खेत पार मा कुंदरा, चैतू रखे बनाय । चौबीसो घंटा अपन, वो हर इहें खपाय ।। हरियर हरियर चना ह गहिदे । जेमा गाँव के गरूवा पइधे हट-हट हइरे-हइरे हाँके । दउड़-दउड़ के चैतू बाँके गरूवा हाकत लहुटत देखय । दल के दल बेंदरा सरेखय आनी-बानी गारी देवय । अपने मुँह के लाहो लेवय हाँफत-हाँफत चैतू बइठे । अपने अपन गजब के अइठे बड़बड़ाय वो बइहा जइसे । रोक-छेक अब होही कइसे दू इक्कड़ के खेती हमरे । कइसे के अब जावय समरे कोनो बांधय न गाय-गरूवा । सबके होगे…
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दोहा छंद म गीत
काँटों से हो दोस्ती, फूलों से हो प्यार। इक दूजे के बिन नहीं, नहीं बना संसार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. कठिन डगर है जिंदगी, हँस के इसे गुजार। दुनिया का रिश्ता यहीं, निभता जाये यार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. दुख हो सुख हो काट लो, ये जीवन उपहार। राम नाम में जोड़ लो, साँसों का ये तार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. धूप छाँव बरसात हो, मिले ग़मों की मार। हँसता हुआ गुलाब ज्यों, छाये सदा बहार।। काँटों से हो दोस्ती………………… खो जाओ मजधार में, चलता हुआ बयार। हरि का मनमें…
Read Moreअंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस म दोहा : बेटी
दोहा (बेटी) झन मारव जी कोख मा ,बेटी हे अनमोल। बेटी ले घर स्वर्ग हे, इही सबो के बोल।।1।। बेटी मिलथे भाग ले,करव इँकर सम्मान। दू कुल के मरजाद ये,जानव येहू ज्ञान।।2।। बेटी आइस मोर घर,गज़ब भाग हे मोर। घर पूरा खुशहाल हे,जुड़े मया के डोर ।।3।। बेटी ला सम्मान दव, ये लक्ष्मी के रूप। बेटी छइँहा कस चलय,गर्मी हो या धूप।।4।। मनखे मन करथे जिहाँ, नारी के सम्मान। करथे लक्ष्मी वास जी, सुखी रथे इंसान।।5।। काली,दुर्गा,शारदा, सबो करय उद्धार। बेटी कतका रूप मे,जग के पालनहार।।6।। माँ,बेटी,अर्धांगिनी,कभू बहन के रूप।…
Read Moreछत्तीसगढ़ी गीत-ग़ज़ल-छंद-कविता
होगे होरी तिहार होगे – होगे होरी के, तिहार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। करु बोली मा,अउ केरवस रचगे। होरी के रंग हा, टोंटा मा फँसगे। दू गारी के जघा, देय अब चार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। टेंड़गा रेंगइया हा,अउ टेंड़गा होगे। ददा – दाई ,नँगते दुख भोगे। अभो देखते वो , मुहूँ फार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। पउवा पियइया हा,अध्धी गटक दिस। कुकरी खवइया हा,बोकरा पटक दिस। टोंटा के कोटा गय , जादा बाढ़ गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। घर मा खुसर के,बरा-भजिया…
Read Moreहोली के दोहा
ब्रज मा होरी हे चलत, गावत हे सब फाग। कान्हा गावय झूम के, किसम-किसम के राग।। 1।। राधा डारय रंग ला, सखी सहेली संग। कान्हा बाँचे नइ बचय, होगे हे सब दंग।।2।। ढोल नगाड़ा हे बजत, पिचकारी में रंग। राधा होरी में मगन, सखी सहेली संग।।3।। गोकुल मा अब हे दिखत, चारो कोती लाल। बरसत हावय रंग हा, भींगत हे सब ग्वाल।।4।। लाल लाल परसा दिखय, आमा मउँरे डार। पींयर सरसों हे खिले, सुग्घर खेती खार।।5।। ======000==== तन ला रंगे तैं हवस, मन ला नइ रंगाय। पक्का लगही रंग हा,…
Read Moreदोहालरी – दामाखेड़ा धाम
1-माघी पुन्नी मा चलव, दामाखेड़ा धाम। दरशन ले साहेब के, बनथे बिगड़े काम। 2-धर्मदास सतगुरु धनी,धरम नगर दरबार। दामाखेड़ा धाम के, चारों खुँट जयकार। 4-उग्रनाम साहेब जी, होइन संत फकीर। धरम नगर मा आ बसे, ब्यालिस अंश कबीर। 5-प्रगटे हें तिथि दसरहा, श्री प्रकाशमुनि नाम। दरस चरन गुरु के मिलय, दामाखेड़ा धाम। 6-माघ पंचमी शुभ घड़ी,सादर चढ़य गुलाल। दसमी ले पुन्नी जिहाँ, लगय संत चौपाल। 7-माँस सबो हा एक हे, का छेरी का गाय। मार काट जे खात हे, मरत नरक मा जाय। 8- एक बरोबर जात हे, मनखे एक…
Read Moreहे गुरु घासीदास – दोहालरी
पायलगी तोला बबा, हे गुरु घासीदास। मन अँधियारी मेट के, अंतस भरव उजास। सतगुरु घासीदास हा, मानिन सत ला सार। बेवहार सत आचरन, सत हे असल अधार। भेदभाव बिरथा हवय, गुरु के गुनव गियान। जात धरम सब एक हे, मनखे एक समान। झूठ लबारी छोड़ के, बोलव जय सतनाम। आडंबर हे बाहरी, अंतस गुरु के धाम। चोरी हतिया अउ जुआ, सब जी के जंजाल। नारी अतियाचार हा, अपन हाथ मा काल। जउँहर जेवन माँस के, घटिया नशा शराब। मानुस तन अनमोल हे, झनकर जनम खराब। मुरती पूजा झन करव, पोसव…
Read Moreदोहालरी नवा बछर के
1 नवा बछर शुभकामना,जिनगी हो खुशहाल। मन के कोठी मा मया,बाढ़य जी हर साल। 2 पाछू के अटके बुता,सफल सिद्ध हो जाय। नवा बछर हे देवता,जन जन सब मुस्काय। 3 मतलबिया घरफोरवा,झन दँय घातक घात। सुमता के दियना जलय,गाँव गली दिन रात। 4 अघुवा लहुटे दोगला,अइसन दिन झन आय। कथनी करनी एक हो,किरिया अपन निभाय। 5 खरतरिहा खन्ती खनय,दिनभर खेती खार। सरलग महिनत ला करै,लावय नवा बहार। 6 खेती ला पानी मिलय,फसल लहर लहराय। खातू बिजहा हो असल,करजा सबो चुकाय। 7 अंतस मा राखव सबो, गुरतुर गुरतुर गोठ। चुगली चारी…
Read Moreअजय साहू “अमृतांशु” के दोहा : इंटरनेट
छागे इंटरनेट हा, महिमा अपरंपार। घर बइठे अब होत हे, बड़े-बड़े व्यापार।। बिन खरचा के होत हे, बड़े-बड़े सब काम। दउड़े भागे नइ लगय, अब्बड़ हे आराम।। नेट हवय तब सेट हे, दुनिया के सब रंग। बिना नेट के लागथे, जिनगी हा बदरंग।। रात-रात भर नेट मा, झन कर अतका काम। चिंता कर परिवार के, कर ले कुछ आराम।। घर मा बइठे देख लव, दुनिया भर के रीत। आनी बानी गोठ अउ, अब्बड़ सुग्घर गीत।। लइका मन पुस्तक पढ़य,घर बइठे अभ्यास। होत परीक्षा नेट मा, तुरते होवय पास।। का कहना…
Read Moreजीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : करम
करम सार हावय इँहा, जेखर हे दू भेद। बने करम ला राख लौ, गिनहा ला दे खेद। बिना करम के फल कहाँ, मिलथे मानुष सोच। बने करम करते रहा, बिना करे संकोच। करे करम हरदम बने, जाने जेहर मोल। जिनगी ला सार्थक करे, बोले बढ़िया बोल। करम करे जेहर बने, ओखर बगरे नाम। करम बनावय भाग ला, करम करे बदनाम। करम मान नाँगर जुड़ा, सत के बइला फाँद। छीच मया ला खेत भर, खन इरसा कस काँद। काया बर करले करम, करम हवे जग सार। जीत करम ले हे मिले,…
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