हमर ये समय ल, जेमा हम जीयत हन जमों ला भुला जाय (स्मृति भंग) के समय कहे जा रहे हे। ए समय के मझ म बइठ के मैं सोचत हॅव के भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अपन आज ल हमर काल बर सौंपे के बात कहत रहिन तउन ह छत्तीसगढ़ के तात्कालीन साहित्यकार मन बर फालतू गोठ असन रहिस । काबर के उन अपन आत्म-मुग्ध व्यक्तित्व के संरचना खातिर अपन दूध के भासा म रचना नइ करके हिन्दी बर अपन कृतित्व ल समरपित कर दिहिन । उही समय म…
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छत्तीसगढी गोठ बात : जंवरा-भंवरा
एतवारी बजार के दिन । जाने चिन्हें गंवई के मोर संगवारी सिदार जी असड़िहा घाम म किचकिचात पसीना, म लरबटाये, हकहकात, सायकिल ले उतर के, कोलकी के पाखा म साइकिल ल ओधा के, हमर घर बिहनिया नवबजिहा आइन । कथें मोला- “हजी, चला बजार जाबो । थोड़कन हाट कर दिहा।” जाय के मन तो एकरच नी रहिस । हाथ म पइसा, कउड़ी रहतिस त बजार करथें, एकघ टारे कंस करथों माने नहि, त जायेच बर परिस। बस्ती के दूकान ले साबुन बनाये के कास्टिक सोडा बिसायेन । ओमन लीम तेल…
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एतवारी बजार के दिन । जाने चिन्हें गंवई के मोर संगवारी सिदार जी असड़िहा घाम म किचकिचात पसीना, म लरबटाये, हकहकात, सायकिल ले उतर के, कोलकी के पाखा म साइकिल ल ओधा के, हमर घर बिहनिया नवबजिहा आइन । कथें मोला- “हजी, चला बजार जाबो । थोड़कन हाट कर दिहा।” जाय के मन तो एकरच नी रहिस । हाथ म पइसा, कउड़ी रहतिस त बजार करथें, एकघ टारे कंस करथों माने नहि, त जायेच बर परिस। बस्ती के दूकान ले साबुन बनाये के कास्टिक सोडा बिसायेन । ओमन लीम तेल…
Read Moreकइसे होही छत्तीसगढ़िहा सबले बढ़िहा?
”सतरूहन या सतरोहन नाव त इसकूल म गुरुजी ह सुधार के शत्रुघन या शत्रुहन लिख देथे। अउ एक ठन छत्तीसगढ़ी नाव के राम नाम सत्त कर देथे। आज तक कोनो अइसना नाव लिखइया मनखे छत्तीसगढ़ म नई हे। भावना के छोड़ कोनो दूसर बात नो हे।” छत्तीसगढिहा ल भाखा के रूप म प्रतिष्ठित करे बर बहुत कुछ करना बाकी हे। सबसे पहिली तो हमला ये करना पड़ही के जइसे हमन बोलथन वइसने लिखन घलोक। सब्द मन म हिन्दी के परभाव ले सुधार करत जाबो त छत्तीगसढ़ी भाखा…
Read Moreछत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य अउ देशबन्धु
अभी-अभी जुलाई के देशबन्धु अपन स्वर्ण जयंती मनइस हावय। रायपुर के निरंजन धरमशाला म बहुत बडे आयोजन होईस। हमर मुख्य मंत्री डॉ. रमन सिंह अवइया पचास साल के बाद काय होही एखर ऊपर व्याख्यान दीस। व्याख्यान बहुत बढ़िया रहिस हे। छग के नहीं विश्व के बात होईस जब पूरा विश्व एक हो जही। बहुत अच्छा बात आय। छत्तीसगढ़ी भाषा के कोनो बात नई होईस। पचास साल में चालीस साल होगे देशबन्धु म छत्तीसढ़ी कॉलम आवत। सबले पहिली टिकेन्द्र नाथ टिकरिहा एक कॉलम छत्तीसगढ़ी म लिखत रहिन हे। ओखर बाद भूपेन्द्रनाथ…
Read Moreलहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम
आखिर लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम। छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा के रूप म आखिरी मुहर लगाय बर बाकी हे। अऊ विदेस म परचम लहरागे। वाह! वाह! हमार भाग! छत्तीसगढ़ी भासा के भाग खुलगे अऊ एखर बढ़ती बेरा आगे। कोनों नइ रोक सकय एखर उन्नति के दुवार ल। हिन्दी के छोटे बहिनी, अऊ मगही मैथिली के सहोदरी छत्तीसगढ़ी ककरो ले कमती नइये। ए ह सबले जादा मुचमुचही हावय। अमेरिका म भारत के जनपदीय भासा के जानकार मन ल नौकरी म रखे जाही ये समाचार पढ़केसुनके छत्तीसगढ़िया मन फूले नइ समावत हे, काबर…
Read Moreनंदावत पुतरा-पुतरी – सुधा वर्मा
अक्ती (अक्षय तृतीया) बैसाख महिना के तीज ल कहिथें, तीज अंजोरी पाख के होथे। ये दिन ल अब्बड़ पवित्र माने गे हे। अक्षय तृतीय के कहानी सुनव: एक राजा के सन्तान नई रहिस हे। रानी बहुत उदास राहय। रानी ह कखरो घर भी बिहाव होवय त एक झांपी समान भेजय। एक दिन के भात रानी डाहर ले राहय। रानी ह रंग-रंग के पुतरा-पुतरी रखे राहय, अपन समय ल उही म बितावय। रंग-रंग के कपड़ा जेवर पहिरावय। एक दिन ओखर मन म विचार आथे के मैं ह अपन पुतरी के बिहाव…
Read Moreकहिनी म नारी पात्र के सीमा रेखा – सुधा वर्मा
छत्तीसगढ़ी कहानी म नारी के रूप काय होना चाही। कहानी के नायिका, छत्तीसगढ़ के नारी के आदर्श होना चाही या प्रतिनिधि होना चाही? ऐखर मतलब होईस के घर, परिवार बर बलि चढ़गे या फेर शराबबंदी करवा के एक नेता के रूप म नाव कमा लीस। जेन नारी ह अपन गांव म सबके मदद करीस, शराबी पति के धोय-धोय मार खईस, बेटा के गारी खईस अउ दुनिया के आगू म एक आदर्श पत्नी या नारी बनके नाव कमइस। ये ह तो पहिली प्रश्न के उत्तर होगे। दूसर बात हे यथार्थ होना…
Read Moreवर्तमान ह सच आय – सुधा वर्मा
आज के समय म वर्तमान म जियइया मनखे कमती देखे बर मिलथे, सब बड़े-बड़े सपना ले के चलत हावंय अउ वो सपना म अपन वर्तमान ल खतम करत हावंय। कई झन लइका मन डॉक्टर इन्जिनियर बने के चक्कर म बारवीं के रिजल्ट ल खराब कर देथें अउ ड्राप ले के दू-तीन साल तक परीक्छा देतेच्च रहिथें, कखरो चयन हो जथे, कतको झन रुक जथें। सपना ह सपनाच्च रहि जथे। बहुत दूरिहा के सोचबेत अइसने होथे। मनखे ल अपन वर्तमान ल देखना चाही, उही म जीना चाही। कहिथे न ”सरग देख…
Read Moreहमन कहां जात हन – सुधा वर्मा
रामकुमार साहू के कविता संग्रह के भूमिका लिखत रहेंव त ओमा एक लेख ”तईहा के ला बइहा लेगे” ल पढ़त-पढ़त सोचेंव के ये लेख के जम्मों बात ल मैं ह अपन मड़ई म अलग-अलग रूप मा दे डरे हवं। फेर पढे क़े बाद उही सब बात ह दिल दिमाक मा आए ले धर लीस। गर्मी के मजा अउ अवइया बरसात के जोखा एके रहिस हे। अमली के बीजा हेरन, बोईर के मुठिया बनावन। मखना के खोइला करन। अम्मारी, पटवा, चना भाजी के सुक्सा ल बने सुखो के धरन। अब ये…
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