”संसार के सब दाई-ददा हा बहू, बेटा, नाती -नतरा के सुख भोगे के सपना देखथे। ओ मन रात -दिन इही संसो म बुड़े रहिथे कि मोर औलाद ल कांही दु:ख-तकलीफ झन होवय। बने-बने कमावयं खावयं। बने ओनहा पहिरे। बने रद्दा म रेंगय। दुनिया म हमर नांव जगावंय। कहिके अपन मन भूख-पियास ल सहिके औलाद के मुंह मं चारा डारथें। औलाद कपूत निकल जथे तेन ल कहूं का करही। सियान मन गुनथें मरे के पहिली नाती-नतुरा के मुंह देख लेतेंव कहिके। मोर दाई ह घलों अइसने सपना देखय। दाई ल बहू…
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हाथी बुले गांव – गांव, जेखर हाथी तेखर नाव
नाव कमाय के मन, नाव चलाय के संऊख अउ नाव छपाय के भूख सबो झन ल रथे । ये भूख हर कउनो ल कम कउनो ल जादा हो सकथे, फेर रथे जरूर । एक ठन निरगुनिया गीत सुने बर मिलथे – नाम अमर कर ले न संगी का राखे हे तन मं । कतकोन झन नाम अमर करे के चक्कर मं नाम नहि ते बदनाम कहिके गलत-सलत काम घला कर डारथें । अइसन मन पटंतर घला दें डारथे कि राम के नाव हावय तब रावन के घला नाव हावय ।…
Read Moreअब बिहाव कथे, लगा के देख
केहे जाथे कि जन्म बिबाह मरन गति सोई, जो विधि-लिखि तहां तस होई । जनम अउ मरन कब, कहां अउ कइसे होही ? भगवान हर पहिली ले तय कर दे रथे । वइसने ढ़ंग के बिहाव कब, कहां अउ काखर संग होही ए बात के संजोग भगवान हर पहिली ले मढ़ा दे रथे । फेर अइसन सोच के घर मं बइठे रेहे ले काम नइ चलय । दाने – दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम कहिके चुप बइठे रहिबे तब दाना तोर पेट मं नइ जावय । नसीब…
Read Moreइही तो आजादी आय
गनपत अउ धनपत दुनो झन रेडियो सुनत बइठे राहंय । रेडियो हर नीक-नीक देसभक्ति के गीत गावत राहय अउ बोलत राहय कि हमर आजादी साठ बरीस के होगे । तब गनपत हर धनपत ल पूछथे कि- रेडिया हर अजादी ल साठ बरीस के होगे कथे फेर हम तो आज ले ओखर दरसन नइ करे हावन । कइसना होथे ये आजादी हर ? ये अजादी के बिसय मं तैं का जानथस कुछु बतातेस ? तब धनपत बोलथे- पहिली हम अंगरेज के गुलाम रेहेन । आज अंगरेज मन ल हमर देश ले…
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