृति के चिन्हारी मिलय। फेर अब अइसे-अइसे आयोजन होथे, ते वोकर नांव ल सुनके तरूवा भनभना जथे। अभी हाले के बात आय राजधानी रायपुर म ‘कुकर मड़ई’ होइस। अंगरेजी म एला डॉग शो अउ डॉग ब्‍यूटी कान्टेस्ट घलोक कहिथें। वइसे तो पश्चिमी देश मन म अइसन किसम के आयोजन ह कहूं न कहूं होतेच रहिथे। एकरे सेती उहां के जीवन शैली…

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खजरी असनान – गुड़ी के गोठ

असनान तो वइसे कई किसम के होथे जइसे घुरघुरहा असनान, पानी छींचे असनान, साबुन असनान, झुक्खा असनान, गंगा असनान, शाही असनान, कुंभ असनान, चिभोरा असनान फेर अब ए सबले अलग हट के एक नावा असनान घलोक हमर इहां संचरगे हे, जेकर नांव हे- खजरी असनान। खजरी असनान बड़ा अलकरहा प्रजाति के होथे। ए असनान म अइसे होथे के जे मनखे ह बने पानी म चिभोरा मार के नहाथे, वोला खजर-खजर वाले खजरी ह बने कबिया के धर लेथे। तहांले मनखे वोला छोड़ाय खातिर चारों मुड़ा ले खजर-खजर खजुवात रहिथे। एकरे…

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झांझ के गुर्रई संग बासी के सुरता – गुड़ी के गोठ

मंझनिया के घाम ह अब जनाए ले धर लिए हे। एकरे संग अवइया बेरा के लकलकावत घाम के सुरता संग हरर-हरर के अवई-जवई अउ झांझ-बड़ोरा के गुर्रई के सुरता मन म समाए बर धर लिए हे। फेर संग म करसी-मरकी के जुड़ पानी अउ गोंदली संग बोरे-बासी के सेवाद घलोक मुंह म जनाए बर धर लिए हे। तेकरे सेती तांडव करत गरमी संग जूझे के हिम्मत बंधे रहिथे नइते सरकार अउ समाज के मुखिया मन के मारे तो कोनो मौसम के मार ल सहे के शक्ति न देंह म राहय,…

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गुड़ी के गोठ – संस्कृति बिन अधूरा हे भाखा के रद्दा

भाखा के मापदण्ड म राज गठन के प्रक्रिया चालू होए के साथ सन् 1956 ले चालू होय छत्तीसगढ़ी भाखा ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल करे के मांग आज तक सिरिफ मांग बनके रहिगे हवय। अउ लगथे के ए हर तब तक सिरिफ मांगेच बने रइही, जब तक राजनीतिक सत्ता म सवार दल वाला मन के कथनी अउ करनी एक नइ हो जाही। काबर ते ए बात ल अब तक हर पढ़े-लिखे मनखे समझगे हवय के छत्तीसगढ़ी स्वतंत्र रूप ले एक समृध्द भाषा आय, जेकर शब्दकोश हे, व्याकरण हे,…

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गुड़ी के गोठ – आरूग चोला पहिरावयं

जब कभू संस्कृति के बात होथे त लोगन सिरिफ नाचा-गम्‍मत, खेल-कूद या फेर जे मन ल सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत मंच आदि म प्रस्तुत करे जा सकथे, वोकरे मन के चरचा करथें। मोला लागथे के ए हर संस्कृति के मानक रूप नोहय। एला हम कला के अंतर्गत मान सकथन, फेर जिहां तक संस्कृति के बात आथे त एमा हम सिरिफ वो जिनीस ला शामिल कर सकथन जेला हम संस्कार या धर्म आधारित परब-तिहार के रूप म जीथन, मानथन अउ अपन अवइया पीढ़ी ल सौंपे खातिर संरक्षित राखे के उदिम करथन।…

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