ये दिन हा कतका धन्य हे के 14 फरवरी 2010 दिन इतवार म महावर धरमसाला धमतरी के बडक़ा ठउर म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर (छत्तीसगढ़) के सवजन ले 14वां वार्षिक साहित्य सम्मेलन 2010 के आयोजन करे गिस। ये सम्मेलन के रद्दा सबो साहित्यकार जुन्ना अउ नवा सन देखत रहिथे। एक बछर पाछू अइसन समागम बने महत्तम के होथे। ये दिन जम्मो छतीसगढ़ी राज ले डेढ़ सौ साहित्यकार मन एक ठउर म सकला के अपन-अपन गरिमामय उपस्थिति के संग अइसे लागत राहय जइसन हमर साहित अगास म चंदैनी मन जग-जग, झग-झग…
Read MoreCategory: गोठ बात
नौ बछर के छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ राय जब तक गर्भ म रहिस हे तब तक ओ ह छटपटावत बहुत रहिस हे। कमजोर महतारी ह ओखर ऊपर, धियान कम दिस। छत्तीसगढ़ के हुकारू ह दिल्ली तक पहुंचीस, ओखर दु:ख पीरा ल सुनके दिल्ली ह ओखर इलाज करीस। सन् 2000 म छत्तीसगढ़ के जनम होईस। बहुत दु:ख पीरा के संग-संग घर के अंगना म खुसी जब बहुत विलंब ले आथे तब खुसी के रंग बदले रहिथे। छत्तीसगढ़ संग घलो अइसने होईस। खुसी ल महतारी अपन अंचरा म, ददा ह अपन गमछा म रखे नई सकिस। दू लइका…
Read Moreमया बर हर दिन ‘वेलेन्टाइन डे’ होथे
अपन मया ल देखाय बर एक तिहार मनाये जाथे। जेन ल ‘वेलेन्टाइन डे’ कहे जाथे। येला आज जम्मो दुनिया के मन मनाथे। आज मया खतम होगे हावय। तभे तो ओखर बर एक तिहार मनाये बर दिन निश्चित करे हावंय। 14 फरवरी के दिन वेलेन्टाइन नांव के संत पैदा होय रहिस हे। ओ ह परेम के जोत जलइस। सही म आज ये जोत के जरूरत हावय। फेर येखर रूप ह बदल गे हावय। ये जोत ह सत के आगू म नई जलत हे, ये ह आज असत के आगू म बरत…
Read Moreबसंत ल देखे बर सिसिर लहुटगे
सिसिर रितु, पतझड़ ल न्यौता दिस ‘आ अब तैं आ मैं दूसर जगह के न्यौता म जात हावंव। तोला इंहा बसंत के आय के तइयारी करना हे। प्रकृति ल अइसे संवार दे के बसंत आके देखय त नाचे ले लग जाय।’ भौंरा, तितली, कोयली सब कान दे के सुनत रहिन हे। पतझड़ ह जझरंग ले कूद परिस आमा के डारा म। आमा के रंग, रूप ल संवारे बर कुछ तो करना हे, ये सोचत पतझड़ ह ओला धियान लगा के देखिस। सिसिर कहिस ‘चल मैं चलत हावंव, तैं सब ल…
Read More‘छत्तीसगढ़ के कलंक आय लोककला बिगड़इया कलाकार’
अनाप शनाप एलबम के सीडी म रोक लगना चाही: प्रतिमा पंडवानी गायिका प्रतिमा बारले संग विजय मिश्रा ‘अमित’ के गोठ बात छत्तीसगढ़ म लोककथा अउ लोकगाथा के भरमार हांवय। घर परिवार के डोकरी-डोकरा अउ सियान मन लइका मन ल लोककथा ल सुनावत-सुनावत बने-बने गुन के बीजा ल नोनी बाबू मन के दिल दिमाक म बों देथें। फेर लोकगाथा ल लइका-सियान एके संग मिलजुल के रात-रात भर चौपाल म बइठ के सुनथें। लोकथा ल साधारण मनखे घलो सुना सकत हे फेर लोकगाथा ल सुनाय बर बिसेस कलाकारी के गुन होना चाही।…
Read More14 वां वार्षिक साहित्य सम्मेलन 2010
ये दिन हा कतका धन्य हे के 14 फरवरी 2010 दिन इतवार म महावर धरमसाला धमतरी के बडक़ा ठउर म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर (छत्तीसगढ़) के सवजन ले 14वां वार्षिक साहित्य सम्मेलन 2010 के आयोजन करे गिस। ये सम्मेलन के रद्दा सबो साहित्यकार जुन्ना अउ नवा सन देखत रहिथे। एक बछर पाछू अइसन समागम बने महत्तम के होथे। ये दिन जम्मो छतीसगढ़ी राज ले डेढ़ सौ साहित्यकार मन एक ठउर म सकला के अपन-अपन गरिमामय उपस्थिति के संग अइसे लागत राहय जइसन हमर साहित अगास म चंदैनी मन जग-जग, झग-झग…
Read Moreविकास के कीमत तो चुकाय ल परही
ये तथ्य ल सबो जानथे के धरती के इतिहास कतक पुराना हे। अउ अभी तक के ज्ञात इतिहास में धरती कतका परिवर्तन झेल चुके हे। जउन भी परिवर्तन होय हे फटाक ले नी हो गे हे। ओ परिवर्तन में हजारों-लाखों साल लगे हे। केहे के मतलब परिवर्तन बहुत धीरे-धीरे होथे। अभी कुछ दसक ले हमर धरती म परिवर्तन होये के शुरुआत हो गे हे। मोर इसारा धरती के तापमान बाढ़े म कोती हे। हमला सोचना हे हमर धरती के तापमान में बढ़ोतरी काबर होवत हे? का ए हमर विकास के…
Read Moreनदिया के पीरा
जल, जल माने पानी, ह प्राकृतिक संसाधन म सब ले ऊपर आय। येखर बीना परानी जगत के कल्पना घला नइ करे जा सके। नंदिया ह मानव ताल आदिकाल ले महतारी असन दुलार करथे। कोनों भी क्षेत्र के बाढ़े अऊ विकास करे म नंदिया के अड़बड़ महातमा हे। ऐखरे सेती नंदिया ल देस के जीवन रेखा घला किथे। नंदिया ह आदिकाल ले बिना कोनो छलकपट के सबो बर बोहावत हे। नंदिया तीर ह पवितर अऊ भुइया ह उपजाऊ हो जथे। नंदिया तीर के गांव के रहइया मन बड़हर हो जथे। ‘भृगु…
Read Moreअपन घर के देवता ल मनइबो
जैतखाम ल सतनाम धरम के अनुयायी आस्था के चिन्हा मानथे अऊ येकर पूजा पाठ करत रथे। खाम के ऊपर मं सादा झंडा लगाय जाथे। इही ल शांति के प्रतीक माने गेहे। छग संत महात्मा, महापुरुष मन के भूमि हरे। पांव-पांव मं देवी-देवता के जुन्ना सुरता, स्मारक, पथरा मं पारे चिन्हा अऊ कथा कहिनी मन अपन डाहर तीर लाथे। सुनबे त रोम-रोम गमक उठथे। कथे भारत भुंइया दुनिया के सरग आय। येला आरूग बनाय के घातेच मेहनत करिन इहां के महापुरुष मन। जेन ह सुनता के रद्दा देखा के अमर होगे।…
Read Moreआज जरूरत हे सत के
कोनो भी चीज के जब अति होथे त ओह फुट जाथे। कर्मकांड, पाखंड के अति ह, जनम दिस सत ल। येला बगराय बर, सतबर जागरिति लाय बर कबीर ह अलख जगइस। उही कड़ी म निर्गुण ब्रह्म के सुग्घर ममहाती हवा के झोंका अइस। ये हवा ल पठोवत रहिन गुरु घासीदास सत्यनाम या फेर सतनाम के रद्दा। ये सब जाति के मनखे समागे। कहिथे न, पानी बरसथे त नान-नान जगह-जगह के पानी के धार ह नदिया म समा जथे। इहू ह अइसने रहिस हे। हर जाति धरम के मनखे ऐला समावत…
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