बित्ता भर भुइयां

मे ह एक बीता भुइयां बर मरत हावव का, मे ह काबर अइसे करवाहूं भई जावा उही ल पूछ मे हा तो काही नइ केहे अवं। कइसे के विष्णु तोर मालिक ह काय काहत हे, सुनत हावच न, अरे ददा हो। मालिक के केहे बिना मेहा कइसे कर देहूं गा। विष्णु तोला मेहा कब दर्रा ल ढेलवानी बर केहे हव के, वा हे नइ केहेच त तोर टुरा ह तो चार दिन पहिली मोला ले बता के आय रिहिस हावय। मैं ह तभे तो कहे हावंव गा। बिहारी बेटा ये…

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संस्कृति बिन अधूरा हे भाखा के रद्दा

भाखा के मापदण्ड म राज गठन के प्रक्रिया चालू होए के साथ सन् 1956 ले चालू होय छत्तीसगढ़ी भाखा ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल करे के मांग आज तक सिरिफ मांग बनके रहिगे हवय। अउ लगथे के ए हर तब तक सिरिफ मांगेच बने रइही, जब तक राजनीतिक सत्ता म सवार दल वाला मन के कथनी अउ करनी एक नइ हो जाही। काबर ते ए बात ल अब तक हर पढ़े-लिखे मनखे समझगे हवय के छत्तीसगढ़ी स्वतंत्र रूप ले एक समृध्द भाषा आय, जेकर शब्‍दकोश हे, व्याकरण हे,…

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कोंदा मनके भजन महोत्सव – गुड़ी के गोठ

अब बड़े-बड़े जलसा अउ सभा समारोह ले देवई संदेश ह अनभरोसी कस होवत जात हे, अउ एकर असल कारन हे अपात्र मनखे मनला वो आयोजन के अतिथि बना के वोकर मन के माध्यम ले संदेश देना। राजनीतिक मंच मन म तो एहर पहिली ले चले आवत हे, फेर अब एला साहित्यिक सांस्कृतिक मंच मन म घलोक देखे जावत हे। अभी छत्तीसगढ़ी साहित्य के नांव म एक बड़का समारोह होइस, एमा सबो चीज तो बने-बने लागीस, फेर छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के कमी विषय खातिर जेन वक्ता मनला वोमा बोले खातिर बलाए…

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मै मै के चारों डाहर घूमत साहित्यकार – सुधा वर्मा

एक कार्यकरम म कुछ साहित्यकार मन संग भेंट होईस। एक लेखक जेन कवि घलो आय आके पांव छुईस अउ बइठगे। थोरिक बेरा मा कुछु-कुछु गोठियाय के बाद म कहिथे, मैं ह छत्तीसगढ़ के टॉप के बाल साहित्यकार आंव। अभी-अभी थोरिक दिन पहिली एक महिला साहित्यकार फोन कर-कर के कई झन ल कहिस के मैं ह पहिली महिला साहित्यकार आंव जेखर तीन किताब छत्तीसगढ़ी म छपे हावय। मैं ह पहिली महिला उपन्यासकार आंव। एखर पहिली एक शिक्षक साहित्यकार एससीईआरटी म काहत रहय के हाना ऊपर कहिनी मैं ह पहिली लिखे हाववं।…

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गोठ बात : पानी बचावव तिहार मनावव

तैं माई लोगिन होतेस त जानतेस पानी-कांजी भरे म कतका दु:ख अउ सुख लागथे तोला काय लगे हे। भात ल खा के मुंह पोंछत निकल जाबे। मैं हर जानहा कतका दु:ख तेला सत्ररा घांव पानी भर छुही म पोत घर ल फेर रंग म पोत आजकल तो बोरिंग ले पानी घलो नई निकलत हावय। अभी म पानी नई निकलत हे त अभी तो जम्मो दिन बांचे हावय।’ देवरिहा समय एक दिन सोन साय हर बिहनिया हांसत- गोठियात रहीस। ओकर आगू-पाछू कोनो नई रहीस। मैं देवरहीया छुही रंग लाय बर दुकान…

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जब पवन दीवान दऊड़ म अव्वल अइस

सुरता राजिम तीर के कोमा गांव म साहित्य म रुचि रखइया के कमी नइ हे। इही गांव काबर आसपास के बहुत अकन गांव म घलो साहित्यकार अउ कवि मन के अइसे छाप पड़े हे के लोगन अपन लइका के नाव घलो कवि मन के नाव जइसे धराय-धराय हवे। वइसे तो राजिम क्षेत्र के जम्मो भुंइया साहित्यकार मन बर बड़ उर्वर हे। राजिम जिहां पवन दीवान, पुरुषोत्तम अनासक्त, कृष्ण रंजन, छबिलाल अशांत, विशाल राही जइसे साहित्यिक सपूत मन जनम लिस। वइसने मगरलोड, किरवई अउ कोमा में घलो बड़े-बड़े साहित्यकार मन पैदा…

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छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 बछर

जे मन आज घलोक छत्तीसगढ़ी ल संवैधानिक रूप ले भाखा के दरजा पाए के रद्दा म खंचका-डिपरा बनावत रहिथें, उंकर जानकारी खातिर ये बताना जरूरी होगे हवय के ए बछर ह छत्तीसगढ़ी व्याकरण बने के 125 वां बछर आय। आज ले ठउका 125 बछर पहिली हीरालाल चन्द्रनाहू “काव्योपाध्याय” ह सन् 1885 म छत्तीसगढ़ी ब्याकरण ल लिखित रूप म एक किताब के रूप दिए रिहीसे, जेला सन् 1890 म अंगरेजी भाखा के बड़का व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन ह अंगरेजी अनुवाद कर के छत्तीसगढ़ी-अंगरेजी के शमिलहा छपवाए रिहीसे। हीरालाल चन्द्रनाहू जी ल…

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कुकुर मड़ई माने डॉग शो अउ डॉग ब्‍यूटी कान्टेस्ट – गुड़ी के गोठ

नवा जमाना संग नवा-नवा चरित्‍तर सुने ले मिलथे। पहिली तीज-तिहार, मेला-मड़ई के नांव सुनते मन कुलके अउ हुलके ले धर लेवय। काबर ते एकर ले अपन गौरवशाली परम्परा अउ संस्कृति के चिन्हारी मिलय। फेर अब अइसे-अइसे आयोजन होथे, ते वोकर नांव ल सुनके तरूवा भनभना जथे। अभी हाले के बात आय राजधानी रायपुर म ‘कुकर मड़ई’ होइस। अंगरेजी म एला डॉग शो अउ डॉग ब्‍यूटी कान्टेस्ट घलोक कहिथें। वइसे तो पश्चिमी देश मन म अइसन किसम के आयोजन ह कहूं न कहूं होतेच रहिथे। एकरे सेती उहां के जीवन शैली…

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कुकुर मड़ई माने डॉग शो अउ डॉग ब्‍यूटी कान्टेस्ट – गुड़ी के गोठ

नवा जमाना संग नवा-नवा चरित्‍तर सुने ले मिलथे। पहिली तीज-तिहार, मेला-मड़ई के नांव सुनते मन कुलके अउ हुलके ले धर लेवय। काबर ते एकर ले अपन गौरवशाली परम्परा अउ संस्कृति के चिन्हारी मिलय। फेर अब अइसे-अइसे आयोजन होथे, ते वोकर नांव ल सुनके तरूवा भनभना जथे। अभी हाले के बात आय राजधानी रायपुर म ‘कुकर मड़ई’ होइस। अंगरेजी म एला डॉग शो अउ डॉग ब्‍यूटी कान्टेस्ट घलोक कहिथें। वइसे तो पश्चिमी देश मन म अइसन किसम के आयोजन ह कहूं न कहूं होतेच रहिथे। एकरे सेती उहां के जीवन शैली…

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खजरी असनान – गुड़ी के गोठ

असनान तो वइसे कई किसम के होथे जइसे घुरघुरहा असनान, पानी छींचे असनान, साबुन असनान, झुक्खा असनान, गंगा असनान, शाही असनान, कुंभ असनान, चिभोरा असनान फेर अब ए सबले अलग हट के एक नावा असनान घलोक हमर इहां संचरगे हे, जेकर नांव हे- खजरी असनान। खजरी असनान बड़ा अलकरहा प्रजाति के होथे। ए असनान म अइसे होथे के जे मनखे ह बने पानी म चिभोरा मार के नहाथे, वोला खजर-खजर वाले खजरी ह बने कबिया के धर लेथे। तहांले मनखे वोला छोड़ाय खातिर चारों मुड़ा ले खजर-खजर खजुवात रहिथे। एकरे…

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