बरसात : गीतिका छंद

आज बादर बड़ बरसही,जाम कस करियाय हे। नाच के गाके मँयूरा ,नीर ला परघाय हे। भर जही अब ताल डबरी,एक होही खोंचका। दिन किसानी के हबरही, मन भरे ये सोच गा। ढोड़िया धमना ह भागे,ए मुड़ा ले वो मुड़ा। साँप बिच्छू घर म घूँसे,डर हवय चारो मुड़ा। बड़ चमकथे बड़ गरजथे,देख ले आगास ला। धर तभो नाँगर किसन्हा ,खेत रचथे रास ला। देख डबरा भीतरी ले, बोलथे बड़ मेचका। ढेंखरा उप्पर चढ़े हे , डोलथे बड़ टेटका। खोंधरा जाला उझरगे,रोत हावय मेकरा। टाँग डाढ़ा रेंगथे जी,चाब देथे केकरा। तीर मा…

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