भइंसा चोरी के सीबीआई जांच

जइसे लइका ल सेंके बर गोरसी के आंच जरूरी होथे, जइसे दरपन बनाय बर कांच जरूरी होथे, वइसने चोरी-डकइती, गडबड-घोटाला के खुलासा करे बर जांच जरूरी होथे। जांच अइसन-वइसन घलो नई, सिद्धा सीबीआई जांच! हमर बबा। पहरो म अइसन जांच नई होत रिहिस। एक दिन के बात हरय। हमन चउपाल म बइठ के तिरी-पासा खेलत रेहेन। सरपंच घला बइठे रिहिस। ओतकी बेरा टरकू कका ह सइकिल म चघके अपन खेत कोती गिस। घंटा भर म जब वोहा अइस त रेंगत-रेंगत। मेहा पूछ परेंव- सइकिल ल कते कर छोड देस कका,…

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व्‍यंग्‍य : रोटी सेंकन मय चलेंव………

छत्तीसगढ़िया मन के आदत कहां जाही। बिगन भात बोजे पेट नी भरय। फेर कुछ समे ले मोर सुवारी ला को जनी काये होगे रहय, कोन ओकर कमपयूटर कस बोदा दिमाग ला हेक करके, रोटी नाव के वाइरस डार दे रहय, फकत रोटीच सेंके के गोठ करथय। भाग के लेखा ताय, अनपढ़, निच्चट सिधवी अऊ नरम सुभाव टूरी संग बिहाव होय रिहीस मोर। फेर कुछ समे ले, होटल के रोटी कस चेम्मर, टेड़गा, पेचका होवत जात रिहीस । अखबार म कोन जनी काये पढ़हय, फकत इहीच पूछय, हमर देस म, अतेक मनखे मन रोटी सेंकत…

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व्‍यंग्‍य : रावन संग भेंट

आज संझौती बेरा म दुरगा ठऊर म मिटिंग हावे किके कोतवाल हांका पारके चल दिस। जें खाके सब ला सकलाना हे। नी अवइय्या मन बर चार सो के दंड घलो राखे हे। जेला गराम बिकास म खरचा करे के बात हर मिटिंग म होथे। फेर ओला निझमहा देखके गांव के सियनहा मन ह सरकारी अनुदान कस निपटा देथे। अब गांव ह तइहा कस कुंवा के पानी पियइय्या नी रहिगे हे। अब घरोघर नल लगे हे जेकर पानी ल जम्मो पिथंय। अब कुंवा बउली ह कचरा फेंके बर बउरे जाथे। स्वच्छ…

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व्‍यंग्‍य : कब मरही रावन ?

गांव म हरेक पइत, दसरहा बखत, नाटक लील्ला खेलथे। ये दारी के लील्ला, इसकूल के लइका मन करही। लइका मन अपन गुरूजी ला पूछीन – काये लील्ला खेलबो गुरूजी ? गुरूजी बतइस – राम – रावन जुद्ध खेलबो बेटा। मेंहा रात भर बइठ के पाठ छांट डरे हौं। कोन कोन, काये काये पाठ करहू ? अपन अपन हिसाब ले देख लौ। हां, एक ठिन गोठ जरूर हे, जेन लइका जे पाठ करहू, वो पाठ ल अइसे निभाहू के, देखइया मन के मुहूं, आंखी अऊ कान, खुल्ला के खुल्ला रहि जाय।…

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तुँहर जउँहर होवय : छत्तीसगढी हास्य-व्यंग संग्रह

छत्तीसगढी सहज हास्य और प्रखर ब्‍यंग्य की भाषा है। काव्य मंचों पर मेरा एक एक पेटेंट डॉयलाग होता है, ‘मेरे साथ एक सुखद ट्रेजेडी ये है कि दिल की बात मैं छत्तीसगढी मे बोलता हूँ, दिमाग की बात हिन्दी में बोलता हूँ और दिल न दिमाग की यानि झूठ बोलना होता है तो अंग्रेजी में बोलता हूँ।’ हो सकता है कुछ लोगों को इसमें आत्म विज्ञापन की बू आए। मगर ऐसा नहीं है, जिसे आप मेरे श्रेष्ठता बोध की विशेषता समझ रहे हैं, दरअसल वह हर भारतीय आम आदमी की…

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व्यंग्य : कुकुर के सन्मान

कबरा कुकुर ला फूल माला पहिर के माथ म गुलाल के टीका लगाय अंटियावत रेंगत देखिस तब झबरा कुकुर ह अचरज में पड़गे। सन्न खा के पटवा म दतगे। ओहा गजब बेर ले सोचिस, ये कबरा ह बइहागे हे तइसे लागथे। नंदिया बइला अस मनमाने सम्हर के कोन जनी कहाँ जावत हे। अभी तो न कहूँ ठउर म कुकुर सम्मेलन होवत हे अउ न कुकुर मेला भरात हे। तीरथ-बरथ जाय के तो सवालेच नइ उठय। हमर पुरखा मन तो पहिली ले चेताय हे कुकुर ह गंगा जाही तब पतरी ला…

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गनेस के पेट

हमर गांव के लइका मन, गनेस पाख म, हरेक बछर गनेस बइठारे। गांवेच के कुम्हार करा, गनेस के मुरती बनवावय। ये बखत के गनेस पाख म घला, गनेस मढ़हाये के अऊ ओकर पूजा के तियारी चलत रहय। समे म, कुम्हार ला, मुरती बनाये के, आडर घला होगे। एक दिन, गांव के लइका मन ला, कुम्हार आके बतइस के, गनेस भगवान के पेट ला, कोन चोरा के, लेग जथे। जे घांव बनाथंव ते बेर, ओकर पेट गायबेच हो जथे, जबकि मुरती बनाके, रात भर पहरा देथंव। बिहिनिया ले ओकर पेट करा…

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एक चिट्ठी गनेस भगवान के नांव

सिरीमान गउरीनंदन गजानन महराज, घोलंड के परनाम। लिखना समाचार मालुम हो के- बीत गे असाढ़, नइ आइस बाढ़। बीत गे सावन, पानी कहिस नइ आवन। आगे भादो, परगे संसो, जपाथन माला हांका परगे पोला आला, बरसा झाला। पोला आला…।। अब गजानन देव, तूमन जघा-जघा बिराजमान होहू। पंडाल, मंच अउ झांकी के देखनी होही। गनेस पाख भर चारो मुड़ा आनी बानी के गनेस मूरती के चरचा होही। नरियर, धान, चांउर, करा बांटी, सुपारी, हरदी, मूमफल्ली, काजू, बदाम भगत मन ल जेने चीज सुहइस तेकरे मूरती बनवा के बइठारहीं। अतके होके छुट्टी…

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कइसे झंडा फहरही ?

  पनदरा अगस्त के पहिली दिन, सरपंच आके केहे लागीस ‌- डोकरी दई, ये बछर, हमर बड़का झंडा ल, तिहीं फहराबे या …..। मोर न आंखी दिखय, न कान सुनाये, न हाथ चले, न गोड़, मेहा का झंडा फहराहूं – डोकरी दई केहे लागीस ? सरपंच मजाक करीस – ये देस म जे मनखे ला दिखथे, जे मनखे ला सुनाथे, जे अपन हाथ ले बहुत कुछ कर सकत हे, जे अपन गोड़ के ताकत ले दुसमन के नास कर सकत हे तेमन ला, आज तक झंडा फहराये के हक नी मिलीस। जे कुछ करय…

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आऊटसोरसिंग

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”] मंगलू अऊ बुधारू खुसी के मारे पगला गे रहय। लोगन ला बतावत रहय के, हमर परदेस के किरकेट टीम ल रनजी टराफी म खेले के मउका मिलगे। गांव के महराज किथे – ये काये जी ? एमा खुस होये के काये मतलब हे ? सरकार ल खुस होना चाही। किरकेट के समान बेंचइया अऊ खेलइया ल खुस होना चाही। बुधारू कहत रहय – हमर बेटा मन कालेज के बड़े किरकेट खेलाड़ी आय, ऊंखर खेल ल देखके, ऊंखर चयन, परदेस के टीम म होवइया…

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