मैं आदिवासी अंव

जबले बने हे रूखराई .चिरई चुरगुन, तबके मैं निवासी अंव ! हव मैं आदिवासी अंव, हव मैं आदिवासी अंव !! ***** सभ्यता के जनम देवइया, बोली भासा ल सिरजाए हंव ! जम्मो संस्कृति के मैं उपजइया, पर आज असभ्य कहाए हंव !! बघवा भालू मोर संगवारी, मैं रहइया जंगल झाड़ी के ! सबले जुन्ना हमर संस्कृति, मैं पुजइया बन पहाड़ी के !! मही तो नरवा झोरी डोंगर, भुईंया मही मटासी अंव…। हव मैं….. **** रहन सहन ल देख के मोर, पढ़े लिखे मन हांसत हे ! मिठलबरा मनखे दोगला मन,…

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पितर पाख के असल मान राख : जीयत मा डंडा-मरे मा गंगा

सावन के लगते साठ वातावरन हा भक्ति भाव ले भर जाथे। मन मा सरद्धा बतरकीरी कस जाग जाथे। तीज तिहार के घलो रेला-पेला लग जाथे। सरी देवी-देवता मन के आरी-पारी लग जाथे अउ संग मा पुरखा मन के सुरता अउ सरद्धा समे आ जाथे। भादो महीना के पुन्नी ले शुरु हो के कुँवार महीना के अँधियारी पाख के आवत ले कुल सोला दिन के सुग्घर समे हा पितर पाख कहाथे जेमा पुरखा मन के मान-गउन करे के बखत रथे। ए पाख हा सरद्धा ले सुरता करे के सुग्घर समे होथे।…

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पीतर पाख

हमर हिंदू धरम के अनुसार जेखर जनम होय हाबय ओखर मरना निसचित हाबय। अपन परिवारदार के सरगवासी होय के बाद पितर मिलाथन। भादो के उजियारी पाख पुन्नी से लेके असवीन मास के अमावस तक हमन अपन पितर देवता मन के पूजा-अरचना करथन। ’’श्रद्धा इदं श्राद्धम्’’ मतलब जो श्रद्धा से किये जाथे, वोला सराध कइथे। पितर पाख म हमिंहंदूमन मन, करम, अऊ बानी से संयम के जीवन जीथन। पितर देवता के स्मरन करके वोमन ल जल चढ़ाथन। अऊ जरूरतमंद ल यथासक्ति दान भी देथन। पितर पाख म अपन सरगवासी दाइ-ददा के…

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सिक्छक सिखही तभे सिखाही

हमन नान्हेंपन ले पढ़त आवत हन के सिक्छक हा मोमबत्ती कस होथे जेन हा खुद जर के, खुद खुवार हो के दुसर ला अंजोर देथे। ए बात सोलाआना सिरतोन हरय के सिक्छक हा अपन आप ला परहित मा निछावर करइया जीव हरय। जिनगी भर सरलग सिखइया हा ही सिरतोन मा सिक्छक आय। सिखथे अउ सिखोथे अपन बिद्यार्थी मन ला अइसन सिक्छक मन हा। अपन सोच ला, बिचार ला समे के संगे संग सुधारत रहँय, सवाँरत रहय उही सिक्छक हा एक सफल सिक्छक कहाथे। सिक्छक सिखे के सरी उदिम ला अपन…

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गुरुजी बने परीक्षा देयबर परही

सरकार के एकठन आदेस घूमत हे तेला पढ़के गुरजी मन के चेत हरागे हे। जौन गुरुजी के 12वीं अऊ कालेज मा 50 परतिसत ले कम नम्बर होही तौन ल परीच्छा देय बर परही।बिन डी एड,बी एड के परीच्छा पास करे गुरुजी बन गेहे वहू ल परीच्छा पास करेबर परही नहीं त ओकर छुट्टी कर दे जाही।15-18 बच्छर ले जौन गुरुजी ह लइका मन ल पढ़ात हे,ओकर पढ़ाय लइका मन डाक्टर, इंजीनियर, पुलिस, सैनिक, मास्टर, पटवारी बन गे हे। ओला अब परीच्छा देयबर परही। अइसे गुरु के परीच्छा आदिकाल से होवत…

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लइका मन के देवता गनेस : सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! भगवान गनेस हर छोटे-छोटे लइका मन के घलाव देवता हरै रे। फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। जइसे गनेस पाख आथे, हमन देखथन के छोटे-छोटे लइकन मन घलाव टोली बनाके चौक-चौराहा में नई तो अपन घर में भगवान गनेस ला बइठार के पूजा अराधना शुरू कर देथे। हमन यहू जानथन के भगवान गनेस हर माता पारवती अउ भगवान भोलेनाथ के दुलरवा बेटा हवय जेखर सब देवी-देवता…

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नउकरी लीलत हमर तीजतिहार

असाढ़ के लगते ले हमर तीज तिहार सुरु हो जाथे।अइसे तो छत्तीसगढ़ मा बारो महिना तिहार मनातन। चइत के पहिली दिन ले सुरु होय तिहार मा नानम परकार के स्थानीय, परंपरागत अउ रास्टीय तिहार ल बिन भेदभाव के मनाथन। छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार अक्ती ल मानथे। अइसने रामनम्मी, जवांरा, हरेली, रथदुतिया, सावन सम्मारी , कमरछठ, आठे,तीजा, पोरा, गनेस चउत, पंचमी, पीतर पाख, दुर्गापाख, दसरहा, देवारी, जेठौनी , नवाखाई, अग्हन बृहस्पति , तीन सकरात, छेरछेरा, होरी, फगवा ये सबो ल आकब नइ कर सकन। फेर हर पुन्नी मा तिहार , एकादशी…

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तीजा-पोरा के तिहार

छत्तीसगढ़ में बहुत अकन तिहार मनाये जाथे अऊ लगभग सब तिहार ह खेती किसानी से जुडे रहिथे। काबर के छत्तीसगढ़ में खेती किसानी जादा करथे। वइसने किसम से एक तिहार आथे पोरा अऊ तीजा के। पोरा तिहार ल भादो महिना के अमावस्या के दिन मनाय जाथे। अहू तिहार ह खेती किसानी से जुड़े हवे। पोरा तिहार मनाय के बारे में कहे जाथे कि इही दिन अन्न माता ह गरभ धारन करथे। माने धान के पउधा में इही दिन दूध भराथे।एकरे पाय ए तिहार ल ओकर खुसी के रुप में मनाय…

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मोर इस्कूल के गनेस

बच्छर बीत गे,फेर जब गनेस परब आथे तब पढ़ई के बेरा इस्कूल म बइठे गनेस के सुरता आ जाथे। दस दिन ले पढ़ई के संगेसंग भक्ति अऊ नाना परकार के आयोजन अंतस म समा के खुसी देथे।खपरा छानी वाला माटी के सरकारी मिडील इस्कूल, डेढ़ सौ के पढ़इया टुरी टूरा अऊ चार गुरुजी। सबो गुरुजी भक्ति भाव वाला तेमा एक गुरुजी नाचा पार्टी के पेटीमास्टर अऊ कलाकार जेकर देखरेख म गनेस के इस्थापना से बिसरजन तक के जम्मो भार राहय। बड़े गुरुजी के टेबल म दस दिन गनेस महराज के…

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माटी के गनेस बइठारव-पर्यावरण के मान बढ़ावव

माटी के मुरति सबले सुग्घर, चिक्कन-चाँदन अउ श्रेष्‍ठ माने गए हावय। माटी के मुरति हा जिनगी के सुग्घर अउ सिरतोन संदेश ला बगराथे के जौन जिहाँ ले आये हे उँहें एक दिन खच्चित लहुठ जाथे। नदिया के चिक्कन माटी ले बने देबी-देवता मन के मुरति हा उही पानी मा जा समाथे। सार गोठ हे के जइसे जनम होथे जग मा वइसने मृत्‍यु होथे जम्मो परानी के। ए गोठ हा अटल अउ असल गोठ हरय। माटी के मुरति हा हमर जिनगी के अधार पर्यावरण बर घलाव बड़ सुग्घर सहायक अउ हितवा…

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