गौरी के गनपति भये, अंजनी के हनुमान रे। कालिका के भैरव भये, कौसिल्या के लछमन राम रे॥ गाय चरावे गहिरा भैया, भैंस चराय ठेठवार रे। चारों कोती अबड़ बोहावे, दही दूध के धार रे॥ गउ माता के महिमा भैया, नी कर सकी बखान रे। नाच कूद के जेला चराइस, कृष्णचंद्र भगवान रे॥ नारी निंदा झन कर गा, नारी नर के खान रे। नारी नर उपजाव॑ भैया, धुरू – पहलाद समान रे॥ दू दिन के दुनिया मां संगी, झन कर बहुतें आस रे। नदी तीर के रुखड़ा भैया, जब तब होय…
Read MoreCategory: दोहा
महादेव के बिहाव खण्ड काव्य के अंश
शिव सिर जटा गंग थिर कइसे, सोभा गुनत आय मन अइसे। निर्मल शुद्ध पुन्नी चंदा पर गुंडेर करिया नाग मनीधर।। दुनो बांह अउ मुरूवा उपर, लपटे सातो रंग के विषधर। जापर इन्द्र घनुक दून बाजू, शिव पहिरे ये सुरग्घर साजू ।। नीलकण्ठ गर उज्जर भाव, मन गूनत अइसे सरसाव। भौरां बइठ शंख पर भूले, तो थोरक मुहर मन झूले ।। सेत नाग शिव तन मिले, जाँय नि चिटकों जान। जीभ दुफनिया जब निकारे, तभे होय पहिचान ।। पहिरे बधवा के खाल समेटे, तेकर उपर सांप लपेटे। आंखी तिसर कपार उपर…
Read Moreसिंहावलोकनी दोहा (गरमी)
गरमी हा आ गे हवय,परत हवय अब घाम। छइँहा खोजे नइ मिलय,जरत हवय जी चाम। । जरत हवय जी चाम हा,छाँव घलो नइ पाय। निसदिन काटे पेंड़ ला,अब काबर पछताय। । अब काबर पछताय तै,झेल घाम ला यार। पेंड़ लगाते तैं कहूँ,नइ परतिस जी मार। । नइ परतिस जी मार हा,मौसम होतिस कूल। हरियाली दिखतिस बने,सुग्घर झरतिस फूल। । सुग्घर झरतिस फूल तब,सब दिन होतिस ख़ास। हरियाली मा घाम के,नइ होतिस अहसास। । नइ होतिस अहसास जी,रहितिस सुग्घर छाँव। लइका पिचका संग मा,घूमें जाते गाँव। । घूमे जाते गाँव तै…
Read Moreबाहिर तम्बू छोड़ के, आबे कब तैं राम
गली गली मा देख लव,एके चरचा आम । पाछु सहीं भुलियारहीं ,धुन ये करहीं काम । अाथे अलहन के घड़ी,सुमिरन करथें तोर । ऊंडत घुंडत माँगथे ,हाथ पाँव ला जोर । मतलब खातिर तोर ये ,दुनिया लेथे नाँव । जब बन जाथे काम हा, पुछे नही जी गाँव । कहना दशरथ मान के ,महल छोड़ के जाय । जंगल मा चउदा बछर ,जिनगी अपन पहाय । तुम्हरो भगत करोड़ हे, बाँधे मन मा आस । राम लला के भाग ले, जल्द कटय बनवास । फुटही धीरज बाँध ये, मानस कहूँ…
Read Moreदोहा गजल (पर्यावरण)
रुख राई झन काटहू, रुख धरती सिंगार। पर हितवा ये दानियाँ, देथें खुशी अपार।~1 हरहिंछा हरियर *अमित*, हिरदे होय हुलास। बिन हरियाली फोकला, धरती बंद बजार।~2 रुखुवा फुरहुर जुड़ हवा, तन मन भरय उजास। फुलुवा फर हर बीज हा, सेहत भरे हजार।~3 डारा पाना पेंड़ के, करथें जीव निवास। कखरो कुरिया खोंधरा, झन तैं कभू उजार।~4 धरती सेवा ले *अमित*, सेउक बन सुखदास। खूब खजाना हे परे, बन जा मालगुजार।~5 रुखराई के होय ले, पानी बड़ चउमास। जंगल झाड़ी काटबो, सँचरहि अबड़ अजार।~6 सिरमिट गिट्टी रेत ले, बिक्कट होय बिकास।…
Read Moreनिषाद राज के छत्तीसगढ़ी दोहा
माता देवी शारदा, मँय निरधन लाचार। तोर चरन में आय हँव, सुन दाई गोहार।। माता तोरे रूप के, करहूँ दरशन आज। पाहूँ मँय आशीष ला, बनही बिगड़े काज।। हे जग जननी जानले, मोरो मन के आस। पाँव परत हँव तोर ओ, झन टूटै बिसवास।। दुनिया होगे देखले, स्वारथ के इंसान। भाई भाई के मया, होंगे अपन बिरान।। आगू पाछू देखके, देवव पाँव अगार। काँटा कोनो झन गड़य, रद्दा दव चतवार।। xxx काँटा गड़गे पाँव मा,माथा धरके रोय। मनखे गड़गे आँख मा,दुख हिरदय मा होय। मन मंदिर मा राखले,प्रभु ला तँय…
Read More13 मई विश्व मातृ दिवस : दाई के दुलार (दोहा गीत)
महतारी ममता मया, महिमा मरम अपार। दाई देवी देवता, बंदव चरन पखार। महतारी सुभकामना, तन मन के बिसवास। कोंवर कोरा हा लगै, धरती कभू अगास। बिन माँगे देथे सबो, अंतस अगम अभास। ए दुनिया हे मतलबी, तोर असल हे आस। महतारी आदर सहित, पायलगी सौ बार।।1 महतारी ममता मया, महिमा मरम अपार। मीठ कलेवा मोटरा, मधुरस मिसरी घोल। दाई लोरी गीत हा, लगय कोइली बोल। सरधा सिरतो सार हे, सरन सरग अनमोल। महतारी के मया ला, रुपिया मा झन तोल। करजा हर साँसा चढ़े, जिनगी तोर उधार।।2 महतारी ममता मया,…
Read Moreसिंहावलोकनी दोहा : गरमी
गरमी हा आ गे हवय,परत हवय अब घाम। छइँहा खोजे नइ मिलय,जरत हवय जी चाम।। जरत हवय जी चाम हा,छाँव घलो नइ पाय। निसदिन काटे पेंड़ ला,अब काबर पछताय।। अब काबर पछताय तै,झेल घाम ला यार। पेंड़ लगाते तैं कहूँ,नइ परतिस जी मार।। नइ परतिस जी मार हा,मौसम होतिस कूल। हरियाली दिखतिस बने,सुग्घर झरतिस फूल।। सुग्घर झरतिस फूल तब,सब दिन होतिस ख़ास। हरियाली मा घाम के,नइ होतिस अहसास।। नइ होतिस अहसास जी,रहितिस सुग्घर छाँव। लइका पिचका संग मा,घूमें जाते गाँव।। घूमे जाते गाँव तै ,रहितिस संगी चार। गरमी के चिंता…
Read Moreआज काल के लइका : दोहा
पढ़ना लिखना छोड़ के, खेलत हे दिन रात । मोबाइल ला खोल के, करथे दिन भर बात ।। आजकाल के लोग मन , खोलय रहिथे नेट । एके झन मुसकात हे , करत हवय जी चेट ।। छेदावत हे कान ला , बाला ला लटकात । मटकत हावय खोर मा , नाक अपन कटवात ।। मानय नइ जी बात ला , सबझन ला रोवात । नाटक करथे रोज के, आँसू ला बोहात ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़
Read Moreनिषाद राज के दोहा
माने ना दिन रात वो, मानुष काय कहाय। ओखर ले वो पशु बने, हात-हूत मा जाय।। भव ले होबे पार तँय, भज ले तँय हरि नाम। राम नाम के नाव मा, चढ़ तँय जाबे धाम।। झटकुन बिहना जाग के, नहा धोय तइयार। घूमव थोकन बाग में, बन जाहू हुशियार।। कहय बबा के रीत हा, काम करौ सब कोय। करहू जाँगर टोर के, सुफल जनम हा होय।। जिनगी में सुख पायबर, पहली करलौ काम। कर पूजा तँय काम के, फिर मिलही आराम।। रात जाग के का करे, फोकट नींद गँवाय। दिन…
Read More