देसी के मजा

आजकाल जेला देखबे तेला खाये-पीये के, उठे-बईठे के, कपड़ा-लपता फेसन सबो मा विदेसी जिनिस के जाला मा अरझत जात हें। हमर देसी हा कोनो ला सुहावत नईहे, अउ बहिरी के मनहा हमर गुनगान करथें। आघू अउ कइसन बेरा कोनजनी समझ नी आय। एक घाव मोर मितान घर के छट्ठी नेवता अईस। मितान कल्लई असन करिस ता मेहा बिहनिया ले नेवता मा चल देंव, कतको बछर होगे रिहिस गे घलो नी रेहेंव। दू चार झन संघरा हमन बईठे रेहेन, जुन्ना गोठ-बात, सुख-दुख के होवत रिहिस। अवईय्या-जवईय्या मनखे मा परछी सईमो-सईमो करत…

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अंगरेजी परेमी छत्तीसगढिया मन के घलव जय हो !

छत्तीसगढी़ राजभाखा बने के पाछू हमर जम्मे झिन सियान मन अपन-अपन डहर ले भरपूर उदिम करत हें, कि हमर भाखा ह सहर गांव चारो खूंट बगरय, सरकारी आफिस मन म हमर भाखा हा संवाद के भाखा होवय । हमर भाखा के मान दिन दूना-रात चौगूना बढय । तभोले, हमर अंगरेजी परेम हर नई छूटत हावय । हमर अंगरेजी परेम हर सहर भर म नई ये, गांवो-गांव अंगरेजी हा अपन जर ला खोभा लेहे असन जर जमावत हावय । अभिन तो अइसे लागथे कि अडबड अकन अंगरेजी आखर हा हमर भाखा…

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दर्रा हनागे

संझौती बेरा कोतवार हाका पारत रिहिस- नरवा मा नावा बने पुलिया हा तियार होगे हे, आज ले पांचवा दिन इतवार के हमर कोती के मंतरी फकालूराम हा फीता काटके उदघाटन करही। कोतवार केहाका ला सुनके गांव के लईका-सियान, दाई-बहिनी तिहार बरोबर उछल-मंगल मनात हें, अऊ टुटपुंजिहां गांव के नेता मन अइसे करत हें, जईसे ऊही मन मंतरी ले बाड़गे हे. गौरा-चौरा मेर तो दू पारटी के नेता मन धरी-धरा होगे रिहिन,अभीन के सरपंच किथे-मोर परयास ले पुलिया हा बने हे, पहिली वाले सरपंच किथे- मंत्री ला मेंहा केहे रेहेंव तेकर…

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हमर छत्तीसगढ के होगे बिकास … ??

हमर भारत देस के अडबड बिकास होवत हे, संगें-संग हमर छत्तीसगढ राज बने ले ओखरो अडबड बिकास होवत हावय। कई पहरो ले हमर छत्तीससगढ ला गवांर, अनपढ अउ ना जाने का का कहि के हीने जात रहे हे। अगरेज मन के भागे के पाछू घलोक अडबड माय-मौसी के दुख सहे हे फेर अब दिन बहुर गे हे, सियान मन कहंय ‘बाबू घुरवा के दिन बहुरथे रे, एक दिन हमरो दिन बहुरही’। अब वो दिन आ गे हे, हमर छत्तीसगढ के दिन अब बहुरत हे । गांव म ये ‘बिकास’ ला…

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पईसा म पहिचान हे

 रामदास ह समय के संगे संग रेंगे के सलाह सब झन ल देवत रथे। ”जइसे के रंग, तइसे के संगत” अभी के समय मं पईसा के बोलबाला हावय। एक समय रिहिस जब लाखों के काम एक भाखा मं हो जावय। एक जमाना येहू रिहिस कि गांव के नेता हर गली खोर मं परे डरे कागज, सिगरेट के खोखा मं लिख के देवय कि अमुख के मास्टरी बर आर्डर कर दो, अमुख ल पटवारी के नौकरी मं भरती कर दो तहां तुरूते आर्डर मिल जावय। काबर कि ओ बखत के नेता…

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आवव बियंग लिखन

छत्‍तीसगढी भाखा म आजकल अडबड काम होवत हे, खंती खनाए खेत म घुरवा के सुघ्‍घर खातू पाये ले धान ले जादा बन कचरा जइसे उबजथे तइसनेहे, लेखक-कबि अउ साहितकार पारा-मुहल्‍ला-गली-खोर म उबज गे हे । बिचारा मन छत्‍तीसगढी साहित्‍य ल सजोर करे के अपन-अपन डहर ले उदीम उजोग करत हें । कतकोन झिन अपन अंगरी कटा के सहीद म नाम लिखाये बर अपन चार-दस पाना के किताब तको छपवावत हें अउ आजोग के अधियकछ नई तो मंत्री-संत्री ला बला के किताब के उछाह-मंगल से बिमोचन करावत हें । कथे नहीं…

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नेताजी ल भकाड़ूराम के चिट्ठी

परम सकलकरमी नेता जी राम-राम अरे! मैं तो फोकटे-फोकट म आप मन ल राम-राम लिख पारेंव। आप मन तो राम ल मानबे नई करव। राम-रावन युद्ध ल घलो नई मानव। तेखरे सेथी येहू ल नई मानव के ‘रामसेतु’ ल राम हर बनवाय रहीस। तुमन तो ये मानथव के रमायेन हर सिरिफ एकठन ‘साहित्य’ आय। कोनों परलोखिया बिधर्मी मन तुम ल अइसने हे बोलीन अऊ तुमन मान गेव नेताजी? खुरसी खातिर न? परदेसिया मन ला खुस करे खातिर, पइसा बनाय खातिर, ये सब खातिर। तब फेर ये जनता के आस्था का…

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आतंकवादी खड़ुवा

पाकिस्तान मा चार झन आतंकवादी मन गोठियात रहंय। पहला- ‘अरे भोकवा गतर के। अभी हिन्दुस्तान म हमला करे बर अफगानिस्तान अऊ पाकिस्तान ले घलो जादा बढ़िया माहौल हावय।’ दूसरा- ‘कइसे?’ तीसरा- ‘हत रे बैजड़हा! तोला कोन हमर भीर मा भरती कर दीस रे? ओतको ला नई जानस? अरे! भारत के नेता मन मा अभी फकत बड़बोलापन हावय। हमर ले लड़े के कूबत नई हे। उन तो आपस मा लड़त हावयं। हम सब आतंकवादी एकजुट हावन, अऊ ओ मन? ओ मन जतेक पारटी, जतके नेता, ओतके गुट, ओतके विचार। हमन बारूद…

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झन-झपा

ओ दिन मैं हा अपन जम्मो देवता-धामी मन ला सुमरत-सुमरत, कांपत-कुपांत फटफटी ला चलात जात रहेंव। कइसे नई कांपिहौं? आजकाल सड़क म जऊन किसीम ले मोटर-गाड़ी चलत हावय, ओला देख-देख के पलई कांपे लागथे। आज कोन जनी, कोन दिन, कोन करा, कतका बेरा, रोडे ऊपर सरगबासी हो जाबो तेकर कोनो ठिकाना नई हे। आज लोगन मन करा, मोटर बिसाय के ताकत तो हो गे हे। फेर ओला ठाढ़ करे के ठऊर नई हे, ऊंखर मेर। त ओ मन सरकारी रोड अऊ गली मन ला अपन ‘बूढ़ी दाई’ के मिल्कियत समझ…

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जोड़ी! नवलखा हार बनवा दे

”मोर चेहरा के उदासी ह परोसी मेंर घलो नइ दोबईस। मोला अतक पन उदास कभू नई देखे रिहीस होही। परोसी ल मैं अपन समसिया ल गोहरायेंव त कहिथे ”अरे, ओखर बर तैं संसो करत हस जी?” पहिली ले काबर नई बतायेस, चल आजे चल न मैं तोला हजार पांच सौ म बढ़िया हार देवा देथंव। देवत रहिबे पईसा ल आगू-पाछू ले। फेर तोर गोसईन मेंर तोला नाटक करे बर परही।” हासिय बियंग बाल हठ तो जगत परसिध हई हे, फेर तिरिया हठ के आगू बड़े-बड़े तीसमारखां मनखे मन पानी भरथें।…

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