-वीरेन्द्र सरल एकेच दो साल पहिली बने नवा सरकारी भवन के छत उपर गर्मी भर मनमाने बोरझरी और बमरी कांटा ला बगरा के राखे गे रिहिस हावे । रद्दा म रेगंइया ओती ले रेंगें तब छत उपर कांटा ला देख के अचरज मे पड जाय।कारण जाने के उदिम करे फेर कारण समझ मा आबे नई करे। फेर जइसे बरसात लगिस तइसे वो कांटा ला टार के छत उपर खपरा चढ़ाय जात रिहिस। अब तो देखइया मन के अचरज के ठिकाना नई रिहिस ।सब के दिमाग घूमगे ।सबे सोचे -अरे! अहा…
Read MoreCategory: व्यंग्य
कामवाली चमेली के पीरा
झपटराम तसीलदार के दू बेटा हे, बड़े के नाव केकरा अउ छोटे के नाव मेकरा। केकरा पढ़े-लिखे म बहुते चतुरा हे, एकरे सेती दू बछर होगे रयपुर कालेज ले बी.ई. पास करके घर म बइठे हे। मेकरा वोकालत करथे। दुनो भई के बिहाव नई होय हे। एक दिन तसीलदार अपन दुनो बेटा ल रथिया कन जेवन के बखत तीर म बइठार के समझाथे के बेटा हो तुमन अपन-अपन खातिर गोरी-गोरी कइना खोजा, ए बरिख बिहाव करना जरूरी हे, काबर के मोर नउकरी ह जादा दिन जइये अउ कतका दिन ल…
Read Moreचुपरनहा साबुन
येदे अहि नाहकिस हे तउने देवारी फर्रा के गोठ आए बड़ दिन म अपन गाँव गए रहेंव, जम्मे जुन्ना संगवारी मन सो भेंट होए रहिस, गोठ बात म कतका बेर रात पहागे जाने नई पायेन| बिहनिया होईस तंहा चला तरिया जाबो बड़ दिन हो गए तरिया म नहाय नई हन, जमे संगवारी मन ला उनकर घर ले चला न कतका बेरा जाहा म जाहा त घटौन्धा म बैठे नई पाहा, तभे टेटका ह घर के भीतरी ले चिचिया के कहत हे तैं चल ना मै ह गरुआ ल ठोकान म…
Read Moreमेछा चालीसा
मैं पीएचडी तो कर डारे हंव अब डी-लिट के तैयारी में हौं। मोर विषय रही ‘मेंछा के महिमा अऊ हमर देस के इतिहास’ मोला अपन शोध निर्देशक प्रोफेसर के तलाश हे। कई झन देखेंव पर दमदार मेंछा वाले अभी तक नई मिले हे। मेंछा ह शान के परतीक आय अऊ दाढ़ी ह दृढ़ता के। मेंछा चालीसा ल मैं इतिहास से शुरू करत हौं। भगवान मन में बरम्हा जी, शंकर जी, हनमान जी अऊ विस्वकर्मा जी के फोटू म कभू-कभू मेंछा के दरसन हो जथे। मेंछा के महिमा के बखान मेंछा…
Read Moreचलव चली ससुरार
एच.एम.टी. के भात ल थोकिन छोड़ दीस अउ मुंह पोंछत उठगे। दुलरवा के नखरा देख के मैं दंग रहिगेंव। जेन दुलरवा ह दू रुपिया किला वाले चाउर के भात खाथे वोह एचएमटी के भात ल छोड़ दीस। साल भर में एकाध बार आमा खावत होही तेन ह आमा ल वापिस कर दीस। जिल्लो के दार खवइया ह राहेरदार ल हीन दीस। वाह रे! दुलरवा तैं तो सही म दमाद बाबू दुलरू हो गेस। दुलार सिंग ह मोर लंगोटिया दोस्त ए। दुलार के रू नाम दुलरवा हे। आज दुलरवा शब्द ह…
Read Moreचना के दार राजा, चना के दार रानी
छत्तीसगढ़ी व्यंग्य चना के दार राजा, चना के दार रानी, चना के दार गोंदली कड़कत हे। टुरा हे परबुधिया, होटल म भजिया झड़कत हे। शेख हुसैन के गाये गीत जउन बखत रेडियों म बाजिस त जम्मों छत्तीसगढिया मन के हिरदे म गुदगुदी होय लागिस। गाना ल सुनके सब झन गुनगुनावंय अउ झूमरे लागंय। सन् साठ अउ सत्तर के दसक म ये गाना ह रेडियो म अब्बड़ चलिस। वो जमाना म टी. वी. चैनल के अता-पता नइ रिहिस हे। अब रेडियो नंदाती आ गे। मोबाइल, टी. वी. चैनल अउ सी. डी.…
Read Moreभगवान मोला गरीब बना दे
भक्त ह किहिस-”गरीब होय के अड़बड़ फायदा हे, गरीबी रेखा म नाम जुड़ जाय ताहने का कहना। दू रुपया किलो म चांउर मिल जाथे। सौ दिन के मंजूरी पक्का हे। हाजरी भर दे देव। कमास या मत कमास, तोर रोजी सोला आना मिलही। काकरो ददा म ताकत नइ हे जोन तोर मंजूरी ल कम कर सके। अस्पताल म जाबे तब फोकट म इलाज होथे। अउ केस बिगड़ गे त नगद मुवाजा मिलना ही मिलना हे। कोनो गड़बड़ करत हे त थोरकिन बाहिर आगे चिल्ला दे, मँय गरीब हों मोर नाम…
Read Moreतीजा नई जावंव
बड़े मौसी काबर नई आय हे ओ दाई। ओखर छोटे नोनी के नोनी-बाबू अवइया हे का? अउ छोटे मोसी ह घलो नइ आय हे का दाई? ह हो ओखर सास ह पटऊहां ले गीर गे हे अउ ओखर बाखा पकती मन दरक गे हे। बपरी हर सास महतारी के सेवा मा, ऐसो के तीजा तिहार ला घलो नई जानिस। त स्वीटी दीदी ला तो भेज दे रहितिस का करबे बेटा आजकल के लइका मन गांव-देहात मा नई रहना चाहे। फेर ओखर पीएससी के मेनस परीक्षा हे काहत रिहिस हावय। आतना…
Read Moreटुरी देखइया सगा
हमर गांव-देहात म लुवई-टोरई, मिंजई-कुटई के निपटे ले लोगन के खोड़रा कस मुंह ले मंगनी-बरनी, बर-बिहाव के गोठ ह चिरई चिरगुन कस फुरूर-फुरूर उड़ावत रइथे। कालिच मंगलू हल्बा के नतनीन ल देखे बर डेंगरापार के सगा आय रिहिस। चार झन रिहिन। दू झन सियनहा अउ दू झन नवछरहा टुरा। ठेला करा मोला पूछिस- ‘कस भइया, इहां हल्बा नोनी हावय बर-बिहाव करे के लइक।’ कहेंव- हव, कइसन ढंग के लड़की चाही आप मन ला। एक झन मोट्ठा सगा ह अंटियावत दांत निपोरीस- ‘कुंआरी।’ ओखर हांथी खिसा दांत ल देख के एक…
Read Moreकवयित्री के गुण / कवयित्री धोंधो बाई
माईलोगिन मन के मुँह ह अबड़ खजुवाथे कहिथें। एकरे सेती जब देखबे तब वोमन बिन सोचे-समझे चटर-पटर करत रहिथें। हमरो पारा म एक झन अइसने चटरही हे, फेर ये चटरही ह आजकल ‘कवयित्री’ होगे हे। बने मोठ-डाँठ हे तेकर सेती लोगन वोला ‘कवयित्री धोंधो बाई’ कहिथें। वइसे नांव तो वोकर ‘मीता’ हे, फेर ‘गीता’ ह जइसे गुरतुर नइ होवय न, वइसने ‘मीता’ ह घलो मीठ नइए। एकदम करू तेमा लीम चढ़े वाला। वइसे तो माईलोगिन होना ह अपन आप म करू-कस्सा ल मंदरस चुपर के परोसने वाली होना होथे, तेमा…
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