अब नइ गिरय आँसू के बूँद, बोहावत हे इहां पानी के धार

नल जल योजना ले जल संकट वाले गांव मन म दूर होए लगे हे पेयजल के समस्या कोरबा, 26 जुलाई 2024। कोरबा जिला के कोरबा विकासखण्ड के अंतर्गत पहाड़ ले घिरे विमलता गाँव हे। भले ए गांव म रहइया परिवार के संख्या बहुत जादा नइ हे, फेर पानी ल लेके इहां के समस्या बहुत बड़े हे। गर्मी का आईस? गाँव के हैंडपंप के जलस्तर नीचे जाय ले बोरिंग जवाब दे जात रहिस। ए गांव के मनखे मन ह अइसन कई गर्मी के मौसम देखे हे, जेन म ओ मन ल…

Read More

पुतरी के बिहाव – सुधा वर्मा

रमा आज बहुत खुस हावय। आज अकती हे, आज ओखर पुतरी के बिहाव हावय। रमा के संगवारी अनु घलो खुस हावय, काबर के रमा के पुतरी ओखर घर आही। दूनों संगवारी समधिन बनहीं। दू दिन पहिली ले तइयारी चलत हावय। रमा अउ अनु तेल मायन सब करिन। एक अँगना म दूनों झन बिहाव करत रहिन हे। दूनों के परिवार माय भरिन। सब झन खूब हँसी-मजाक करत रहिन हे। हरदाही खेलिन तब तो अइसे लगत रहिस हे के सही के बिहाव होवत हावय। रमा के महतारी ह पुतरा-पुतरी बर सुघ्घर कपड़ा…

Read More

लइका मन मं पढ़इ लिखइ के सउख कइसे बाढ़य?

बहिनी मन, ए तो तुमन जानत होहु कि लइका मन हमर देस के भविष्य ल संवारथे। लइका मन के सउख ल देख के हमन ओखर भविष्य के नकसा बना लेथन। आजकल हमन देखथन कि हमर लइकामन के मन ह पढ़ई लिखई में जादा नइ लागय। का कारन ए-एला हमन सोचे बर मजबूर हो जथन। लइका हर पहिली महतारी करा कुछू सिखते। लइका मन में पढ़ई लिखई के सउख बढ़ाय बर, लइका के महतारी ल घलो पढ़ना लिखना जरुरी हावय। महतारी ल देखके नान-नान लइका मन घलो पढ़ई में मन लगाहीं।…

Read More

रमिया केतकी के कथा – सत्यभामा आड़िल

एक रहिस रमिया। एक रहिस केतकी। दूनों एके महतारी के बेटी रिहीन। खारुन नदिया ले चार कोस दूरिहा रक्‍सहूं बूड़ती मं एक गांव ‘कसही’। भइगे दूनों उहीं रहत रहींन अपन महतारी संग। महतारी ह खाली हाथ रहीस। खेतखार मं बनीभूती करके अपन जिनगी चलावय। रमिया केतकी बिहाव के लइक होगे। दुनों के रूपरंग सोन जइसे जग-जग ले। उंखर भरे जोबन ल देख के सबो उंखरे डहार खिंचावत आवयं। समय अपन रंग देखइस। धान-कर्टई मिंजई खतम होगे, तहां ले बर बिहाव खातिर, सब कमइया किसान मन, लड़का लड़की खोजे बर निकलगें।…

Read More

भाईचारा अउ शांति के संदेश देथे ईद-उल-फितर

रोजा रखना फाका रखना नो हे, बल्कि येमा अल्लाह के अराधना, लोगन ले सद् बेवहार करना अउ गुनाह ले बचे के भाव हे। येमा अहसास हे कि गरीब मनखे मन कोन तरह ले भूख-पियास म सही के जिनगी बिताथे। ये भाव हर मनखे ल मनखे बने रहे के संदेश देथे। रोजा हर समे मन म शुभ-विचार देथे। सब के भीतर मानवता के भाव जगाथे अउ जीवन के उध्दार करथे। रोजा कोनो प्रक्रिया नो हे बल्कि ये हर सनमार्ग म जाय के बिधि आय। सबो धरम के परब अउ तिहार मन…

Read More

नाटक अऊ डॉ. खूबचंद बघेल

आज जरूरत हे अइसना साहित्यकार के जेन ह छत्तीसगढ़ के धार्मिक राजनैतिक अऊ सामाजिक परिवेस के दरसन अपन लेखन के माध्यम ले करा सकय। बिना ये कहे के मैं ह पहिली नाटककार आवं के कवि आंव। आज के कुछ लेखक मन ये सोच के लिखत हावंय के मैं ह कोन मेर फिट होहूं। जल्द बाजी म लिखे साहित्य आज के छत्तीसगढ़ के परिवेस के दरसन नई करावय। अइसना सबो लेखक नई करत हावंय फेर कुछ मन के इही स्थिति हावय। डॉ. खूबचंद बघेल ये छत्तीसगढ़ के धरती के पहिली नाटककार…

Read More

बाल साहित्य के पीरा

आजकल बाल साहित्य देखे म नई आवय। दूकान बाजार म लइका मन ल बने पुस्तक भेंट देना हे, सोच के कहूं पुस्तक मांगेस तव दूकान वाला सोच म पर जथे। कहिनी पुस्तक तो अब है नहीं। जेन हावय तेन दिल्ली प्रकासन के कुछ लोककथा सरिख पुस्तक मिलथे या फेर पंचतंत्र के कहिनी सरिख बड़े-बड़े जानवर मन के चित्र संग कहिनी चिक्कन पेपर म रहिथे। जेखर कीमत ल आन मनखे दे नई सकय।

Read More

पंचलाईट

ख्मंच मा परकास, मुनरी अंगना ला बाहरत हावय अउ घरि घरि बाहिर कोति झांकत हावय, बाहिर लंग गोधन गाना गात हावय, कुछु देर पीछू मुनरी भीतरिया जाथे। , गोधनः- सोना देवें सुनार ला, वो पायल बना दीस। दिल देवें मुनरी ला, वो घायल बना दीस।। ख्मुनरी फेर अंगना मा आके बाहिर झांके बर लागथे, दूनोंझन के नजर मिलथे, मुनरी लजाथे, गुलरी आ जाथे। , गुलरीः- अरे मुंॅहझौंसी! गला उठाके एती ओती का देखत हस? मुनरीः- ख् घबरा के , कु— कुछु नींही दाई, बाहरत हों। गुलरीः- कतका घ बाहरबे, ख्…

Read More

महाकवि कपिलनाथ कश्यप के ‘रामकथा’ के कुछ अंस

कैकेयी वरदान भरतलाल के गादी सुन दुख होथे तुंहला, मांग-मांग कहके फोकट गंधवाया मोला। रोवा झिन अब कहिस कैकयी खुबिच रिसाके, अइसन लगथे लाये, मोल बिसाके ॥1॥ तपसी मन अस भेख बनाके, बन नहीं जाही राम बिहनिया। मैं महुरा खाके मर जाहंव, ले के राम अवध तूं रइया॥ 2॥ डोंगहा संवाद डोंगा मा बइठा के मैं नंदिया नहकाथंव, लइका मन ला पोसे बर मजदूरी पाथंव। बिन डोंगा के का आने धंधा मैं करिहंव, नइ जानंव मैं कूच्छू बिन मारे के मरिहवं॥1॥ तूहूं तो ये भव सागर ले पार लगाथंव, बिन…

Read More

में नो हों महराज: नारायण लाल परमार

एक ले एक हे हुसियार ,में नो हों महराज। करे सब करिया कारोबार, मे नो हो महराज॥ कनवा ला कनवा कहइया होहीं कोन्हो दूसर, गउ के किरिया हे हवलदार, मे नो हों महराज ॥ सब के बांटा ला अपन मान के जे खावत हें, कोन्हों कुकुर होही सरकार, मे नो हों महराज॥ देस ला कतकोझन, मुसुवा समझ के भूंजत हें, होहीं अइसन केउ हजार, मे नो हो महराज॥ गारी-गुप्ता, डंडा-बंधक, सबके सरता हे, चुहकत हे कोन अब कुसियार, मे नो हों महराज॥ गाय ला दाई अउ छेरी ला कहो सब…

Read More