नवगीत : अगर न होतेन हम

करिया-करिया बादर कहिथे अगर न होतेन हम। धरती जम्मो बंजर होतिस जल हो जातिस कम। हमर आए ले तरिया-नरवा जम्मो ह भर जाथे, जंगल-झाड़ी, बन-उपवन मन झूम-झूम हरसाथे। कौन हमर तासीर ल जाने जाने कौन मरम? करिया-करिया बादर कहिथे अगर न होतेन हम। मनखे मन हर काटत हावै रुख-राई ल जब ले, हमर आँखी मा आँसू रहिथे रूप बिगड़गे तबले। मोर पीरा ल समझे नहीं, फूटे उँकर करम। करिया-करिया बादर कहिथे अगर न होतेन हम। परियावरन रही बने जी सुग्घर दिन तब आही मेचका, मछरी अउ चिरई मन गीत हरेली…

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