झांझ के गुर्रई संग बासी के सुरता – गुड़ी के गोठ

मंझनिया के घाम ह अब जनाए ले धर लिए हे। एकरे संग अवइया बेरा के लकलकावत घाम के सुरता संग हरर-हरर के अवई-जवई अउ झांझ-बड़ोरा के गुर्रई के सुरता मन म समाए बर धर लिए हे। फेर संग म करसी-मरकी के जुड़ पानी अउ गोंदली संग बोरे-बासी के सेवाद घलोक मुंह म जनाए बर धर लिए हे। तेकरे सेती तांडव करत गरमी संग जूझे के हिम्मत बंधे रहिथे नइते सरकार अउ समाज के मुखिया मन के मारे तो कोनो मौसम के मार ल सहे के शक्ति न देंह म राहय,…

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संवैधानिक आजादी के सुख पहुंचय आम जनता तक

सिरिफ केन्द्र के राजधानी दिल्ली, प्रांत मन के राजधानी अउ जिला मन के राजमार्ग भर म हरेक साल भारी-भरकम के जुलुस निकाले भरले जनतंत्र नइ कहावय। या हरेक पांच साल म वोट डारे के तिहार मनाय ले गणतंत्र सुफल नइ होवय। जउन दिन हरेक जनता ल रोटी, कपड़ा, मकान, दवाई अउ सिक्छा के ठौरेटी मिल जाहय, जउन दिन आम जनता के मन भावना जागही के भारत देश हमार आय। सिरिफ अधिकारी, कर्मचारी, बेपारी साहूकार, पद लोलुप नेता मन के नेतागिरी चलाय भर बर जनतंत्र नोहय ये जागरूक जनता म आही।…

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गुड़ी के गोठ – संस्कृति बिन अधूरा हे भाखा के रद्दा

भाखा के मापदण्ड म राज गठन के प्रक्रिया चालू होए के साथ सन् 1956 ले चालू होय छत्तीसगढ़ी भाखा ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल करे के मांग आज तक सिरिफ मांग बनके रहिगे हवय। अउ लगथे के ए हर तब तक सिरिफ मांगेच बने रइही, जब तक राजनीतिक सत्ता म सवार दल वाला मन के कथनी अउ करनी एक नइ हो जाही। काबर ते ए बात ल अब तक हर पढ़े-लिखे मनखे समझगे हवय के छत्तीसगढ़ी स्वतंत्र रूप ले एक समृध्द भाषा आय, जेकर शब्दकोश हे, व्याकरण हे,…

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गुड़ी के गोठ – आरूग चोला पहिरावयं

जब कभू संस्कृति के बात होथे त लोगन सिरिफ नाचा-गम्‍मत, खेल-कूद या फेर जे मन ल सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत मंच आदि म प्रस्तुत करे जा सकथे, वोकरे मन के चरचा करथें। मोला लागथे के ए हर संस्कृति के मानक रूप नोहय। एला हम कला के अंतर्गत मान सकथन, फेर जिहां तक संस्कृति के बात आथे त एमा हम सिरिफ वो जिनीस ला शामिल कर सकथन जेला हम संस्कार या धर्म आधारित परब-तिहार के रूप म जीथन, मानथन अउ अपन अवइया पीढ़ी ल सौंपे खातिर संरक्षित राखे के उदिम करथन।…

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आदि परब के अद्भुत रंग – सुशील भोले

गुड़ी के गोठ बसंत ऋतु संग बलदे मौसम के नजारा संग कला-जगत के घलो रंग बदलत देख के मन गदगद होगे। छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति के नांव म इने-गिने गीत-नृत्य मन के प्रस्तुति देख-देख के असकटाये आंखी ल आदि परब के रूप में मनमोहनी देखनी मिलगे। एला देखे के बाद मन म ए बात के प्रश्न घलोक किंजरे लागिस के जब छत्तीसगढ़ के मूल आदि संस्कृति म कला के अइसन अद्भुत संसार रचे-बसे हे, त फेर छत्तीसगढ़ ले बाहिर छत्तीसगढ़ी के नांव म जेन कला-मंडली भेजे जाथे वोमा ए मन के समावेश…

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छत्तीसगढ़ी लोक कला के धुरी ‘नाचा’

‘जुन्ना समय अउ अब के नाचा म अब्बड़ फरक होगे हे। जुन्ना नाचा कलाकार मन रुपिया-पइसा के जगह मान सम्मान बर नाचयं गावयं। गरीबी लाचारी के पीरा भुलाके कला साधना म लगे राहयं, कला के संग जिययं अऊ मरयं। आज काल में नाचा म दिखावा जादा होथे कला साधना कमतियागे। फिलिम के गाना संग भद्दापन के चलन बाढ़गे। येकरे सेती शिक्षित लोगन मन नाचा ल हीन भावना ले देखे ले धरलिन। गांव म सहर के रिवाज परेतिन असन पिछिया गे हे। गांव के अपन रीति रिवाज, संस्कार, वेशभूषा सब बदले-बदले…

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प्रकृति के नवा सिंगार अउ नवा बछर

सुशील भोले भईया ला सुनव यूट्यूब मा –   विडियो साभार – http://www.youtube.com/user/webmediablog भारतीय नव वर्ष माने चैत महीना के अंजोरी पाख के पहिली तिथि। मोला लगथे हमर ऋषि-मुनि मन प्रकृति के नवा सिंगार ल आधार मानके ए तिथि ल जोंगिन होहीं तइसे लागथे। काबर ते इही बखत प्रकृति ह पतझड़ के बाद नवा सिंगार करथे। जम्मो रूख-राई म नवा-नवा कोंवर पान बड़ मयारूक दिखथे। हरर-हरर झांझ के बड़ोरा चारों खुंट नाचे ले धरले रहिथे। तभो ले उल्हवा पान के छांव जम्मो जीव-जंत मनला अपन कोरा बिसराम देथे, दुलार करथे,…

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सुन्ना कपार – उतरगे सिंगार

”मास्टरिन के बात ल सुन के मैं ह खुस होगेंव के देखव तो अब इंकर मन म जागे के चिनगारी उठत हे। जेन माइलोगिन निंदा-चारी के परवाह नई करके समाज अउ परिवार संग जुझथे वो ह अवइया कतेक माइलोगिन मन बर रद्दा बना देथे। कतको सिक्छित माइलोगिन मन ल कपार ल जुच्छा नि राखंय अउ बिंदी टीका लगाथे।” मे-ह अंध बिसवास ले दुरिहा रथौं। अउ जेन मोर करा अपन दु:ख ले उबरे के उपाय पूछे बर आथे तेन मन ल घला मे-ह ये समाज के दकियानूसी दुरिहा रहे के सलाह…

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शिवरीनारायण के मेला

इहां एक शिवलिंग हावय। ऐसे कहे जाथे के ये शिवलिंग म सवा लाख छिद्र हावय। येमा सिक्का डाले ले सिक्का के आवाज तो आथे फेर वो हर कहां जाथे ये रहस्य हावे। इहां माघ पूर्णिमा ले महाशविरात्रि तक मेला भरथे। शिवरीनारायण नाम में ही भक्त अउ भगवान के मिलन के बात हे, त एखर पौराणिक महत्व अउ इतिहास भी बहुत हेवय शवरीन दाई अउ ओखर भगवान राम के कहिनी कथे शवरीनारायण हर, इही जघा म तो शवरीन दाई जेन हर संवरा जाति के रसहि, अपन गुरुदेव मतंग मुनि के आसरम…

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जुन्ना सोच लहुटगे हमर रंग बहुरगे

सर्दी के मौसम के जाती अउ गरमी के आती के बेरा एक संधिकाल आय। ये संधिकाल के मौसम के ‘काय कहना?’ ठंड के सिकुड़े देह मौसम के गर्माहट म हाथ गोड़ फैलाए ले लग जथे। खेती के काम निपट जथे। चार महीना बरसात अउ चार महीना ठंड म असकटाए मनखे, खेती के काम ले थके मनखे निखरे घाम म बाहिर आथे त बदलत मौसम म पेड़ पौधा के अटियई ल देखके झूमे ले लग जथे। मौसम के मस्ती के बाते अलग रहिथे। बसंत के बासंती रंग ओढ़े प्रकृति नाचत रहिथे।…

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