विष्णु सखाराम खांडेकर कहानी के एकांकी रूपांन्तरण : सांति

दिरिस्यः 1 घना करिया बादर ले सूरुज नरायन भगवान धीरे धीरे उअत हावय। ओला देखके- कबि:- कल संझा समे मा, सागर मा बूड़े सोन कलस हाथ मा लेके उए होही, फेर सागर के तरी मा कलस के खोज करत करत ओकर हीरा मोती लगे गहना कहूंॅ छूट गे होही, ओला खोजे बर फेर एक घा सागर के तरी मा गे होही, ता देखिस, ये सोन कलस लहरमन के भान ले लहरावत हावय। लइका:- नंदनबन के कोन्हो सुग्घर आमारूख ले गदराय आमा गिरत हावय, जेहर ढुलत ढुलत भिंया मा आत हावय।…

Read More

बिरहा के आगी

जान – चिन्हार 1ः- रत्नाकर – एकठन कबि 2ः- किसन – परम आत्मा 3ः- उधव – किसन के सखा 4ः- राधा – किसन के सखी 5ः- ललिता – राधा की सखी 6:- अनुराधा – राधा की सखी दिरिस्य: 1 रत्नाकर – गोपीमन अउ किसन के बिरह के पीरा के कथा अकथनीय हावय। अथहा हावय, जेला नापा नी जा सकाय। ओ बियथा के बरनन ला चतुर अउ बने कबि ला कहत नी बनय। मैंहर तो आम आदमी हावंव। जइसने बरज के गोपी मनला संदेस दे बर उधव ला समझाय लागिस, वइसने…

Read More

पुरुस्कार – जयशंकर प्रसाद

जान-चिन्हार महाराजा – कोसल के महाराजा मंतरी – कोसल के मंतरी मधुलिका – किसान कइना, सिंहमित्र के बेटी अरुन – मगध के राजकुमार सेनापति – कोसल के सेनापति पुरोहित मन, सैनिक मन, जुवती मन, पंखा धुंकोइया, पान धरोइया दिरिस्य: 1 ठान: बारानसी के जुद्ध। मगध अउ कोसल के मांझा मा जुद्ध होवत हावय, कोसल हारे बर होवत हावय, तभे सिंहमित्र हर मगध के सैनिक मला मार भगाथे। कोसल के महाराजा खुस हो जाथें। महाराजा – तैंहर आज मगध के आघू मा कोसल के लाज राख ले सिंहमित्र। सिंहमित्र – सबो…

Read More

छत्तीसगढ़ी नाटक – मतदान बर सब्बो झन होवव जागरूक

(चुनाव के बुता म लगे शिक्षक घर-घर जा के मतदाता मन के सूद लेथे अउ मतदान करे बर सब्बो ल जागरूक करत हे) शिक्षक रददा म रेंगत जात रहिथे त ओखर भेंट एक पागल मनखे ले हो जाथे, पागल- जय हिंद गुरुजी कहाँ जात हास। शिक्षक- जय हिंद, चुनाव अवइया हे भाई, तेखर सेती मतदाता मन ल जागरूक करे म लगे हौ, सब्बो मतदाता मन ल चुनाव के पहली जगाना हे। पागल-कोनों फायदा नइ हे गुरु जी जगाए के जगाये तो सुते मनखे ल जाथे, फेर इंहा तो सब मर…

Read More

किसना के लीला : फणीश्वर नाथ रेणु के कहानी नित्य लीला के एकांकी रूपांतरण

जान चिन्हार: सूत्रधार, किसना- योगमाया, जसोदा, नंदराजा, मनसुखा, मनसुखा की दाई राधा, ललिता, जेठा, अनुराधा, सलोना बछवा दिरिस्य: 1 जसोदा के तीर मा राधा, ललिता, जेठा, अनुराधा ठाढ़े हवय, किसना आथे। जसोदा: एकर जवाब दे, ले एमन का कहत हवय? लाज नी आय रे किसना? छिः छिः समझा समझा के मैंहर हार गयेंव। किसना:- गायमला अउ बछवामला साखी देत कइथे- धौली ओ मोर बात सही हावय ना। धौली कोठा ले हुंकारी देथे हूँक-हूँ। सलोना बछवा घलो इच कहथ हवय, सलोना बछवा: हूँक- हू। किसना: सुनत हस दाई, सफ्फा सफ्फा लबारी…

Read More

चिरई चिरगुन (फणीश्वरनाथ रेणु के कहानी आजाद परिन्दे)

जान चिन्हार – हरबोलवा – 10-11 साल के लइका फरजनवा – हरबोलवा के उमर के लइका सुदरसनवा – हरबोलवा के उमर के लइका डफाली – हरबोलवा के उमर के भालू के साही लइका भुजंगी – ठेलावाला हलमान – भाजीवाला करमा – गाड़ीवाला मौसी – हरबोलवा की मौसी हलधर – सुदरसनवा के ददा चार लइका – डफाली के संगीमन चार लइका – सुदरसनवा के संगीमन दिरिस्य: 1 खोर मा भुजंगी अउ हलमान लड़त हवंय, हरबोलवा देखत हवय। भुजंगी – साला तोर बहिनी ला धरों। हलमान – बोल साला, ठड़गी के डउका।…

Read More

पान के मेम

जान चिन्हार सूत्रधार, दाई, बप्पा,बिरजू, चंपिया, मखनी फुआ, जंगी,जंगी के पतो, सुनरी, लरेना की बीबी दिरिस्य: 1 बिरजू:- दाई, एकठन सक्करकांदा खान दे ना। दाईः- एक दू थपड़ा मारथे- ले ले सक्कर कांदा अउ कतका लेबे। बिरजू मार खाके अंगना मा ढुलगत हवय, सरीर भर हर धुर्रा ले सनात हवय। दाईः- चंपिया के मुड़ी मा घलो चुड़ैल मंडरात हावय, आधा अंगना धूप रहत गे रिहिस, सहुआइन के दुकान छोवा गुर लाय बर, सो आभी ले नी लहुंॅटे हवय, दीया बाती के बेरा होगिस, आही तो आज लहुंॅट के फेर। बागड़…

Read More

सिरीपंचमी का सगुन

जान चिन्हार सिंघाय कहारः- किसान माधोः- सिंघाय कहार का बेटा जसोदा:- सिंघाय कहार की घरवाली कालू कमार:- एक लोहार कमला:- कालू कमार की घरवाली गंॅजेड़ियाः- बूढ़ा रेलवे मिस्त्री धतुरियाः- जवान रेलवे मिस्त्री कोटवारः- हांॅका लगोइया हरखूः- गांॅव का किसान मनखे 1,2,3,4,5,ः- सभी किसान गांॅजा, बिड़ी, सिगरेट और शराब पीना स्वास्थ्य बर हानिहारक हावय। दिरिस्यः 1 ठौर:- सिंघाय के घर अनमना मन ले सिंघाय आथे, कौंआ बोलथे- कांव कांव सिंघायः- असुभ, असगुन बोली कौंआ के, टेड़गा फाल, टेड़गा भाग। माधोः- ददा आगिस, ददा आगिस, सबले पहिली मोर ददा आगिस, मोर बर…

Read More

ठेंसा

जान चिन्हार: सूत्रधार, सिरचन, बेटा, दाई, नोनी, बड़की भौजी, मंैझली भौजी, काकी, मानू दिरिस्य:1 सूत्रधारः- खेती बारी के समे, गांॅव के किसान सिरचन के गिनती नी करे, लोग ओला बेकार नीही बेगार समझथे, इकरे बर सिरचन ला डोली खेत के बूता करे बर बलाय नी आंय, का होही ओला बलाके? दूसर कमियामन डोली जा के एक तिहाई काम कर लीही, ता फेर सिरचन राय रांॅपा हलात दिखही, पार मा तौल तौल के पांय रखत, धीरे धीरे, मुफत मा मजूरी दे बर होही, ता अउ बात हावय।——- आज सिरचन ला मुफतखोर,…

Read More