पान ठेला म घनश्याम बाबू ल जईसे बईठे देखिस ,परस धकर लकर साइकिल ल टेका के ओकर तीर म बईठगे। पान वाला बनवारी ल दू ठिन पान के आडर देवत का रही भईया तोर म काहत घनश्याम ल अंखियईस। दू मिनट पहिलीच एक पान मुहु म भरके चिखला सनाय भईसा कस पगुरात बईठे रिहीस। बरोबर सुपारी ह घलो चबाय नइहे अउ एति पान के आडर। अभीच भरे हंव काहत घनश्याम बाबू मना करत मुड़ी हलइस फेर परस के दरियादिली के आगु ओकर कंजुसी चलबे नइ करय। जइसे बनवारी पान ल…
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मन के बात
इतवार के दिन बिहाने बेरा गांव पहुंचे रहय साहेब हा। गांव भर म हाँका परगे रहय के लीम चौरा म सकलाना हे अऊ रेडिया ले परसारित मन के बात सुनना हे। चौरा म मनखे अगोरत मन के बात आके सिरागे, कनहो नी अइन। सांझकुन गांव के चौपाल म फेर पहुंचगे साहेब अऊ पूछे लागीस। मुखिया किथे – काये मन के बात आये साहेब ! कइसे मनखे अव जी, हमर देस के मुखिया अतेक दिन ले अपन मन के बात सुनावत हे अऊ तूमन जानव घला निही – साहेब किहीस। गांव…
Read Moreअस्पताल के गोठ
जादा दिन के घटना नोहय।बस!पाख भर पाछू के बात आय।जेठौनी तिहार मनावत रेहेन।बरदिहा मन दोहा पारत गांव के किसान ल जोहारे म लगे रहय।ए कोती जोहरू भांटो एक खेप जमाय के बाद दुसरइया खेप डोहारे म लगे राहय।भांटो ह घरजिंया दमांद हरे त का होगे फेर जांगरटोर कमइया मनखे हरे।अउ जांगरटोर कमइया मनखे ल हिरू-बिछरू के जहर ह बरोबर असर नइ बतावय त पाव भर दारू ह ओला कतेक निसा बतातिस।भले आंखी ह मिचमिचात रहय फेर चुलुक लागते राहय।मन नी माढिस त फेर दारू लानके पीये बर बइठगे वतकी बेरा…
Read Moreखतरनाक गेम
सरकार हा, ब्लू व्हेल कस, खतरनाक गेम ले होवत मऊत के सेती, बड़ फिकर म बुड़े रहय। अइसन मऊत बर जुम्मेवार गेम उप्पर, परतिबंध लगाये के घोसना कर दीस। हमर गांव के एक झिन, भकाड़ू नाव के लइका हा, जइसे सुनीस त, उहू सरकार तीर अपन घरवाले मन के, एक ठिन ओकरो ले जादा खतरनाक गेम उप्पर, परतिबंध लगाये बर, गोहनाये लागीस। सरकार बिन कुछ सुने, मना कर दीस। पढ़हे लिखे भकाड़ू, कछेरी पहुंचगे, नालीस कर दीस। कछेरी म जज पूछीस – तुंहर गेम कइसे खतरनाक हे तेमा, परतिबंध लगवाये…
Read Moreपथरा के मोल
पथरा मन, जम्मो देस ले, उदुप ले नंदाये बर धर लीस। घर बनाये बर पथरा खोजत, बड़ हलाकान होवत रेहेंव। तभे एक ठिन नानुक पथरा म, हपट पारेंव। पथरा ला पूछेंव – सबो पथरा मन कती करा लुकागे हे जी ? में देखेंव – नानुक पथरा, उत्ता धुर्रा उनडत रहय। मे संगे संग दऊंड़े लागेंव। झिन धर लेवय कहिके, उहू पथरा, अपन उनडे के चाल, बढ़हा दीस। में हफरत हफरत हाथ जोरत पूछेंव – थोकिन अगोर तो, कतिंहा दऊंड़त हस लकर धकर। ओ भागते भागत किहीस – मोला अपन हाथ…
Read Moreव्यंग्य : सरकारी तिहार
भारत देस तिहार अउ परब के देस हरे।अउ हमर छत्तीसगढ़ म तो बरमस्सी परब रथे।आनी-बानी के तिहार मनाथन हमन इंहा।पहिली सिरिफ पुरखा के बनाय तिहार मानत रेहेन फेर धीरलगहा संडे तिहार,चांउर तिहार,रुख-राई तिहार,भेलेनटाईन तिहार ,बिकास तिहार अउ एसो बोनस तिहार ल घलो मनाय बर सीखेन।अउ जेन मनखे संझौती बेरा पाव भर चढा लेथे ओकर बर तो रोज दिन तिहार हरे।अभीचे देवारी अउ बोनस तिहार संघरा मनाय हन ।वइसे देवारी तिहार तो हर बच्छर आथे फेर बोनस तिहार पांचसल्ला हरे।अभी तक देखब म आय हे कि ए तिहार ह चुनई तिहार…
Read Moreव्यंग्य : बछरू के साध अउ गोल्लर के लात
चरवाहा मन के मुखिया ह अतराप भर के चरवाहा मन के अर्जेन्ट मीटिंग लेवत समझावत रहय कि ऊप्पर ले आदेष आय हे, अब कोन्हो भी बछरू ला डराना-धमकाना, छेकना-बरजना नइ हे बस अतके भर देखना हे, ओमन रोज बरदी म आथे कि नहीं? बरदी म आके बछरू मन कतको उतलइन करे फेर हमला राम नइ भजना हे। जउन बछरू बरदी म नइ आवत हे ओखर घर में जाके ओला ढिल के लाना हे अउ भुलियार के बरदी म रखना हे। ओमन चाहे तुमन ला लटारा मारे, चाहे हुमेले। तुमन ला…
Read Moreपोल खोल
पोल खोल देबो के नारा जगा जगा बुलंद रहय फेर पोल खुलत नी रहय। गांव के निचट अड़हा मनखे मंगलू अऊ बुधारू आपस म गोठियावत रहय। मंगलू किथे – काये पोल आये जी, जेला रोज रोज, फकत खोल देबो, खोल देबो कहिथे भर बिया मन, फेर खोलय निही। रोज अपन झोला धर के पिछू पिछू किंजरथंव …..। बुधारू हाँसिस अऊ किहीस – पोल काये तेला तो महू नी जानव यार, फेर तोर हमर लइक पोल म कहींच निये अइसन सुने हंव। मंगलू किथे – तैं कुछूच नी जानस यार …….,…
Read Moreछत्तीसगढ़ी व्यंग्य : सेल्फी कथा
जब ले हमर देस म मुबाईल सुरू होय हे तब ले मनखे उही म रमे हे।पहिली जमाना म मुबाईल ल सिरिफ गोठ बात बर बउरे।फेर धीरे धीरे एमा आनी बानी के जिनिस हमावत गिस।फोटू खींचे बर केमरा,बेरा देखे बर घडी,गाना सुने बर बाजा,अउ ते अउ फिलीम देखे के बेवस्था घलो इही म होगे।एकर आय के बाद कतकोन मनखे मोटर गाडी म झपा के मरगे।आधा बीता के मुबाईल ह छे फिट के मनखे ल नचावत हे।पहिली के मुबाईल ह गरीबहा टाईप रिहिस बटन वाला । फेर जब ले मनखे ह कोढिया…
Read Moreबोनस के फर
जबले बोनस नाव के पेड़ पिरथी म जनम धरे हे तबले, इंहा के मनखे मन, उहीच पेंड़ ला भगवान कस सपनाथे घेरी बेरी…….। तीन बछर बीतगे रहय, बोनस सपना में तो आवय, फेर सवांगे नी आवय। उदुप ले एक दिन बोनस के पेंड़ हा, एक झिन ला सपना म, गांव में अमरे के घोसना कर दीस। गांव भर म, ओकर आये के, हल्ला होगे। ओकर आये के भरोसा म, गांव म बइसका सकलागे। बोनस के सवागत म, काये काये तियारी करना हे तेकर रूप रेखा, बने लागीस। बिपछ के मन…
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