चरभंठिया को गोठ

‘जब ठाकुर मरीस तहन ठकुरइन ऐके झन होगे दू झन लइका इंकरो मया मोला धर खइस रे। तब ठकुरइन एक दिन मोला किहिस तेहा मोर खेत खार सबो ल सम्हाल मेहा एकर बदला में तोला दू एकड़ खेत दुहु।’ गरमी के दिन राहय बिहने ले झऊंहा, रापा, कुदारी अउ पेज ल धर के बिरझू माटी डारे बर ठकुरइन के खेत म जात हे ओला देख के पेट पोसवा नौकर ह कथे बबा तेहा रोज दिन माटी डारे बर जाथस तोला ठकुराइन ह दूसर काम नई बताय बिरछू बबा ह कथे…

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छत्तीसगढ़ी फिलिम अउ संस्कृति

‘हमला अपन आप ला बदले के जरूरत नइए भलूक अपन आप ला चिन्हे के जरूरत हे। छत्तीसगढ़ म जउन छत्तीसगढ़िया फिलिम बनत हे ओमा धियान राखन कि कोनो भी दत्त खिसोर मन आके फिलिम बनाके हमर परम्परा के कबाड़ा झन करंय। ओला निर्माता निर्देशक अउ फिलिम के जम्मो पदवी ल लेय के अधिकार हे। फेर आम छत्तीसढिया मन ला बिगाड़े के अधिकार नई हे।’ संस्कृति परम्परा अउ वीर शहीद महान मन के पावन पबरीत माटी छत्तीसगढ़ म चापलूस, आडंबरबाज अउ अंधरा दउड़ दउड़हत बइपारी मन के सेखिया दिनोंदिन बाढ़हत जावत…

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छत्तीसगढ़ ‘वर्णमाला अउ नांव’ एक बहस

‘ये पाती कई झन साहित्यकार करा पहुंचे हावय। दिनेश चौहान ह एक विचार सब ला सोचे बर देय हावय। स्वर, व्यंजन के सही उपयोग करना हे, पहिली वर्णमाला तय करव ओखर बाद अक्छर के उपयोग करे जाय। अक्छर अइसना होवय जेन ह आज ले सौ साल पहिली ले उपयोग म आवत हावय। ये पाती के उत्तर तो मिलबे करही, सब सोचही अउ एक सही रूप झटकुन आ जही।’ अभी तक नांव लिखे म हिन्दी के प्रभाव चलत हे। काबर के पढ़े-लिखे के भासा अभी तक हिन्दीच बने हवे। हमला पता…

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संस्कार अउ संस्कृति : गोठ बात

जब काकरो सन गुठियावन त हम का बोलतहन तेकर ऊपर धियान रहय वो हमर कर्म बनथे। अपन करनी ल जांचन वो ह हमर आदत बनथे। अपन आदत ल परखना चाही वो हमर चरित्र के निरमान करथे। आज के समे म ये देखे बर मिलत हे, के हमार विचार म आधुनिकता समाधन हे अउ हमर संस्कार अउ संस्कृति ह भागत जात हे। अइसन म नवा पीढ़ी ल अपन करतब के गियान कइसे होवय? बिचार करे म अइसे लागथे के आज के पढ़ई-लिखई सदाचरन या अइसे कहन के संस्कारी बनाय म उपयुक्त…

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मोर छइंहा भुइहां छत्तीसगढ़ी रंगीन फिलिम के बोहनी

मैं सोचथंव के उनला अपन फिलिम म खराब फूहड़ दिरिस्य अउ गीत के निर्माण करके छत्तीसगढ़िया मन के आदत बिगाड़े के प्रयास करना एक सवाल खड़ा करथे। बने फिलिम अउ गीत हमेशा सफल होय हे। ये बात ल सुरता राखना एक फिलिमकार बर बड़ जरूरी हे। कोनो भी काम ल शुरुआत करे बर कोनो न कोनो ल अपन सोच के चिरई ल अगास म उड़े बर अजाद करे ला लागथे अउ वोहा जिहां तक ले उड़थे उहां तक के सपना ल सिरजाये खातिर रात-दिन ल एक माने ल लागथे। फिलिम…

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धरोहर ले निकले अनमोल रतन छत्तीसगढ़ी वियाकरन

छत्तीसगढ़ राज बनिस, तब बाहिर के मन ‘छत्तीसगढ़ी’ बोली आय के भासा एखर ऊपर प्रस्न खड़ा कर दिन। हल्ला होय ले लगगे के ‘वियाकरन कहां हे?’ कुछ सिक्छाविद् अउ साहित्यकार मन ये बात ल सामने लइन के बियाकरन के रचना तो हीरालाल काव्योपाध्याय ह 1885 म करे रहिन हे। ये वियाकरन के अंग्रेजी अनुवाद मि. ग्रियर्सन ह करीस अउ ओखर परकासन एसियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल (खण्ड एलआईएक्स-खण्ड 1 और 2) म घलो होय रहिस हे। ये वियाकरन के परकासन 225 पेज म होय रहिस हे। एखर हिन्दी पाण्डुलिपि गंवागे। ओखर…

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अक्षय तृतीया

(बैसाख अंजोरी पाख तीज) भविष्य पुराण म लिखे हे के आज के दिन त्रेतायुग प्रारंभ होय रहिस हे। आजे के दिन भगवान परसुराम के घला अवतार होय रहिस हे। तेखरे सेती अक्ति के दिन ल अबूझ मुहुरत माने गे हे अउ एमा बर बिहाव मंगल कारज ल बिन मुहुरूत देखे करथें। बैसाख अंजोरी पाख के तीज के दिन ये तिहार ल मनाय जाथे। अक्ती तिहार ह बसंत ऋतु अउ ग्रीष्म ऋतु के संधिकाल आय। नारद पुराण, भविष्य पुराण म एकर बिसद विवरन पढ़े बर मिलथे। आज के दिन करे दान…

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अक्ती परब सीता ल बिहावय राजा राम – परब तिहार

हमर छत्तीसगढ़ के हर परब-तिहार के अलगे महत्तम हे। इहां के जम्मो मनखे मन म भारतीयता के संस्कार ह कूट-कूट ले भराय हे। वइसे तो साल भर के भीतर रंग-रंग के परब अउ तिहार ल मानथन हमन ह, फेर ये तिहार ह हमर छत्तीसगढ़िया किसान मन बर अलगेच महत्तम राखथे। गांव के छोटकुन लइका मन पुतरी-पुतरा के बिहाव खातिर, किसान ह खेती के पहिली बऊग खातिर त सज्ञान नोनी-बाबू के दाई-ददा मन अपन घर म दू बीजा चाऊंर टीके के आस म इही ‘अक्ती’ तिहार के रद्दा देखत रथे। भारतीय…

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जइसे खाय अन्न वइसे बनही मन

अहार के मनसे के जिनगी म परभाव परथे। ईमानदारी ले कमई करके बिसाय धन ले बनाय खाय के अलगे असर परथे। ये असर हमला दिखय नहीं, फेर जेखर जिनगी तप के परभाव ले सुग्घर हो गे हे उंकर म एक परभाव तुरते दिखथे। एला समझे खातिर वृन्दावन के एक ठन किस्सा बतावत हंव बिचार करिहा। उहां के मंदिर म एक झन महात्मा रहत रहंय। एक रात के उन सुते रहिन। एकाएक उंकर मन म भगवान के गहना-गूठा ल चोराय के बिचार उठे लागिस। फेर का कथस मन के कहना ल…

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जइसे खाय अन्न वइसे बनही मन

अहार के मनसे के जिनगी म परभाव परथे। ईमानदारी ले कमई करके बिसाय धन ले बनाय खाय के अलगे असर परथे। ये असर हमला दिखय नहीं, फेर जेखर जिनगी तप के परभाव ले सुग्घर हो गे हे उंकर म एक परभाव तुरते दिखथे। एला समझे खातिर वृन्दावन के एक ठन किस्सा बतावत हंव बिचार करिहा। उहां के मंदिर म एक झन महात्मा रहत रहंय। एक रात के उन सुते रहिन। एकाएक उंकर मन म भगवान के गहना-गूठा ल चोराय के बिचार उठे लागिस। फेर का कथस मन के कहना ल…

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